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    दुर्घटना की जांच में फारेंसिक साक्ष्यों का भी बढ़ेगा आधार, 20 जिलों के पुलिसकर्मियों को दिया गया प्रशिक्षण

    Updated: Thu, 20 Nov 2025 10:31 AM (IST)

    उत्तर प्रदेश में दुर्घटनाओं की जांच में फॉरेंसिक सबूतों का इस्तेमाल बढ़ेगा। 20 जिलों के पुलिसकर्मियों को खास ट्रेनिंग दी गई है, ताकि वे घटनास्थल से सबूत जुटा सकें और सही जांच कर सकें। इस कदम से दुर्घटनाओं की जांच और भी सटीक हो सकेगी और दोषियों को सज़ा मिल सकेगी।

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    राज्य ब्यूरो, लखनऊ। यूं तो किसी दुर्घटना की एफआइआर में वाहन के अनियंत्रित व तेज रफ्तार में होने की बात ही प्रमुखता से लिखी जाती है पर अब ऐसा नहीं होगा। बल्कि पुलिस वैज्ञानिक दृष्टि व फारेंसिक साक्ष्यों की मदद से हादसे की मुख्य वजह की तह तक पहुंचने का प्रयास करेगी।

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    सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय के शून्य मृत्यु जिला (जेडएफडी) कार्यक्रम के तहत इंटीग्रेटेड रोड एक्सीडेंट डेटाबेस (आइआरएडी) के माध्यम से वर्ष 2023 व 2024 में घटित सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों के आधार पर चिन्हित प्रदेश के 20 जिलों से इसकी शुरुआत होगी।

    इसके लिए यातायात मुख्यालय में इन जिलों के यातायात के नोडल अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी व चयनित पुलिसकर्मियों को तीन दिवसीय प्रशिक्षण प्रदान किया गया। इंस्टीट्यूट आफ रोड ट्रैफिक एजुकेशन (आईआरटीई) के विशेषज्ञों ने यातायात इंजीनियरिंग, कानूनी प्रविधान, दुर्घटना की जांच व फारेंसिक साक्ष्यों के संकलन पर खास जोर दिया।

    घटनास्थल की फोटाग्राफी से लेकर सड़क पर टायर व वाहन के रगड़ने के निशानों, वाहनों की फिटनेस व अन्य पहलुओं को पड़ताल में शामिल किए जाने के महत्व को भी समझाया।

    इंस्टीट्यूट आफ रोड ट्रैफिक एजूकेशन/कालेज आफ ट्रैफिक मैनेजमेंट एंड फारेंसिक साइंस, फरीदाबाद (हरियाणा) के सहयोग से आयोजित कार्यशाला के समापन पर बुधवार को आइआरटीई के अध्यक्ष डा. रोहित बलूजा ने यातायात इंजीनियरिंग के सिद्धांतों व सड़क अवसंरचना से जुड़ा प्रस्तुतिकरण भी दिया।

    आंकड़ों के माध्यम से दुर्घटना के कारणों व उसके निवारण के बारे में बताया। डीजीपी राजीव कृष्ण ने कहा कि सड़क सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने, दुर्घटना-दर में कमी लाने व प्रभावी यातायात प्रबंधन के लिए उप्र पुलिस बहुआयामी व वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्यापक कार्ययोजना लागू कर रही है।

    राष्ट्रीय राजमार्ग के तीन हिस्सों में पायलेट प्रोजेक्ट के तहत किए गए प्रयोग से साफ हो चुका है कि गहन विवेचना, जिम्मेदारी निर्धारण व तकनीक के उपयोग से हादसों में कमी लाई जा सकती है। इस माडल को जल्द अन्य जिलों व प्रमुख हाइवे पर भी लागू किया जाएगा।

    प्रदेश में लखनऊ, कानपुर नगर, गौतमबुद्वनगर, आगरा, प्रयागराज, बुलंदशहर, उन्नाव, हरदोई, अलीगढ़, मथुरा, बरेली, फतेहपुर, सीतापुर, गोरखपुर, बाराबंकी, कुशीनगर, जौनपुर, बदायूं, फीरोजाबाद व आजमगढ़ में 233 संवेदनशील थाने, 89 क्रिटिकल कारीडोर व 3233 दुर्घटना बहुल क्षेत्र भी चिन्हित किए गए हैं। डीजीपी के निर्देश पर चिन्हित थानों में दुर्घटनाओं की जांच के लिए विशेष टीमें गठित की गई हैं, जो सभी हादसों की जांच करेंगी।