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    Taste Of Lucknow: लखनऊ के हर कोने पर दरख्त हैं खाने और खिलाने वालों के

    By Dharmendra PandeyEdited By: Dharmendra Pandey
    Updated: Sun, 02 Nov 2025 06:46 PM (IST)

    Taste Of Lucknow: यूनेस्को ने लखनऊ को क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी से नवाजा है। यहां का खानपान विश्वस्तरीय है यह बात समझने में यूनेस्को को देर हो गई। लखनऊ की लज्जत को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं, स्वाद से रची-बसी गलियों का यह शहर सदियों से जायके का मानक रहा है।

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    हजरतगंज स्थित शुक्ला चाट

    आशुतोष शुक्ल, जागरण, लखनऊ: प्रदेश के बाकी शहरों में जब चाट वाले घर लौटने की तैयारी कर रहे होते हैं, लखनऊ के गोपाल बाबू तब अपना ठेला लेकर चौक में इलाहाबाद बैंक के पास प्रकट होते हैं। रात नौ बजे। ठेले पर देसी घी से बनी चाट होती है, जिसे खाने का सिलसिला आधी रात के बाद तक चला करता है।
    कुछ समझे आप! खिलाने वाला जितना लाजवाब है, खाने वाले भी उतने ही बेजोड़ हैं, जो रात के खाने के बाद चाट उड़ाने चौक पधारते हैं और जितने प्रेम से रोटी या पराठे खाकर आए होते हैं, उतना सम्मान पानी वाले बताशों को देते हैं। यूनेस्को को बड़ी देर लगी लखनऊ को जानने में, हम लखनऊ वाले तो गली कोने घूम-घूम कर बरसों पहले अपने शहर के खानपान को नंबर वन का दर्जा दे चुके थे।
    जैसे बनारस लस्सी की राजधानी है, ठीक वैसे ही लखनऊ चाट की राजधानी है। जैसे बनारस में मशहूर दुकानों के अलावा भी सब जगह आपको लस्सी की बहार मिलेगी, वैसे ही लखनऊ का हर कोना टिक्की और उसके भाई-बहनों से मुस्कुराता मिलेगा। न हो भरोसा तो किसी दिन लखनऊ यूनिवर्सिटी के कुलपति आवास और कैलाश हास्टल के बीच वाली सड़क से मनकामेश्वर मंदिर की तरफ कूच कर जाएं। राह में तिकुनिया पार्क के पास एक ठेला खड़ा मिलेगा। उसके तवे के आलू और बन-मटर खाने के बाद छप्पन व्यंजन फेल न लगें तो बनाने और लिखने वाले पर लानत।
    खाने के शौकीन हैं तो सितारा होटल जाकर चाट मंगा ही नहीं सकते, क्योंकि किचन से कमरे तक आते-आते करारी टिक्की बुझी मोमबत्ती हो जाती है। बेजान और लस्त-पस्त। चाट खानी है तो निकलिए घर से और पहुंच जाइए राजा बाजार जहां बीच चौराहे धनिया के आलू और सुहाल मटर प्रतीक्षा में हैं। आलू कड़वे लगें तो पास ही हाजिर है त्रिवेदी जी की दूध वाली बर्फी। यहां से पहले सिटी स्टेशन के पास आज भी चूल्हे पर बना खस्ता मिलता है।

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    पुराने आरटीओ के सामने तिवारी के दही बड़े और टिक्की के दीवाने

    पुराने शौकीनों से बात करेंगे तो फौरन वे आपको अमीनाबाद ले जाएंगे जहां कभी डीसीएम गली में केसरवानी चाट के लिए वैसी ही कतारें लगती थीं जैसी आईपीएल के समय इकाना के बाहर दिखती हैं। लाटूश रोड पर पुराने आरटीओ के सामने तिवारी के दही बड़े और टिक्की के दीवाने इतने कि दोने रखने के लिए जगह कम पड़ जाती। अब तो वहीं श्यामलाल आ गए हैं।

    लखनऊ वाले गर्व से कह सकते हैं-ठेले पर चाट

    अमीनाबाद में पंडित जी की चाट हो या मोहन मार्केट और गड़बड़झाला मोड़ के पास बिकते सुहाल पापड़ी या नजीराबाद से अमीनाबाद में दाखिल होते ही बायीं तरफ बिकने वाली चाट, कोई दुकान या कोई ठेला ऐसा नहीं था जो आपका दिल न चुरा ले जाए। धर्मवीर भारती का प्रसिद्ध निबंध है-ठेले पर हिमालय। लखनऊ वाले गर्व से कह सकते हैं-ठेले पर चाट। हर ठेला धरोहर। अब जब आप अमीनाबाद पहुंच ही गए हैं तो लाटूश और हीवेट रोड पर रत्ती और दुर्गा के खस्ते भी जीमते जाएं। इनके आलू ऐसे कि पेट भरे मन न भरे। फतेहगंज घूमने निकल जाएं तो पुत्तीलाल के हींग के पानी वाले बताशे खाए बिना न लौट आइएगा।

