शहरनामा: वो वाला किस्सा सुनाओ.. यहां पढ़ें, लखनऊ की फिजां में तैर रहीं अंदरखाने की खबरें
Shaharnama Weekly column Dainik Jagran Lucknow यहां पढ़ें दैनिक जागरण लखनऊ के साप्ताहिक कालम शहरनामा में शहर की हर वह खबर जो अभी तक पर्दे के पीछे है। पढ़ें एक अलग अंदाज में हर वह खबर जिसे जानना आपके लिए जरूरी है।
लखनऊ, [अम्बिका वाजपेयी]। भले ही लखनऊ में इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन हुए काफी समय बीत गया, लेकिन एक साहब को अनूठा किस्सा दे गया। उनके करीबी जब मिलते हैं तो यही कहकर छेड़ते हैं कि वो वाला किस्सा सुनाओ। साहब पहले झिझकते हैं, लेकिन थोड़ा इसरार करने पर मान जाते हैं। हूुआ कुछ यूं कि साहब की जिम्मेदारी एक बड़े बिजनेसमैन को आयोजन स्थल तक पहुंचाने की थी।
साहब आगे फ्लीट लेकर चले लेकिन वह तो आगे निकल गए और बिजनेसमैन की गाड़ी पीछे रह गई। उसी समय पीएम की फ्लीट के आने की घोषणा आते ही सारा ट्रैफिक रोक दिया गया। बिजनेसमैन की गाड़ी रह गई और साहब पहुंच गए। साहब की सांस अटक गई लेकिन बिजनेसमैन की गाड़ी जैसे-तैसे पहुंच ही गई। गाड़ी रुकते ही साहब पानी लेकर दौड़े तो ड्राइवर ने कहा, मालिक फ्रांस का पानी पीते हैं। साहब अब भी फ्रांस के पानी का किस्सा मजे से सुनाते हैं।
ऊपर से सख्ती है, अभी रुक जाओः बेपटरी हो चुके यातायात को सुधार न पाने पर कई अफसर पटरी से क्या उतरे दूसरी जगह भी उसका असर दिखने लगा। डीएम समेत कई आला अफसर सड़क पर उतर चुके हैं तो सुधार तो होना ही था। अब आलम यह है कि दो-तीन का निलंबन का खौफ उन चौराहों पर भी दिखने लगा है जहां से निकलना मुश्किल था। बूथ में बैठकर गैर जिलों के नंबर की गाड़ियां देखने वाले अब बेतरतीब खड़ी गाडिय़ां भी देखने लगे हैं। जिन फुटपाथों से जेब भरती है उन्हें खाली रखना पड़ रहा है। डर यही है कि पता नहीं किस अफसर की सवारी उधर घूम जाए। फुटपाथ पर कुर्सी डालकर डग्गामार वाहनों की पर्ची काटने वाले महोदय अब स्टूल आड़ में रखकर गाड़ियां चलवा रहे हैं। ठेले वालों को यही दिलासा दिया जा रहा है कि ऊपर से बड़ी सख्ती है, अभी रुक जाओ। देखना है कि सख्ती कितने दिन रहती है।
कुछ हो पाए तो रुक जाऊंः सेहत महकमे में तबादलों को लेकर मची रार जगजाहिर है। इन सबके बीच उनकी जान सांसत में है, जो तबादला रुकवाने की जुगत में थे। पहुंच के हिसाब से पव्वा लगाकर मुतमईन थे कि कुर्सी बरकरार रहेगी लेकिन सब गड़बड़ हो गया। अब हालत यह है कि बड़ों की लड़ाई में छोटे प्यादे किनारे रहकर समय का फेर देख रहे हैं। एक बड़े संस्थान के डाक्टर साहब तबादला रुकवाने के लिए सूची के पहले से ही लगे थे। आश्वासन भी मिला लेकिन उन्हें रवानगी का परवाना थमा दिया गया। मंत्रीजी की चिट्टी के बाद जब हंगामा बरपा तो लगा कि शायद इसी बीच उनका तबादला रुक जाए। इस बार उन्होंने दूसरा पव्वा लगाया पर आश्वासन ही मिला। दूसरी जगह ज्वाइन करने की मियाद भी पूरी हो गई लेकिन आदेश नहीं बदला। वह अपने जुगाड़ को फोन मिलाकर पूछ रहे हैं कि कुछ हो पाए तो रुक जाऊंवरना ज्वाइन कर लूं।
सदस्यता अभियान की होड़ः व्यापार मंडल चुनाव की गणित देखिए...हर तीन साल में संगठन का सदस्यता शुल्क जमा करो।संगठन का बैंक बैलेंस मजबूत करो। बड़ी पोस्ट पर तो कब्जा रहेगा ही, मजे की बात तो यह है बड़े कारोबारी को विशेष शुल्क लेकर आजीवन सदस्यता दी जाती है। छोटे व्यापारियों का कहना है कि यह शुल्क नहीं, रजिस्टर वसूली है। सार्वजनिक होना चाहिए कि व्यापार मंडल में जो चंदा आ रहा है, उसका उपयोग छोटे व्यापारियों के लिए क्या किया जा रहा तुर्रा यह भी कि आजीवन चंदा देने का मतलब पूरी जिंदगी आप ही अध्यक्ष और महामंत्री रहने वाले है। चुनाव से पूर्व तय हो जाता है अध्यक्ष, महामंत्री सहित अपने विश्वासपात्र ही कोष संभालेंगे क्योंकि बाकी पद तो भीड़ जुटाने वाले चाहिए। टीस यह है कि नेता अब संगठन की जगह पैसे और पावर को तवज्जो दे रहे हैंं। इसके अलावा हर साल चंदे पर भी महंगाई की मार पड़ रही है।