ओसरी ड्रेस में लखनऊ पहुंची श्रीलंका की शिक्षिका, इन कलाकृतियों के माध्यम से दे रहीं बुद्ध का संदेश
लखनऊ के गोमतीनगर में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय बुद्धिस्ट कॉन्क्लेव में हिस्सा लेने आई हैं श्रीलंका की शिक्षिका। कला के माध्यम से दे रहीं बुद्ध का संदेश। बोलीं भारतीय संस्कृति को समझने के लिए मैं यहां आई हूं।

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। कला किसी मोहताज नहीं होती और इसे किसी धर्म, जाति, संप्रदाय या देश में नहीं बाटा जाता। बौद्ध धर्म हमारी बौद्धिक क्षमता को परखने का काम करता है। आपकी सोच ही जीवन का आधार होता है जिस पर चलकर आप आम और खास होते हैं। श्री लंका से आई शिक्षिका चामिनी वीर सुरिया ने कुछ ऐसे ही संदेशों के साथ अपनी कला के माध्यम से बौद्ध धर्म के रहस्य को बता रही थीं।
गोमतीनगर के अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान परिसर में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय बुद्धिस्ट कॉन्क्लेव में हिस्सा लेने आई चामिनी वीर सुरिया ने बताया कि श्रीराम को जिस तरह से भारत में भगवान के स्वरूप में पूजा जाता है, उससे इतर श्रीलंका में रावण को सिर्फ एक राजा की संज्ञा दी जाती है। श्रीराम को भारत के भगवान के रूप में माना जाता है। एक दर्जन से अधिक चित्रों के माध्यम से बौद्ध दर्शन को बताने का प्रयास कर रही हूं। भारतीय संस्कृति को समझने के लिए मैं यहां आई हूं। श्री लंका में भगवान बुद्ध को सबसे बड़े भगवान की संज्ञा दी जाती है।
चामिनी वीर सुरिया ने बताती हैं कि श्रीलंका की बौद्ध धर्म ग्रहण करने वाली महिलाओं की ओर से पहनी जाने वाली ओसरी श्रीलंका साड़ी धारण करके वहां की सांस्कृतिक विरासत को बताने का प्रयास कर रही हूं। पहली बार मैं लखनऊ आई हूं और गौतम बुद्ध विहार शांति उपवन में जाकर गौतम बुद्ध की जीवनी से संबंधित संग्रह को देखने का प्रयास करूंगी। जीवन दर्शन को समझने के लिए बौद्ध धर्म को समझना पड़ेगा। एक दर्जन से अधिक पेंटिंग्स के माध्यम से बौद्ध धर्म को बताने का प्रयास कर रही हूं। एक भी व्यक्ति को यह मैं समझा सकी तो मेरा आना सफल हो जाएगा।
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