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जन्माष्टमी पर विशेष: लीलाधर की बंसी पर नाच रही कला

'नटवरलाल' बन नृत्य को जन-जन में बनाया लोकप्रिय। कथक के कण-कण में बसे राधा-कृष्ण।

By JagranEdited By: Published: Mon, 03 Sep 2018 12:18 PM (IST)Updated: Mon, 03 Sep 2018 12:48 PM (IST)
जन्माष्टमी पर विशेष: लीलाधर की बंसी पर नाच रही कला
जन्माष्टमी पर विशेष: लीलाधर की बंसी पर नाच रही कला

लखनऊ[दुर्गा शर्मा]। अधर में बंसी, हृदय में राधे। बंट गए दोनों में आधे-आधे। माखनचोर भी वह हैं और चित चोर भी। बंदीगृह के अवतारी कला प्रेमियों के नटनागर हैं। मुरलीधर के साथ निष्काम कर्मयोगी भी हैं। स्वामी और सखा दोनों हैं। पालनहार, जगन्नाथ, कंजलोचन, मधुसूदन, वासुदेव, माधव, द्वारिकाधीश, कन्हैया और श्याम हर रूप में भक्तवत्सल हैं। खुद में तमाम लीलाओं को समाहित किए कमलनाथ भी राधा के बिना अधूरे हैं। दोनों का प्रेम कला के श्रृंगार का आधार है। खासकर नृत्य कला (कथक)।

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शिव नटराज हैं तो 'नटवरलाल' बन श्री कृष्ण ने नृत्य को जन-जन में लोकप्रिय बनाया। कथक के तो कण-कण में राधा-कृष्ण बसे हैं। घुंघरुओं की झंकार में देवकीनंदन के प्रति अनुराग है। लीलाधर की बंसी पर कला नाच रही है। जन्माष्टमी के अवसर पर कथक प्रेमियों ने दयानिधि को नमन किया।

कृष्णमय कथक :

कथक नृत्यांगना मनीषा मिश्रा कहती हैं, 'नृत्यमयं जगत' अर्थात अनंत संसार ही नृत्यमय है। नृत्य में एकाकार हो जाना ही कृष्णमय है, जो सीधे आराध्य की आराधना स्वरूप डोर से बंधे हैं। कथक एक जीवंत कलारूप है। भाव एवं बुद्धि की जुगलबंदी है। बाल कृष्ण की लीलाओं से लेकर योगेश्वर कृष्ण के भागवत गीता के उपदेश अनादिकाल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। कथक में तार्किकता के धरातल पर भगवान श्री कृष्ण के जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों का विशुद्ध वर्णन लौकिकता में भी अलौकिकता से जुड़ने का आभास देता रहा है। माखनचोरी, बाल- हठ, कृष्ण-राधा मनोहारी छेड़-छाड़, कृष्ण-गोपी गोपिकाएं खेलकूद, राधा-कृष्ण विराट सौंदर्यमयी ऐश्वर्य प्रेम, रासलीला, कालिया वध, कंस वध से लेकर भगवत गीता के उपदेश तक असीमित कथाओं के विविध वर्णन का सशक्त माध्यम कथक रहा है। वंदना, दादरा, ठुमरी, कजरी, चैती, भजन, गत, गीतोपदेश इत्यादि प्रस्तुति में जनमानस तक स्वमेव एक-एक परत खुलते हुए अपने आपको व्यक्त कर देता है। 'अष्टनायिका' की कल्पना और 'नवरस' की परिकल्पना में नायक कृष्ण की महालीलाओं का अद्भुत दृश्य कथक में साकार होते हुए परिलक्षित हुआ है। इसमें रसानुभूति एवं सौंदर्यबोध है। कथक के नृत्य-नृत्त पक्ष के पुरुषार्थ और प्रत्येक भावाभिनय बच्चे से लेकर नायक तक की भूमिका को यूनिवर्सल (अंतरराष्ट्रीय स्तर) रूप में साकार करते हैं- श्री कृष्ण।

