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    Emergency 1975: आपातकाल की कहानी, लोकतंत्र सेनानियों की जुबानी, पुल‍िस बोली- आओ बताएं हवाई जहाज कैसे बनाते हैं

    By Prabhapunj MishraEdited By: Prabhapunj Mishra
    Updated: Sun, 25 Jun 2023 11:15 AM (IST)

    Emergency 1975 In India 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा की थी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था।

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    Emergency 1975 In India: भारत में आपातकाल का काला अध्‍याय

    लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। 25 जून 1975 में आपातकाल घोषित हुआ था। इस दौरान सरकार के विरुद्ध षडयंत्र रचने के आरोपों में कई लोगों को जेल भेज दिया गया। रविवार को आपातकाल की 48वीं बरसी है। 21 मार्च 1977 तक 21 महीने की अवधि के लिए लगे आपातकाल का दर्द लोकतंत्र सेनानियों के दिलों अभी भी ताजा हैं। लोकतंत्र सेनानियों ने आपातकाल की कहानी बयां कर दर्द को साझा किया।

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    और मेरे पैजामे के साथ हुआ गौना

    कानपुर रोड एलडीए कालोनी न‍िवासी रमाशंकर त्रिपाठी ने बताया क‍ि आलमबाग में भीड़ को बुलाकर सभा करने और सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने के आरोप में सात सितंबर 1975 को गिरफ्तार कर लिया गया।

    • पहले कृष्णानगर के केशवनगर में रहता था। कृष्णानगर पुलिस ने गिरफ्तार किया, लेकिन कृष्णानगर में हवालात नहीं थी, वहां से आलमबाग थाने लाया गया। हवालात में एक चोर और एक पागल पहले से बंद थे।
    • पागल रातभर बाथरूम करता और फिर उसे पी जाता। उसकी स्थिति देखकर रात कटना मुश्किल था। नौ जनवरी 1977 तक जेल में बंद रहा। मेरी शादी हो चुकी थी, लेकिन गौना नहीं आया था।
    • गौने की तारीख आ गई तो पिता दल बहादुर त्रिपाठी आए और जेल से मेरा पैजामा लेकर गए। मेरी पत्नी सुनीता तिवारी मेरे घर आ गई। मेरे साथ बंद हुए राम सागर मिश्रा का नैनी जेल में स्थानांतरण होने लगा। तभी मैने विरोध करना शुरू कर दिया।
    • जिला प्रशासन के एडीएम टीएन मिश्रा समझाने आए तभी राम सागर मिश्रा ने एडीएम को थप्पड़ जड़ दिया। इसी बीच राम सागर मिश्रा जी का जेल में ही निधन हो गया। उन्हीं के नाम पर रामसागर मिश्र नगर बसाया गया जो वर्तमान में इंदिरानगर है।

    आंटा गूथते हाथों में पड़ गए थे छाले

    इंदिरानगर राजेंद्र तिवारी ने वो दौर याद करते हुए बताया क‍ि मैं लखनऊ विवि के छात्रावास में रहता था। जनसंघ से जुड़ाव होने के कारण मैं नाना जी देशमुख का आदर करता था। नाना जी ने एक कार्यकर्ता को बचाने के लिए पुलिस की लाठी को अपने हाथ पर रोक लिया था, जिससे उनका हाथ टूट गया।

    • बिहार में हुई इस घटना के बाद मैं नानाजी के सिद्धांतों के और करीब आ गया। विद्यार्थी परिषद का सह महामंत्री होने के कारण मैं छात्र राजनीति में भी सक्रिय था। जनसंघ की ओर से मुझे राजधानी आए नानाजी देशमुख को चिी देने के लिए कहा गया। मैं खुश था कि इसी बहाने उनसे मुलाकात भी हो जाएगी।
    • पत्र लेकर निकला तो किसी मुखबिर ने कैसरबाग पुलिस को सूचना दे दी। कैसरबाग पुलिस ने मेरी तलाश शुरू कर दी। मैंने भी ठान लिया था कि मैं चिट्ठी पहुंचाकर ही रहूंगा।
    • उस समय कैसरबाग जाते समय ओडियन के पास नाला हुआ करता था। पुलिस ने नाकेबंदी कर मुझे पकड़ना चाहा तो मैंने पहले नानाजी देशमुख की गुप्त प्रत‍ि को चबा लिया।
    • कागज के दूसरे बंडल को मैंने नाले में फेंक दिया। फिर क्या था। पुलिस का कहर टूटा और मेरी खूब पिटाई हुई, लेकिन मैंने नानाजी देशमुख का ठिकाने का पता नहीं बताया।
    • 30 जून 1975 को मुझे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। जेलर नाराज होता था तो भंडारे में भेज देता था। भंडारे में आटा गूथते हुए हाथों में छाले पड़ जाते थे, जब खाना खाने बैठता था तो आगे से थाली खींच लेते थे।

    आओ बताते हैं कि हवाई जहाज कैसे बनाते हैं

    इंदिरानगर डा. अजय शर्मा ने उस काली अवध‍ि को याद करते हुए कहा क‍ि तख्ता पलट की साजिश रचने और सत्याग्रह करने के आरोप में मुझे 25 नवंबर 1975 में गिरफ्तार कर लिया। मेरी उम्र 15 साल थी। हाईस्कूल की परीक्षा दे चुका था।

    • हसनगंज पुलिस ने लखनऊ विवि के पास से मुझे इसलिए गिरफ्तार कर लिया कि मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ा था। गिरफ्तारी के बाद छह दिन तक मुझे हसनगंज कोतवाली में रखा गया। तत्कालीन दारोगा ने मुझे पंखे से लटका दिया और बोला, आओ अब तुम्हे बताते हैं कि हवाई जहाज कैसे बनता है।
    • दारोगा ने पैरों पर डंडा बरसाना शुरू कर दिया। मेरे पिता मुंशीराम शर्मा रेलवे में नौकरी करते थे। उनसे भी दारोगा ने नहीं मिलने दिया।
    • छह दिन बाद सूरज त्रिवेदी, गणेश राय, सुरेश व बसंत के साथ मुझे जिला कारागार में रख दिया गया। सुविधाएं तो दूर, खाना तक सही नहीं मिलता था। एक दिन सभी ने मिलकर हंगामा करना शुरू कर दिया। पीएसी बुलाकर जेल में जमकर लाठीचार्ज हुआ। मेरी मां विद्या शर्मा मुझे देखने के लिए परेशान थीं।
    • पिता जी तो कई बार मुझसे मिलने आए, लेकिन माता जी को साथ लाने में संकोच करते थे। उनको दिलासा देते रहे। इसके बाद मुझे फतेहगढ़ जेल भेज दिया गया। करीब सवा साल मैं जेल से रहा। जेल में पढऩे की सुविधा थी तो जेल से ही इंटर किया और बीएएमएस पहले वर्ष की पढ़ाई भी जेल से की।