कभी चिनहट पॉटरी के नाम से थी मशहूर, आज गुम हो गई इसकी खनक
देश ही नहीं विदेशों में भी पॉटरी को लोगों ने दी काफी सराहा। एक स्थान पर 11 इकाइया उत्पादन को दे रही थीं नई दिशा।
लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। चलती चाक और कारीगरों की चहल-पहल, ऊंची चिमनियों से निकलते धुएं की धुंध और बनने वाले बर्तनों की खनक, मुझे कभी नहीं भूलती। चिनहट पॉटरी के नाम से मैं मशहूर थी, लेकिन अब चीनी मिट्टी तक के बने बर्तनों की आवाजें सुनने की बेकरारी मुझसे ज्यादा किसको होगी। सरकार बदलती है तो मेरे अंदर आशा जगती है कि शायद मेरे इन दीवारों की बदनसीबी पर कोई तरस खा जाए। अब तो लघु उद्योग विकास विभाग के दावे भी बेमानी लगने लगे हैं। गुमनामी के अंधेरे के बीच अब मेरे जेहन से भी पुरानी दुनिया की तस्वीर ओझल सी हो रही है। दैनिक जागरण आपको इसके संघर्ष की कहानी बता रहा है। मुझे याद आता है कि चीनी मिट्टी को मिलाकर चाक पर उन्हें आकार देकर जब सिरेमिक पेंट किया जाता था तो बर्तनों की चमक से मेरी दीवारों चमक जाती थीं। कच्चे बर्तनों को कोयले की भट्टी में पकाने में कारीगरों का जो पसीना बहता था उसका एहसास बर्तनों की चमक और डिजाइन में नजर आता था। बर्तनों को देखकर जब शौकीन तारीफ करते थे तो मेरा सीना गर्व चौड़ा हो जाता था। क्रॉकरी के गढ़ खुर्जा के बाद अपना अलग मुकाम बना चुकी थी। विकास अंवेषण एवं प्रयोग विभाग की पहल पर विदेशी यहा आते थे तो वे भी चमक के कायल हो जाते थे। देश ही नहीं विदेशों में भी मेरी पॉटरी को लोगों ने काफी सराहा। राजधानी आने वाले पर्यटकों की खास पसंद में शामिल इस उद्योग को आगे बढ़ाने की पहल ही मानो मेरी बदनसीबी की शुरुआत थी। मुझे याद है कि 1970 में विकास अंवेषण एवं प्रयोग विभाग ने उप्र लघु उद्योग विकास निगम को पॉटरी उद्योग के विकास की जिम्मेदारी दी थी। मेरे परिसर में 11 इकाइयों में 400 से अधिक कारीगर हर दिन काम करके अपनी रोजी रोटी का इंतजाम करते थे। कभी लघु उद्योगों के गढ़ के रूप में प्रचलित इस इलाके में धधकती भट्ठियों से निकलने वाला धुआ पिछले कई दशकों से बंद हो चुका है। संगठित कारोबार की पहल
अब हम जब वर्तमान समय में संगठित कारोबार की बात कर रहे हैं तो मेरे यहा पहले से ही संगठित कारोबार की नींव पड़ चुकी थी। एक स्थान पर 11 इकाइया उत्पादन को नई दिशा दे रही थीं। कप से लेकर हाडी तक और प्लेट से लेकर पेन सेट तक की आकृतिया मेरे कारोबार में चार चाद लगाती थीं। सिरेमिक डिजाइन के हब के रूप में मेरी पहचान बन चुकी थी। चिनहट के इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के वायदे तो किए जा रहे हैं लेकिन ऐसा होगा, इसी का मुडो इंतजार है। घाटे के हवाले कर दी पेट पर चोट
1997 में उप्र लघु उद्योग विकास निगम ने घाटे का हवाला देते हुए मेरे गेट पर ताला लगाने का निर्णय क्या लिया मानों कारीगरों और मजदूरों की जिंदगी का पहिया रुक गया हो। धधकती भट्ठियों की जगह मेरे परिसर में मुर्दाबाद के नारे गूंजने लगे। इस उद्योग के सहारे आसपास के गावों के लोगों को मिलने वाला कारोबार भी ठप हुआ तो वे भी आदोलन में शामिल हुए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। समय-समय पर दी जाती है सहायता
जिला उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन केंद्र के उपायुक्त सर्वेश्वर शुक्ला का कहना है कि चिनहट क्षेत्र में कभी पॉटरी का कारोबार होता था, लेकिन अब यह पॉटरी उद्योग बंद है। इस क्षेत्र में कुछ कारोबारी इस काम को कर रहे हैं। लघु उद्योग और हस्त कला को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार की ओर से समय-समय पर सहायता भी दी जाती है। ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए लिखा पत्र
पॉटरी के कारोबारी अमिताभ बनर्जी ने बताया कि चिनहट पॉटरी को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजकर इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए पत्र लिखा है। ऐतिहासिक धरोहरों के साही पारंपरिक कारोबार को भी बढ़ाने की जिम्मेदारी भी सरकार की है। ऐसे में उन्हें इसका भी ख्याल रखना चाहिए।
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