उत्तर प्रदेश में AI और ड्रोन तकनीक के साथ-साथ प्लंबर की जरूरत, कुशल कारीगरों की कमी
लखनऊ में आयोजित कौशल कान्क्लेव में, यह बात सामने आई कि उत्तर प्रदेश में एआइ और ड्रोन तकनीक के साथ-साथ प्लंबर जैसे परंपरागत हुनर की भी मांग है। आईटीआई ...और पढ़ें

राज्य ब्यूरो, लखनऊ। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) और ड्रोन तकनीक की चर्चा हर जगह है, लेकिन हकीकत यह है कि ज़मीन पर आज भी प्लंबर जैसे परंपरागत हुनर की मांग भी है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भी प्लंबर की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही है।
आइटीआइ में प्लंबर कोर्स की सिर्फ 30 प्रतिशत सीटें ही भर पा रही हैं। ऐसे में आधुनिक तकनीक के साथ-साथ परंपरागत कौशल को फिर से युवाओं से जोड़ने पर जोर देना होगा।
उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन और व्यावसायिक शिक्षा विभाग की ओर से आयोजित छठे राष्ट्रीय कौशल कान्क्लेव में बताया गया कि प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन और कारीगर जैसे पारंपरिक कौशल की भी जरूरत है।
होटल क्लार्क अवध में आयोजित कान्क्लेव का विषय भारत को विश्व का स्किल हब बनाना रहा। इसमें विभाग के प्रमुख सचिव डा. हरिओम ने कहा कि कौशल विकास केवल नौकरी पाने का जरिया नहीं है, बल्कि यह प्रदेश और देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने की सबसे मजबूत ताकत है।
आने वाले पांच से 15 वर्षों में उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा कार्यबल देने वाला राज्य होगा। कृषि, विनिर्माण, निर्माण और आइटी जैसे पारंपरिक क्षेत्रों के साथ-साथ ड्रोन तकनीक, ग्रीन एग्रीकल्चर, सोलर एनर्जी, इलेक्ट्रिक वाहन, रोबोटिक्स और एआइ जैसे नए क्षेत्रों के लिए भी कुशल युवाओं को तैयार करना समय की मांग है। इसके लिए सरकार, उद्योग और शिक्षा संस्थानों के बीच लगातार सहयोग जरूरी है।
मिशन निदेशक पुलकित खरे ने कहा कि उद्योग संगठनों के साथ नियमित बातचीत कर कोर्स को बाजार की जरूरतों के अनुसार बदला जा रहा है। भारत को दुनिया का स्किल कैपिटल बनाने में उत्तर प्रदेश अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
अपर मिशन निदेशक प्रिया सिंह ने कहा कि ऐसे आयोजनों से नीति और प्रशिक्षण दोनों को बेहतर दिशा मिलती है। तकनीकी सत्रों में कौशल नीति निर्माताओं, सेक्टर स्किल काउंसिल, सीएचआरओ, एलएंडडी प्रमुख, टेक्नोलाजी इंडस्ट्री लीडर्स और शिक्षाविदों ने हिस्सा लिया।

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