Superman Birthday: बच्चों का चहेता हीरो था हवा में उड़ता नायक, सबसे पहले पढ़ने की लगती थी होड़
सुपरमैन 30 जून 1938 को पहली बार कॉमिक्स के पन्नों पर उतरा। देखते ही देखते यह बच्चों का हीरो बन गया। युवाओं में भी इसका अलग ही आकर्षण होता। इस कॉमिक कि ...और पढ़ें

लखनऊ, जेएनएन। दुनिया को विनाश से बचाता लाल नीले चुस्त कपड़े पहने हवा में उडऩे वाला नायक 'सुपरमैन' 30 जून 1938 को पहली बार कॉमिक्स के पन्नों पर उतरा। देखते ही देखते यह बच्चों का हीरो बन गया। उस समय हर बच्चा मुसीबत के समय सुपरमैन बनने की कल्पना करता। युवाओं में भी इसका अलग ही आकर्षण होता। इस कॉमिक किरदार की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि यह तब सिल्वर स्क्रीन का भी जगमगाता सितारा बन गया। सुपरमैन का विचार अमेरिका के लेखक जेरी सीगल और आर्टिस्ट जो शुस्टर क्लीवलैंड का था। बाद में सीगल और शुस्टर ने सुपरमैन के कॉपीराइट्स डिटेक्टिव कॉमिक्स को बेच दिए, जो बाद में डीसी कॉमिक्स के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मेरा लक्ष्य तब बस अड्डे की दुकान से पांच कॉमिक्स खरीदना होता था : कवि पंकज प्रसून बताते हैं, मैं गोंडा में तब कक्षा आठ में पढ़ता था। मैं अपने चाचा के साथ छुट्टियों में रायबरेली जाता था। चारबाग से रायबरेली की बस मिलती थी। मेरे लिए वह बस अड्डा बस पकडऩे का जरिया होने से ज्यादा कॉमिक्स की रोमांचक दुनिया थी। वहां पर मेरा लक्ष्य सुपरमैन की कम से कम पांच कॉमिक्स खरीदना रहता था। जिसके लिए मैं मनुहार और जिद दोनों का सहारा लेता था। तब यह कॉमिक्स 10 रुपये में मिलती थी। इसका हिंदी संस्करण खूब बिकता था। वहां पर नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, डोगा का बढिय़ा कलेक्शन होता था। मुझे सुपरमैन ज्यादा पसन्द था। क्लार्क केन्ट से सुपरमैन बनते देखना वैसे ही लगता था जैसे गंगाधर का शक्तिमान बनना।
सुपरमैन मुंह से फूंक मारकर किसी भी वस्तु को बर्फ से ढक देता था। उसकी आंखों से हाई इंटेंसिटी लेजर बीम निकलती थी, वह ग्रहों की दिशा बदल सकता था। उसकी जख्म भरने की शक्ति और गुरुत्व के विपरीत उडऩे की शक्ति कौतूहल पैदा करती थी। उस वक्त टीवी पर कोई सुपरहीरो नहीं आता था। बाद में जितने भी सुपर हीरो आए सब सुपरमैन से ही प्रेरित लगे। गांव में सुपरमैन की कॉमिक्स 50 पैसे किराए पर मिलती थी।
सबसे पहले पढऩे की लग जाती थी होड़
हम उस दौर के बचपन को जिया करते थे जब सुपर हीरो कार्टून कैरेक्टर की तरह फिल्मी नहीं बल्कि कॉमिक्स के उस जीवंत चरित्र की तरह होता था जो मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि समाज में चल रही विसंगतियों पर कहर बनकर टूटता था। इनमें सबसे बड़ा और सबसे भरोसेमंद सुपर हीरो सुपरमैन ही रहा। व्यंग्यकार अलंकार रस्तोगी स्मृतियां साझा करते हुए कहते हैं, उस समय घर के टूटे हुए पलस्तर को छिपाने के लिए सुपरमैन के तरह- तरह के पोस्टरों का ही इस्तेमाल होता था। हर बच्चा अपने बड़ों की लुंगियों को कंधे से बांधकर सुपरमैन की तरह उडऩे की बचकानी कोशिश में लगा रहता था। उस समय पचास पैसे किराए पर कॉमिक्स मिल जाया करती थी। वह दुकान हुआ करती थी पुराने लखनऊ के चौपटिया इलाके में जिसका नाम था गोपाल जनरल एंड स्टेशनरी हाउस। जैसे ही सुपरमैन की कोई नई कॉमिक्स आती उसे सबसे पहले पढऩे की मोहल्ले के सारे बच्चों में होड़ सी लग जाती थी।
मुझे याद है बचपन में एक बार चौक इलाके में झुग्गियों में बहुत भयानक आग लग गई थी। मैं अपने दोस्तों के साथ उसके बगल के मैदान में क्रिकेट खेल रहा था। चारों तरफ चीख पुकार मची थी। मेरे बाल मन में उस समय फायर ब्रिगेड की नहीं बल्कि सुपरमैन की याद आने लगी। मन बार-बार यही कहता काश सुपरमैन आ जाता। सुपरमैन तो नहीं आया लेकिन थोड़ी देर में दमकल कर्मी आ गए । उन्होंने बड़ी मशक्कत से आग बुझाई। तब समझ में आया कि हर वह व्यक्ति सुपरहीरो है जो समाज की भलाई के लिए काम करता है।
दोस्तों के साथ मिलकर जमा करते थे पैसे
कल्याणपुर के रहने वाले रवि प्रजापति बताते हैं कि स्कूल के दिनों में सुपरमैन कॉमिक्स पढऩे का चस्का लगा। उस समय इतनी पॉकेट मनी भी नहीं होती थी, जो अकेले ही कॉमिक्स खरीदी जा सके। ऐसे में मैंने और कुछ दोस्तों ने पैसे जमा करके कॉमिक्स खरीदना शुरू किया। किताबों के बीच में कॉमिक्स रखकर पढ़ते।

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