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अजीबोगरीब नामों से हिट हो रहे हैं लखनऊ के फूड कार्नर, ये है खासियत

लखनऊ में अजीबो गरीब नामों से मशहूर हो रहे हैं रेस्टोरेंट और स्ट्रीट फूड कार्नर

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 08 Feb 2019 07:53 PM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2019 08:10 PM (IST)
अजीबोगरीब नामों से हिट हो रहे हैं लखनऊ के फूड कार्नर, ये है खासियत
अजीबोगरीब नामों से हिट हो रहे हैं लखनऊ के फूड कार्नर, ये है खासियत

 लखनऊ [कुसुम भारती]  शहर हमेशा से अपनी तहजीब और लखनवी मिजाज के लिए मशहूर रहा है। यहां की आबोहवा में ही सलाहियत और अपनेपन की खुशबू घुली हुई है। तहजीब के लिए पहचाने जाने वाले इस शहर की फिजा में पिछले कुछ बरसों में नए तरह के रंग घुलने-मिलने लगे हैं। जिनमें देहाती मिट्टी की सोंधी महक के साथ, कहीं आधुनिकता, तो कहीं निगेटिव अप्रोच भी शामिल है।

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जी हां, कभी फूड बिजनेस को शुरू करने से पहले उसका टाइटल खूब सोच-समझकर रखा जाता था। जिसमें शुद्धता के साथ ईमानदारी भी झलके। मगर, बदलते दौर में अजीबोगरीब टाइटल रखने का ट्रेंड है। जो न केवल लोकप्रिय हो रहे हैं, बल्कि अपने रोचक नामों के साथ ही अपने स्वाद के लिए भी दूर-दूर तक मशहूर हो रहे हैं। 'बेईमान, 'बदनाम जैसे टाइटल आज उनकी पहचान बन चुके हैं। तहजीब के इस शहर में करते हैं सैर, ऐसे ही कुछ अजब नाम, पर गजब स्वाद वाले प्रतिष्ठानों की।

टूटे दिल ने बना दिया 'बेवफा चाय वाला

मेहमाननवाजी की शुरुआत चाय से करते हैं। आपने सुना होगा कि अक्सर मोहब्बत में दिल टूट जाते हैं। बहुत से आशिक हैं जो दिल टूटने के बाद अपना गम गलत करने के लिए शराब को अपनाते हैं। मगर, इन तीन दोस्तों का जब दिल टूटा, तो उन्होंने चाय को अपना साथी बनाया। ब्रेकअप के बाद अक्सर चाय के स्टाल पर जसकरमन गिल, आदित्य और रोमिल बैठते और अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड की बेवफाई का दर्द एक-दूसरे से बांटते। टूटे दिल के इन आशिकों ने एक दिन वहीं तय किया कि अब हम तीनों मिलकर ऐसे ही ब्रेकअप कपल के दर्द को अपनी चाय पिलाकर दूर करेंगे।

बस,2018  में गोमतीनगर फन मॉल के सामने शुरू हो गया 'बेवफा चाय वाला का स्टाल। जहां, तंदूरी और सादी चाय मिलती है। इनकी चाय के स्वाद से ज्यादा इनका स्टाल का टाइटल लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। खास बात यह है कि ब्रेकअप कपल के लिए चाय10  रुपये की और प्रेमी जोड़ों के लिए 15 रुपये की है। पांच रुपये बचाने के चक्कर में ज्यादातर लोग ब्रेकअप वाली चाय ही पीते हैं। दरअसल, जसकरमन गिल, आदित्य और रोमिल तीनों बचपन के दोस्त हैं। जसकरमन मूल रूप से पंजाब के, रोमिल कानपुर के और आदित्य लखनऊ के रहने वाले हैं। तीनों पढ़ाई के साथ ही बेवफा चाय वाला की पार्टनरशिप भी संभाल रहे हैं।

बस यूं ही हो गया 'बेवजह

कई बार कुछ बातें बेवजह ही हो जाती हैं, इसके पीछे वजह ढूंढोगे तो परेशान हो जाओगे। कुछ ऐसा कहना है, गोमतीनगर एक्सटेंशन में स्थित 'बेवजह कैफे के ओनर गौरव श्रीवास्तव उर्फ मस्तो का। जिन्होंने पहले 2013 में बच्चों और युवाओं के लिए बेवजह समिति बनाई। जिसमें थियेटर आर्टिस्ट, सोशल वर्कर और फिल्म मेकर टीम का हिस्सा बने।  फिर 2017 में बेवजह कैफे की शुरुआत हुई।

