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    Lucknow: 36 अंग्रेजों को मौत के घाट उतारकर शहीद हुईं ऊदा देवी, अवध में फूंका था क्रांति का बिगुल

    By Jitendra Kumar UpadhyayEdited By: Vikas Mishra
    Updated: Tue, 15 Nov 2022 12:45 PM (IST)

    युद्ध कौशल में पारंगत ऊदा देवी अंग्रेजों के हाथों से अवध को छुड़़ाना चाहती थीं। यही वह मकसद जो उन्हें लोगों के करीब लाकर खड़ा कर दिया। 16 नंवबर को उनके शहीदी दिवस पर उन्हें एक बार फिर याद किया जाएगा।

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    सिकंदरबाग चौराहे के पास 36 अंग्रेजों को मौत के घाट उतारकर हो गईं शहीद

    लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। अवध की वीरांगना ऊदा देवी पासी झांसी की रानी लक्ष्मी बाई तो नहीं थीं, लेकिन उनसे कम भी नहीं थीं। देश को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने की उनके अंदर की ज्वाला ने अवध में क्रांति का बिगुल फूंका उससे अंग्रेजों की चूलें हिल गईं। पासी समाज की गौरव वीरांगना ऊदा देवी ने जाति संप्रदाय से ऊपर उठकर देशभक्ति का जो रंग दिखाया वह किसी महान योद्धा से कम नहीं था।

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    युद्ध कौशल में पारंगत ऊदा देवी अंग्रेजों के हाथों से अवध को छुड़़ाना चाहती थीं। यही वह मकसद जो उन्हें लोगों के करीब लाकर खड़ा कर दिया। 16 नंवबर को उनके शहीदी दिवस पर उन्हें एक बार फिर सिकंदर बाग चौराहे पर लगी प्रतिमा के पास सरंक्षित स्मारक परिसर में याद किया जाएगा।

    वीरांगना ऊदा देवी पासी स्मारक संस्थान के अध्यक्ष राम लखन पासी की ओर से हर साल शहीदी दिवस मनाया जाता है। उन्होंने उनकी जीवनी पर आधारित शोध कर कई अनछुए पहलुओं को आम लोगों तक पहुंचाया। उन्होंने बताया कि 1857 में स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बज चुका था।सभी के अंदर अंग्रेजों के प्रति आक्रोश व्याप्त हो गया था। जाति संप्रदाय के ऊपर उठकर सभी का बस एक ही मकसद था कि अंग्रजों को देश से बाहर का रास्ता दिखाया जाय।

    एक ओर जहां रेजीडेंसी और दिलकुशा में अंग्रेजों ने कब्जा कर रखा था तो दूसरी ओर बेखौफ क्रांतिकारी अंग्रेजों के मंसूबे को फेल करने में लग रहे। बेगम हजरतमहल जहां क्रांतिकारियों के लिए भोजन का इंतजाम करतीं थी तो दूसरी ओर अंग्रेजों के खिलाफ खुद सेना की कमान अपने हाथ में ले लिया था। अंग्रेजों के सेनापति हर ओर क्रांतिकारियों के मंसूबों को फेल कर कब्जा करने में लगे थे तो दूसरी ओर चिनहट की ओर से सिकंदरबाग की ओर बढ़ रही अंग्रेजी सेना को रोकने की जिम्मेदारी स्वयं ऊदा देवी ने ले ली।

    एक क्रांतिकारी के शहीद शरीर को देखकर उन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने की कसम खा ली। राजा जयलाल भी उनके साथ थे। सिकंदबाग के पास अंग्रेजों से पूरी तरह घिर चुकीं ऊदा देवी ने हिम्मत नहीं हारी और एक साथ 36 अंग्रेजों को मौत के घाट उतार कर अपने युद्ध कौशल का परिचय देती हुए शहीद हो गईं। रामलखन पासी ने बताया कि वीरांगना के इस बलिदान को अवध ही नहीं पूरा देश कभी भूल नहीं पाएगा। कोराेना संक्रमण के बावजूद 16 नवंबर को सिकंदरबाग चौराहे के पास शहीदी दिवस मनाया जाएगा।

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