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    ओपिनियन: अपने वोट की कीमत समझें, एक वोट से हार सकता है आपका पसंदीदा प्रत्याशी

    Updated: Thu, 18 Dec 2025 07:09 PM (IST)

    भारत में लोकतंत्र सामूहिक गर्व का विषय है, पर चुनावी प्रक्रिया के प्रति उदासीनता चिंताजनक है। उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची पुनरीक्षण में करोड़ों नाम ग ...और पढ़ें

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    भारत में लोकतंत्र सिर्फ एक शासन प्रणाली नहीं, बल्कि एक सामूहिक गर्व का विषय है। एक अनपढ़ मजदूर से लेकर बड़े शिक्षाविदों तक, हर कोई अपनी 'लोकतांत्रिक ताकत' पर गर्व करता है। लेकिन विडंबना देखिए, जिस देश में लोकतंत्र को लेकर इतना उत्साह है, वहां वास्तविक चुनावी प्रक्रिया के प्रति एक गहरी उदासीनता भी दिखाई देती है। हाल ही में उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों से आई खबरें चिंताजनक हैं, जहाँ मतदाता सूची पुनरीक्षण (Review Process) के दौरान करोड़ों मतदाताओं के नाम गायब मिले हैं। क्या यह केवल तकनीकी खामी है, या हमारी अपनी नागरिक जिम्मेदारी के प्रति लापरवाही?

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    वोटर लिस्ट से नाम गायब होना: तकनीकी चूक या नागरिक उदासीनता?
    चुनाव आयोग वर्तमान में फर्जी मतदाताओं को हटाने के लिए एक सघन अभियान चला रहा है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में करीब चार करोड़ मतदाताओं की संख्या का कम होना एक बड़ा संकेत है। खतरा यह है कि नागरिकों की उदासीनता के कारण कहीं 'फर्जी' के साथ-साथ 'सही' मतदाता भी सूची से बाहर न हो जाएं। यदि 18 वर्ष से अधिक आयु का नागरिक वोटर लिस्ट में अपना नाम दर्ज कराने या उसे अपडेट रखने की जहमत नहीं उठाता, तो वह स्वयं को देश की निर्णय प्रक्रिया से बेदखल कर रहा है।

    दुनिया के कई विकसित देशों में मतदान न करने पर जुर्माने का प्रावधान है। भारत में चुनाव आयोग फिलहाल जागरूकता और प्रोत्साहन के जरिए लोगों को बूथ तक लाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अगर यही उदासीनता बनी रही, तो भविष्य में शायद हमें भी कड़े कानूनों का सामना करना पड़े।

    सुप्रीम कोर्ट की दो टूक: "वोट नहीं, तो शिकायत नहीं"
    अक्सर हम ड्राइंग रूम में बैठकर सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं, लेकिन क्या हमें इसका नैतिक अधिकार है? साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि यदि आप मतदान की प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेते, तो आपको सरकार को दोष देने या उससे सवाल पूछने का कोई हक नहीं है। मतदान केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि एक कर्तव्य है जो आपको जवाबदेही मांगने की शक्ति देता है।

    इतिहास के पन्ने: जब एक वोट ने बदल दी देश की किस्मत
    भारत में एक वोट की कीमत को समझने के लिए इतिहास के दो बड़े उदाहरण काफी हैं। कांग्रेस के दिग्गज नेता सीपी जोशी का एक वोट से चुनाव हारना आज भी चर्चित है, लेकिन सबसे बड़ा उदाहरण 1999 का है। अप्रैल 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज एक वोट से गिर गई थी। जयललिता की AIADMK द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद सदन में शक्ति परीक्षण हुआ। उस दिन दो वोटों ने इतिहास बदल दिया:

    गिरधर गमांग: ओडिशा के मुख्यमंत्री बन चुके गमांग ने सांसद के तौर पर सरकार के खिलाफ वोट किया।

    सैफुद्दीन सोज: नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद होने के बावजूद पार्टी लाइन से अलग जाकर सरकार के विरोध में मतदान किया।

    नतीजा? 269 के मुकाबले 270 वोट। अटल जी की 13 महीने की सरकार गिर गई और देश को फिर से चुनाव का बोझ सहना पड़ा। यह घटना चीख-चीख कर कहती है कि आपका एक वोट न केवल एक प्रत्याशी को जिता सकता है, बल्कि पूरे देश की सत्ता का रुख मोड़ सकता है।

    अपनी ताकत को पहचानें
    लोकतंत्र में आपका सबसे बड़ा हथियार आपका वोटर आईडी कार्ड है। यदि आप चुनाव आयोग की प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं ले रहे, तो आप अपनी उस ताकत को खो रहे हैं जिससे आप अपना और अपने देश का भविष्य तय कर सकते हैं। याद रखिए, आपकी एक छोटी सी लापरवाही आपके पसंदीदा नेता की हार और एक नापसंद सरकार की जीत का कारण बन सकती है।

    आज ही अपना नाम वोटर लिस्ट में चेक करें और यह सुनिश्चित करें कि आप भारत के निर्माण में 'साक्षी' नहीं, बल्कि 'भागीदार' हैं।