मस्तो का मानना है कि खाना एक कला है। कला की तरह ही उसमें अलग-अलग रस और स्वाद का होना जरूरी है। जिस तरह चाय को पीने से पहले उसे समझना जरूरी है जो हर किसी की समझ से परे है। मसाला चाय बेवजह कैफे की स्पेशियलिटी है। जिसमें कुछ सीक्रेट मसाले और हर्ब डाले जाते हैं। इसके साथ हरी सब्जियों से तैयार सैंडविच और सलाद सर्व की जाती है। लोगों को नेचुरल, ऑर्गेनिक फूड देने की कोशिश करते हैं। कैफे के कंपाउंड में हमने अपना एक छोटा सा ऑर्गेनिक फार्म हाउस बनाया है, जिसमें सब्जियां उगाते हैं, जिनको हम अपने खाने में इस्तेमाल करते हैं।

'बदनाम हुए तो क्या हुए, नाम तो हुआ

चाय के बाद आइए कुछ मुंह मीठा करते हैं। 'बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ या तो यूं कह दो के, नाम तो बदनाम में भी है, या बदनाम में भी नाम है, लेकिन नाम तो दोनों में है कुछ ऐसा कहना है, आलमबाग स्थित 'बदनाम लड्डू शॉप के ओनर, बृजेश सिंह का। इनके बदनाम लड्डू अपने स्वाद के लिए न केवल अपने क्षेत्र में, बल्कि दूर-दूर तक मशहूर हैं। ऐसा नाम रखने के पीछे वजह क्या रही, इस पर वह कहते हैं, बहुत पहले कानपुर गया था, जहां मैंने ठग्गू के लड्डू और बदनाम कुल्फी की दुकान देखी। फिर २००० में जब मैंने अपनी दुकान खोली तो पंडित ने बताया कि मेरे लिए 'ब अक्षर शुभ होगा। जिससे मेरा नाम भी शुरू होता है, बस बदनाम कुल्फी से प्रेरित होकर मैंने दुकान का नाम बदनाम लड्डू रख दिया। सूजी, मावा, काजू, गोंद, इलायची, देशी घी और चीनी से तैयार बदनाम लड्डू नाम ही नहीं स्वाद के लिए भी लोगों की जुबान पर चढ़ चुका है। इसी तरह आशियाना और अलीगंज में 'बेईमान लड्डू प्रतिष्ठान भी अपने नाम से लोगों को खूब लुभा रहे हैं।

शहरी खा रहे 'देहाती रसगुल्ले

मिठाई की दुकान खोलने से पहले पूरे शहर की जायजा लेने के बाद, आरएस तिवारी ने जब अप्रैल, २०१७ में सेक्टर क्यू अलीगंज में 'पंडित जी के देहाती रसगुल्ले के नाम से दुकान खोली, तो लोगों ने हाथोंहाथ लिया। सर्वे के दौरान किसी भी रेस्टोरेंट या होटल में रसगुल्लों को मिट्टी के मटके में सर्व होते नहीं देखा। बस, उन्होंने तय किया कि वह अपनी दुकान में रसगुल्लों को मिट्टी की हांडी में देंगे। यहीं से शुरू हो गया देहाती रसगुल्लों का सफर। शुद्ध मावा से तैयार रसगुल्लों का स्वाद मिट्टी की हांडी में और भी बढ़ जाता है। तीन साइज की मटकियों में पांच से 20  रसगुल्ले दिए जाते हैं। प्रति रसगुल्ला 11, 16और 22 रुपये का है। इसके अलावा लड्डू, पेड़ा, बर्फी, रसमलाई, राजभोग, कलाकंद, गुलाब जामुन, गाजर का हलवा आदि भी यहां मिलता है।