अपने आप में पूर्ण सौंदर्य :

15 वर्षो से कथक कर रहीं मानसी प्रिया कहती हैं, कृष्ण अपने आप में पूर्ण सौंदर्य हैं। भाव करते समय लगता है कि कृष्ण खुद में बस गए हैं। इनकी लीलाओं में कथक की पूर्णता है। बाल हठ, माखन चोरी, कालिया मर्दन, गोवर्धनधारी कृष्ण हर रूप में विशिष्ट हैं। उनके छेड़छाड़ का अंदाज भी मनोहारी है। राधा का पानी भरने जाना, कृष्ण का राह रोक कर मटकी फोड़ना, बांसुरी की धुन से राधा के पांव बांधना सभी अद्भुत भाव होते हैं। कवित्त और गत खास :

कथक प्रशिक्षु अनुपम सिंह कहती हैं, कोई भी नृत्य कान्हा की बंसी के बिना अधूरा है। कथक सीखने के दौरान श्री कृष्ण से जुड़े कई कवित्त और माखन चोरी की गत कीं। इनमें हम नटवर लाल कृष्ण को सखा, बालक, लीलाधर और सुललित नायक के रूप में पाते हैं। नटवरी टुकड़ा मनोहारी :

कथक प्रशिक्षु वर्तिका दूबे कहती हैं, कथक में नटवरी टुकड़ा नाचने का चलन है। ऐसा माना जाता है कि नटवरी का टुकड़ा उन बोलों से बना है जब श्री कृष्ण ने कालिया मर्दन करते हुए नृत्य किया था। उन ध्वनियों से जिन बोलों की उत्पत्ति हुई, उन्हें नटवरी का टुकड़ा कहा गया। इसके अतिरिक्त कृष्ण लीला से संबंधी परन, गत और कवित्त प्रचलित हैं। अमूल्य धरोहर कृष्ण लीलाएं :

अभिनव मुखर्जी पांच वर्ष की आयु से कथक सीख रहे हैं। बताते हैं, कृष्ण कथाओं को गीत, संवाद, नृत्य, अभिनय एवं शिल्प के जरिए प्रस्तुत किया जाता रहा है। ब्रज की अमूल्य धरोहर कथक रासलीला साहित्य से गुजरती हुई कथक में आ गई। रासलीला में कथा अर्थात् लीला पक्ष की प्रधानता रही। नट नर्तकों ने नृत्याभिनय को प्रधान रखते हुए कथा पक्ष को गौण रखा। केवल उसका भाव पक्ष लेकर नृत्य के द्वारा उसे प्रचलित करने की चेष्टा की। काव्यों के आधार पर अनेक कथानकों को कथक के माध्यम से प्रस्तुत करना रोचक है।

कुछ खास प्रस्तुतियां:

- रास कथक का प्रारंभिक नृत्य है। राधा-कृष्ण प्रेम के अलग-अलग चरणों को भाव में पिरोया जाता है।

- माखन चोरी लीला पर भाव के साथ ही घूंघट, मृग, मटकी, बांसुरी व मयूर की गतों का प्रयोग।

- वियोगी राधा का रूप, राधा-कृष्ण मिलन, गोवर्धन लीला और कालिया मर्दन आदि।

- फूलों की होली, पिचकारी वाली होली, अबीर-गुलाल की होली, कृष्ण राधा और वृंदावन की होली.. सब कुछ भाव-भंगिमाओं के माध्यम से दर्शाया जाता है।

- धमार और ठुमरी पर प्रस्तुत की जाने वाली कई सुंदर बंदिशें जैसे 'चलो गुइयां आज खेलें होरी कन्हैया घर..'।

- ठुमरी 'आवत श्यामल चक चली..', 'सब बन आयी श्याम प्यारी..' में कृष्ण के प्रति राधा का प्रेम।

- 'रास रचत ब्रज में..' और 'मोर पखा सिर ऊपर राजे..' आदि पर मनोहारी प्रस्तुतियां।


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