    Taste of Lucknow

    कभी हजरतगंज में जहां मेफेयर सिनेमा होता था, वहीं उसके बाहर एक खोमचे वाला बैठता। शाम को छह बजे आता और नौ बजे तक मालामाल होकर जाता। चौधरी साहब तो थे ही और अब मोतीमहल ने दूसरे शहरों की नाक में दम कर रखा है। वाजपेयी पूड़ी और शुक्ला जी की चाट की गलबहियों से फुर्सत मिले तो लालबाग में नावेल्टी के सामने वाले बरामदे में जैन साहब से मिल आएं। शर्मा जी के गोल समोसे अहा! और लालबाग में बरामदे वाले सरदार जी के छोले भटूरे पंजाब को फेल किए थे।

    बक्से वाले खस्ते न खाए तो आपने जीवन में किया ही क्या

    किस-किस का नाम लें और किसको किससे कम बताएं। सब तो यहां बबर शेर ठहरे। चौक जाएं और कोतवाली के सामने साहबदीन के बक्से वाले खस्ते न खाए तो आपने जीवन में किया ही क्या। शाम को कोतवाली के बगल में एक बार में तेरह तरह के बताशों का मजा लें और सुबह सर्राफे में घुसकर सेवकराम की पूड़ियों और खस्ते का। चौपटिया में टिम्मा के कड़वे तेल के खस्ते देखकर आपने अगर मुंह बना दिया तो आप खाने के कदरदान नहीं। यही खस्ता खा लिया तो दोबारा लेने की गारंटी। चौक में ही दीक्षित जी की चाट है और कोनेश्वर मंदिर के पास जगदीश की चाट। तवे पर सिंकते इनके आलू खाने वाले को मील भर से खींच लाते हैं।

    दिल्ली वाले टिक्की बनाने का सलीका नहीं जानते

    चाट में बहुत कुछ आता है। टिक्की, बताशे, धनिया के आलू, तवे के आलू, मटर, बैंगनी और भी बहुत कुछ। दिल्ली वाले अपने पर खामखां ही गुमान करते हैं, लेकिन टिक्की बनाने का सलीका नहीं जानते। दिल्ली में टिक्की पूड़ी की तरह तली जाती है, जबकि लखनऊ में सेंकी जाती है। जितना सिंकेगी, उतनी ही बांकी निकलेगी। खाने का शऊर अब तो लखनऊ में भी कम हुआ है, क्योंकि नए लड़के पानी के बताशों में प्याज डलवाने लगे हैं। बताशे वो जिनका पानी चटक हो, मटर भरी हो और बताशा कर्र-कर्र बोले। कच्चा प्याज बताशे और टिक्की दोनों को मार देता है।

    तवे पर सिंकी मटर अपने में विरासत

    लखनऊ की तवे पर सिंकी मटर अपने में विरासत है। अभी तो आप पुराने शहर में ही अधिक घूमे हैं, नए में भी हर तरफ अलबेली चाट मिल जाएगी। भूतनाथ में छोटे समोसे उतने ही शानदार हैं जितने कभी चौक में बाटा और श्री लस्सी के पीछे वाली गली में एक बुजुर्ग दम्पति बनाते थे। निशातगंज में शिवभंडार के खस्तों की चर्चा बगैर यह दास्तान अधूरी ही रह जाएगी। एक समय था बाहर से कोई मेहमान आए तो अमीनाबाद जाकर हनुमान मंदिर के दर्शन और नेतराम की कचौड़ियां खातिरदारी का अनिवार्य पक्ष होता। दयाल और प्रकाश की कुल्फी तो उसी समय अंतरराष्ट्रीय ब्रांड हो चुके थे। अब चाणक्य ने नाम कमाया है और प्रकाश ने भी पांव पसारे हैं।

    नरही का दूध और रबड़ी

    नरही का दूध और रबड़ी किसी सूरत चौक से कम नहीं। नरही की शमा अब भी रौशन है। नरही में ही कभी गर्मियों की रात में साइकल पर फेरी वाला आता और बड़े राग में चिल्लाता-हरी-हरी। समझने वाले समझ जाते भांग वाली कुल्फी लाया है। लखनऊ केवल मांसाहारी खानों का नाम नहीं। लहसुन, जीरे और हींग से छौंकी हुई अरहर दाल यहीं का कमाल है। रामआसरे की मलाई गिलौरी और रिट्ज के बूंदी के लड्डू पेट की राहत समझिए। यूनेस्को ने लखनऊ की शान बढ़ाई तो लाजिमी है हम याद करें लखनऊ के नवाबों, कायस्थों, खत्रियों और कान्यकुब्ज ब्राह्मणों को जिन्होंने इस शहर को अपनी-अपनी तरह से सजाया और संवारा।