समाजवादी पार्टी में बड़े नेताओं के त्यागपत्र से बढ़ी बेचैनी, कुछ और भी नेता हैं कतार में...
राज्यसभा सदस्य नीरज शेखर के बाद सुरेंद्र नागर के त्यागपत्र देने से समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता मायूस हैं।
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन और बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद से समाजवादी पार्टी को छोड़कर जाने वालों का सिलसिला बंद नहीं होने से सपा संगठन में बेचैनी बढ़ गई है। राज्यसभा सदस्य नीरज शेखर के बाद सुरेंद्र नागर के त्यागपत्र देने से कार्यकर्ता मायूस हैं। इसके चलते प्रदेश की 13 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तैयारी प्रभावित होती दिख रही है।
लोकसभा चुनाव में बसपा से गठजोड़ करने और बाद में टूट जाने का नुकसान समाजवादी पार्टी को हुआ। लोकसभा में सदस्य संख्या बसपा से कम हो गई। वहीं वरिष्ठ नेताओं का पार्टी छोड़कर जाने का क्रम जारी है। पूर्वांचल में नीरज शेखर और पश्चिमी उप्र में सुरेद्र नागर का त्यागपत्र पार्टी को बड़ा झटका है। एक माह के भीतर राज्यसभा के दो सदस्यों के अलावा अभी कई प्रमुख नेता भाजपा नेतृत्व के संपर्क में हैं। नागर के इस्तीफे के बाद अब राज्यसभा में सपा के 11 सदस्य बचे हैं। इनमें जावेद अली, तजीन फातिमा, बिशंभर प्रसाद निषाद, जया बच्चन, चंद्रपाल सिंह, प्रो. रामगोपाल, सुखराम सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, रवि प्रकाश, संजय सेठ व रेवती रमण हैं।
अभी और इस्तीफे संभव
सपा से अभी कई बड़े नेताओं के त्यागपत्र की उम्मीद जतायी जा रही है। इसमें मध्य क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले राज्यसभा सदस्य का नाम भी चर्चा में है। इसके अलावा विधान परिषद के दो सदस्यों के नाम भी लिए जा रहे हैं। विधानसभा में 13 रिक्त सीटों का उपचुनाव कार्यक्रम घोषित होते ही प्रदेश स्तर के कुछ प्रमुख नेताओं के इस्तीफे होने की आशंका जताई जा रही है।
अटका संगठन का पुनर्गठन
सपा में मची भगदड़ को देखते हुए संगठन का पुनर्गठन भी अटका है। सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद संगठन को नए सिरे से तैयार करने की चर्चा चल तो रही है, लेकिन अभी इसमें तेजी नहीं है। संगठन में परिवर्तन कर ही सपा वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में उतरने की रणनीति बनाए है, लेकिन डर है कि पदाधिकारियों की घोषणा होते ही कुछ और त्यागपत्रों का झटका न लग जाए।
बसपा का दांव भारी
उपचुनाव में उतरने की बसपा की घोषणा भी सपा के लिए खतरे की घंटी है। प्रदेश की जिन 13 सीटों पर विधानसभा के उप चुनाव होने हैं उनमें से सपा और बसपा के कब्जे वाली एक-एक सीट ही है परंतु बसपा का दलित- मुस्लिम समीकरण भारी पड़ता दिख रहा है। इसकी काट के लिए सपा की ओर से रालोद जैसे छोटे दलों में तालमेल की कोशिशें की जा रही हैं।
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