शहीदी दिवस : 36 अंग्रेजों को मौत के घाट उतारकर शहीद हुईं ऊदा देवी, अवध में फूंका था क्रांति का बिगुल
वीरांगना ऊदा देवी पासी स्मारक संस्थान के अध्यक्ष राम लखन पासी ने बताया कि वर्ष 1857 में स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बज चुका था। जाति-संप्रदाय से ऊपर उठकर सभी का बस एक ही मकसद था कि अंग्रेजों को देश से बाहर किया जाए।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। वीरांगना ऊदा देवी पासी ने देश को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने के लिए अवध में क्रांति का जो बिगुल फूंका, उससे अंग्रेजों की चूलें हिल गईं। युद्ध कौशल में पारंगत ऊदा देवी अंग्रेजों के से अवध को हर हाल में छुड़़ाना चाहती थीं। यही वह मकसद था, जिसने उन्हें लोगों के करीब लाकर खड़ा कर दिया। 16 नवंबर को उनके शहीदी दिवस पर उन्हें एक बार फिर सिकंदर बाग चौराहे पर लगी प्रतिमा के पास संरक्षित स्मारक परिसर में याद किया जाएगा।
वीरांगना ऊदा देवी पासी स्मारक संस्थान के अध्यक्ष राम लखन पासी ने बताया कि वर्ष 1857 में स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बज चुका था। सभी के अंदर अंग्रेजों के प्रति आक्रोश व्याप्त था। जाति-संप्रदाय से ऊपर उठकर सभी का बस एक ही मकसद था कि अंग्रेजों को देश से बाहर का रास्ता दिखाया जाए। एक ओर जहां रेजीडेंसी और दिलकुशा में अंग्रेजों ने कब्जा कर रखा था, तो दूसरी ओर बेखौफ क्रांतिकारी अंग्रेजों के मंसूबों को फेल करने में लग रहे। बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों के खिलाफ खुद सेना की कमान अपने हाथ में ले ली थी। अंग्रेजों के सेनापति हर ओर क्रांतिकारियों के मंसूबों को फेल कर कब्जा करने में लगे थे तो दूसरी ओर चिनहट की ओर से सिकंदरबाग की ओर बढ़ रही अंग्रेजी सेना को रोकने की जिम्मेदारी स्वयं ऊदा देवी ने ले ली।
एक शहीद क्रांतिकारी के शरीर को देखकर उन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने की कसम खा ली। राजा जयलाल भी उनके साथ थे। सिकंदरबाग के पास अंग्रेजों से पूरी तरह घिर चुकीं ऊदा देवी ने हिम्मत नहीं हारी और एक साथ 36 अंगे्रजों को मौत के घाट उतारकर युद्ध कौशल का परिचय देते हुए शहीद हो गईं। रामलखन पासी ने बताया कि वीरांगना के इस बलिदान को अवध ही नहीं, पूरा देश कभी भूल नहीं पाएगा। राम लखन पासी ने आशियाना के पासी किले को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन करने की मांग की है।
मोमबत्ती जलाकर दी श्रद्धांजलि : वीरांगना के शहीदी दिवस की पूर्व संध्या पर उत्तर प्रदेश पासी जागृति मंडल की ओर से प्रतिमा स्थल पर मोमबत्ती जलाकर श्रद्धांजलि दी गई। अध्यक्ष राम कृपाल ने कैसरबाग की सफेद बारादरी के बगल में स्थित पार्क में प्रतिमा स्थापित करने और उनके नाम से एक महाविद्यालय का नाम करने समेत आठ सूत्रीय मांग की।
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