मिसाल : कुदरती ढंग से आहार नली बढ़ाकर बच्चे के पेट में जोड़ी
केजीएमयू के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग में टिश्यू इंजीनियरिंग तकनीक से देश का पहला सफल ऑपरेशन हुआ। दस हजार बच्चों में से एक बच्चे में होती है यह विकृति। साढ़े छह साल में चार बार सर्जरी कर बढ़ाई आहार नाल।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। केजीएमयू के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग में कुदरती ढंग से बच्चे की आहार नली को बढ़ाकर पेट से सफलतापूर्वक जोड़ा गया। टिश्यू इंजीनियरिंग तकनीक से देश में यह पहला सफल ऑपरेशन करने का दावा किया गया है। विदेशों में भी अभी तक इस तकनीक से आहार नाल को सफलतापूर्वक पेट से जोडऩे के 19 मामले ही हैं। पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के प्रो. एसएन कुरील व उनकी टीम ने यह कमाल कर दिखाया है। सुलतानपुर में रहने वाले साढ़े छह वर्षीय दिवाकर तिवारी ने चाकलेट खाकर ऑपरेशन की सफलता सबके सामने दिखाई। पैदा होने के बाद साढ़े छह साल में उसकी चार चरण में सर्जरी कर आहार नली की लंबाई प्राकृतिक ढंग से बढ़ाई गई।
प्रो. एसएन कुरील ने बताया कि छह फरवरी 2012 को दिवाकर तिवारी का जन्म सुलतानपुर में हुआ था। जन्म होते ही इसके मुंह से झाग व लार निकल रही थी। दूसरे ही दिन इसे केजीएमयू लाया गया। दिवाकर को पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग में रखा गया। इसे इसोफैगल एट्रेसिया नामक असामान्य जन्म दोष था, इसमें पेट से गले को जोडऩे वाली आहार नली विकसित नहीं हो पाती। ऐसे में आहार नली क्लैविकल यानी कॉलर बोन के ऊपर ही समाप्त हो जाती है। ऐसे में सांस नली में लार के कारण निमोनिया होने और मृत्यु होने का खतरा रहता है। यह विकृति दस हजार बच्चों में से किसी एक बच्चे में होती है।
अभी जो प्रचलित तकनीक है उसके अनुसार ट्यूब फीडिंग के लिए सर्जरी द्वारा पेट में ट्यूब डाला जाता है और आधी-अधूरी आहार नली को लार के लिए रास्ता देने को त्वचा से बाहर किया जाता है। एक बार बच्चा दो साल का हो जाता है और उसका वजन बढ़ जाता है तो ट्यूब को पेट या आंत से जोड़ दिया जाता है। इस पद्धति में पेट में एसिड बनने से वह आंत में जाता है, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है और कैंसर तक का खतरा रहता है। वहीं टिश्यू इंजीनियरिंग तकनीक से फैशिया को टुकड़े में बांटकर आहार नाल की लंबाई बढ़ाई जाती है। इसमें आहार नाल को छाती व हृदय के पीछे से सफलतापूर्वक पेट से जोड़ा जाता है। वर्ष 1994 में सबसे पहले जापान में डॉ. कीमूरा ने इस तकनीक का प्रयोग किया। अभी तक विश्व में 19 केस हुए हैं। भारत में यह पहली बार हुआ है।
2012 में हुआ पहला ऑपरेशन
प्राेफेसर एसएन कुरील ने बताया कि पहली बार 2012 में ऑपरेशन हुआ और आखिरी बार छह सितंबर 2018 को सर्जरी हुई। उन्होंने बताया कि आहार नली के ऊपर म्यूकोजा, मसल्स व फैशिया की तीन परतें होती हैं। फैशिया बहुत पतली केवल 0.3 एमएम की होती है। फैशिया को इस तरह टुकड़े में विभाजित किया जाता है कि मसल्स में कोई इंजरी न हो। टुकड़े में विभाजित फैशिया री-जनरेट होती रहती है और आहार नली बढ़ जाती है।
छह वर्ष में खर्च हुए मात्र 30 हजार
सुलतानपुर से अपने बेटे दिवाकर को लेकर आए उसके पिता सुनील तिवारी व मां स्वाति तिवारी ने बताया कि सिर्फ 30 हजार रुपये पिछले साढ़े छह वर्ष में खर्च हुए।
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