दिल तो साफ, पर दाल है काली

देश-विदेश घूमने के शौकीन आरिफ कमाल खान ने जब अपना रेस्टोरेंट खोलने का प्लान बनाया तो, बहुत सोचने के बाद यह पाया कि पॉजिटिव सोच लेकर तो सभी चलते हैं। मगर, एक बार निगेटिव अप्रोच अपनाकर भी देखा जाए। 2006 में तुलसी सिनेमा और प्रेस क्लब के बीच से गुजरने वाली कदर रोड पर 'दाल में कालाÓ नाम से एक फूड कार्नर खोला। खास बात यह है कि टाइटल में भले ही दाल जुड़ा है, मगर यहां पर दाल की एक भी वैराइटी नहीं मिलती। यहां पर मुगलई और अवधी व्यंजनों की कई वैराइटी ऑनलाइन आर्डर पर मिलती हैं। आरिफ कहते हैं, भले ही यह नाम निगेटिव अप्रोच वाला है, मगर यही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचता है। जोमैटो के जरिए आर्डर लिए जाते हैं।

स्पेशल बच्चों, पेट्स और बुजुर्गों को 'कैफे फ्रेंजीपानी में खास अटेंशन

अक्सर बुजुर्गों, स्पेशल बच्चों और पेट्स को किसी रेस्टोरेंट में ले जाने से लोग कतराते हैं। इन सभी की मेहमाननवाजी का खास ख्याल रखा जाता है, 'कैफे फ्रेंजीपानीÓ में। जहां उनको खाना परोसने के साथ साथ ही स्पेशल अटेंशन भी दी जाती है। गोमतीनगर के वास्तुखंड एरिया में कठौता झील के सामने बने इस कैफे को स्पेशल एजूकेटर मनीषा सुशील ओझा ने दो साल पहले शुरू किया था। पति सिविल इंजीनियर हैं, दो बच्चे हैं जो बाहर पढ़ रहे हैं। खाना बनाना और खिलाना शौक था, जिसे इस कैफे के जरिए आगे बढ़ाया। इस अजीबोगरीब टाइटल के बारे में वह कहती हैं, यह चंपा के फूल का सांइटिफिक नाम है। बेटी को लेने उसके स्कूल जाती थी, तो वहां फ्रेंजीपानी फूल का एक पेड़ था, जिसके नीचे मैं उसका इंतजार करती थी, उसकी खुशबू मुझे बहुत अच्छी लगती थी। एक दिन मैंने वहां पर गिरा चंपा का एक फूल उठा लिया। बेटी को लगा कि मुझे यह फूल पसंद है, तो वह रोज मेरे लिए फूल लाने लगी। जब मैं कैफे का टाइटल सोच रही थी, बेटी ने कहा कि मम्मा फ्रेंजीपानी रख लीजिए। बहुत कम लोग हैं जो इसका सही नाम ले पाते हैं। अक्सर लोग फिरंगी पानी, फिरंजी पानी कहते हैं।

मुंह का स्वाद बदलेगा 'घंटा पान वाला

चाय और खाने-पीने के बाद लोग पान खाकर अपने मुंह का स्वाद बदलते हैं। तो, अगर आपको भी पान की अलग-अलग वैराइटी खाने का मन हो, तो चले आइए तुलसी के सामने प्रेस क्लब की दीवार से लगी, अनिल हलचल की गुमटी के पास। जिसे उन्होंने नाम दिया है 'घंटा पान वाला। झारखंड निवासी अनिल मोदी कहते हैं, 16 साल पहले लखनऊ आया था। यहां आकर मैंने अपने नाम के आगे हलचल लगाना शुरू कर दिया। मुझे अलग स्टाइल पसंद है। फिर जब मैंने पान की गुमटी खोली, तो अलग दिखने के लिए मैंने यह नाम रख दिया। जो लोगों को खूब पसंद आता है।

कुछ और भी हैं नाम

ऐसे नामों की फेहरिस्त तो बहुत लंबी है। ऐसे में, सबकी पूरी डिटेल तो नहीं दी सकती है। मगर, कुछ और भी नाम हैं लोगों का ध्यान खींचते हैं। जिनमें जानकीपुरम के साठ फिटा रोड स्थित भूखा शेर, अलीगंज में बेईमान लड्डू, बहन की रसोई, इसी एरिया में द भुक्खड़ ढाबा, जेल कैफे, हंगर प्वाइंट आदि।


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