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    Navratri 2022: लक्ष्मण के पुत्र चंद्रकेतु से जुड़ा है मां चंद्रिका देवी का कथानक, पढ़ें मंदिर का इतिहास

    By Jagran NewsEdited By: Vikas Mishra
    Updated: Mon, 03 Oct 2022 01:04 PM (IST)

    Navratri 2022 चंद्रिका देवी मंदिर में सूखे मेवे का प्रसाद चढ़ाया जाता है। गर्भगृह में आम श्रद्धालु जाकर पूजन कर सकते हैं। मनोकामना पूरी होने पर मां को चुनरी चढ़ाने के लिए आसपास के जिलों से भी श्रद्धालु यहां आते हैं।

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    Navratri 2022: सिद्धपीठ के एक बार दर्शन के बाद बार-बार आने की चाहत श्रद्धालुओं को में जागृत होती है।

    Navratri 2022: लखनऊ, जागरण संवाददाता। सिद्धपीठ के रूप में स्थापित मां चंद्रिका देवी के दर्शन मात्र से सभी दु:ख दूर होते हैं। मंदिर में मां चंद्रिका देवी साक्षात पिंडी स्वरूप में विराजमान हैं। दक्षिण में भगवान शिव मंदिर के अलावा नौ दुर्गा स्थापित हैं। 

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    इतिहासः बख्शी का तालाब में स्थापित सिद्धपीठ के एक बार दर्शन के बाद बार-बार आने की चाहत श्रद्धालुओं को में जागृत होती है। मान्यता है कि त्रेता युग में लक्ष्मण के पुत्र चंद्रकेतु अश्वमेध यज्ञ के अश्व को लेकर आदि गंगा गोमती नदी के तट पर कटकबासा के घनघोर जंगल में विश्राम के लिए ठहरे थे। उसी समय अमावस्या की अर्द्धरात्रि में उन्हे जब भय लगने लगा तो उन्होंने अपनी मां उर्मिला द्वारा बताए गए मंत्रों से देवी मां का उच्चारण करने लगे।

    तभी जंगल में चंद्रघटा छा गई और और चंद्रकेतु का भय दूर हो गया। इसी स्थान पर मां की स्थापना हो गई। इस पौराणिक तीर्थ की द्वापर युग में जो प्रमाणिकता मिलती है वह स्कंद पुराण में लिपिबद्ध है। इस तीर्थ पर अमावस्या के अवसर पर मेला लगने का इतिहास ढाई सौ साल से अधिक पुराना है। कटकबासा का नाम अब कठवारा हो गया जहां सिद्धपीठ स्थापित है। 

    मंदिर की विशेषताः नवरात्र में यहां हर दिन मेला रहता है। यहां अमावस्या को लगने वाले मेले में जहां चंद्रिका देवी मंदिर पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। मंदिर के उत्तर दिशा में स्थित सुधंवा कुंड स्थित है। मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से कुष्ठ रोग जैसी बीमारियां दूर हो जाती हैं। चंद्रिका देवी मंदिर में सूखे मेवे का प्रसाद चढ़ाया जाता है। गर्भगृह में आम श्रद्धालु जाकर पूजन कर सकते हैं। मनोकामना पूरी होने पर मां को चुनरी चढ़ाने के लिए आसपास के जिलों से भी श्रद्धालु यहां आते हैं। मंदिर परिसर में नव दंपतियों के साथ ही मुंडन व नामकरण के संग जनेऊ जैसे संस्कार भी होते हैं। 

    नवरात्र के सभी दिन मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। सुबह मां भगवती का भव्य श्रृंगार किया जाता है। इसके बाद श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं। सुबह छह बजे तथा शाम को आठ बजे भव्य आरती होती है। -राजेश सिंह चौहान, सदस्य 

    श्रद्धालुओं को दर्शन करने में परेशानी न हो इसके लिए महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग कतारें लगाई जाती हैं। मंदिर में सुरक्षा के लिए मेला कमेटी के स्वयं सेवक, पुरुष और महिला पुलिस की तैनाती रहती है। सुरक्षा के चलते क्लोज सर्किट कैमरे लगाए गए हैं। -गिरजा श्रीवास्तव, सदस्य