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    यह है लखनऊ का हस्ताक्षर दरवाजा, देखें लखौड़ी ईंट और बादामी चूरे का कमाल; अवध में अकाल के वक्त हुआ था निर्माण

    By Durga SharmaEdited By: Vikas Mishra
    Updated: Mon, 21 Nov 2022 09:04 AM (IST)

    1784 में रूमी दरवाजा और इमामबाड़ा बनवाना शुरू किया गया था। दोनों ही इमारतें 1786 में बनकर तैयार हो सकीं। रूमी दरवाजा के निर्माण के समय एक रोचक कहानी भी जुड़ी हुई है। जब रूमी दरवाजा बन रहा था उस वक्त अवध में अकाल पड़ा हुआ था।

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    लखनऊ का यह हस्ताक्षर भवन व दरवाजा वर्तमान में कुछ-कुछ बदहाल हो गया है

    लखनऊ, [दुर्गा शर्मा]। विश्व विरासत सप्ताह के तहत आज आपको लखनऊ के हस्ताक्षर भवन के बारे में जानकारी देते हैं। यह भवन विश्व विख्यात है। लखनऊ की नरम मिट्टी में ढला यह भवन अपनी बेजोड़ स्थापत्य कला के कारण शहर की अन्य इमारतों को टक्कर देता है। हालांकि, आज लखनऊ का यह हस्ताक्षर भवन व दरवाजा कुछ-कुछ बदहाल हो गया है। हम बात कर रहे हैं पुराने लखनऊ में शान से खड़े रूमी गेट के बारे में।

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    नवाब आसफुद्दौला ने इसे बनवाया था। 1784 में रूमी दरवाजा और इमामबाड़ा बनवाना शुरू किया गया था। दोनों ही इमारतें 1786 में बनकर तैयार हो सकीं। रूमी दरवाजा के निर्माण के समय एक रोचक कहानी भी जुड़ी हुई है। जब रूमी दरवाजा बन रहा था उस वक्त अवध में अकाल पड़ा हुआ था। भूखों को रोटी चाहिए थी। आप कहेंगे कि नवाब तो अपनी प्रजा को यूं भी रोटी दे सकता था, पर असल बात यह है कि तब हर आदमी भीख मांगने की बजाए मेहनत कर पेट भरने का हिमायती था।

    खैरात की रोटी को वह हराम समझता था। लिहाजा नवाब आसफुद्दौला ने इन इमारतों के निर्माण की विस्तृत योजना बनाई। इमारतों के निर्माण में लगे व्यक्तियों को पारिश्रमिक मिलता था। उस समय अच्छे अच्छों ने इन इमारतों के निर्माण में अपना हाथ लगाया था। बताया जाता है कि उस समय करीब 22 हजार लोगों को इस योजना के अंतर्गत काम मिला था।

    रूमी दरवाजा का नक्शा वास्तुशिल्प किफायतउल्ल ने बनाया था। इसके निर्माण में लखौड़ी ईंट और बादामी चूरे का कमाल नजर आता है। रूमी दरवाजा में लोहा या लकड़ी का कोई भी इस्तेमाल नहीं किया गया है। रूमी दरवाजे की इस विशेषता ने भी इसे दुनिया जहान में प्रसिद्धि दिलाई। रूमी दरवाजे की ऊंचाई 60 फीट है। इसके सबसे ऊपनी हिस्से पर अठपहलू छतरी बनी हुई है। इस छतरी तक पहुंचने के लिए रास्ता भी बना हुआ है। रूमी दरवाजे की सजावट में हिंदू मुस्लिम कला का सम्मिश्रण देखने को मिलता है।