Eid E Zehra 2021: शिया समुदाय ने मनाया ईद-ए-जहरा का त्योहार, काले कपड़ों की जगह पहनें खुशरंग लिबास
कर्बला के 72 शहीदों के गम में दो महीने आठ दिन तक शोक मनाने के बाद शिया समुदाय ने मंगलवार को ईद-ए-जहरा का त्योहार मनाया। एक ओर जहां समुदाय के लोगों ने काले कपड़ों की जगह खुशरंग लिबास पहने।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। कर्बला के 72 शहीदों के गम में दो महीने आठ दिन तक शोक मनाने के बाद शिया समुदाय ने मंगलवार को ईद-ए-जहरा का त्योहार मनाया। एक ओर जहां समुदाय के लोगों ने काले कपड़ों की जगह खुशरंग लिबास पहने, तो वहीं महिलाओं ने सवा दो महीने बाद सुहाग की निशानी पहन श्रृंगार किया। पुराने शहर में कई जगह जश्न का सिलसिला जारी रहा। वहीं, देर रात तक लोगों ने एक-दूसरे के घर जाकर नज्र चखी और ईद-ए-जहरा की मुबारकबाद दी।
त्योहार की खुशियां मनाने के लिए शिया समुदाय ने खुशरंग विशेषकर लाल लिबास पहने और घरों में महिलाओं ने तरह-तरह के पकवान बनाए। एक दूसरे के घर जाकर ईद-ए-जहरा की मुबारकबाद दी और मिठाईयां बाटीं। मुहर्रम का चांद दिखते ही शिया समुदाय के लोगों ने काले वस्त्र धारण कर लिए थे। इस दौरान किसी ने न तो खुशी मनाई और न ही खुशी के किसी कार्यक्रम में शरीक हुए। इस अवसर पर घरों पर लगे काले झंडे उतार कर खुशी के लाल झंडे लगाए। मौलाना सैफ अब्बास नकवी ने महफिल की को खिताब कर त्योहार की फजीलत बयां की। मौलाना ने कहा कि शिया समुदाय में पांच ईद हैं, इनमें से सबसे बड़ी ईद ईद-ए-जहरा है। कर्बला में हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की शहादत के बाद उनके बीमार बेटे हजरत इमाम जैनुल आबदीन अलैहिस्सलाम और बहन शहजादी जनाब-ए- जैनब (स.अ.) के चेहरों पर आज के दिन मुस्कुराहट आयी थी। इसलिए शिया समुदाय के लिए यह दिन बहुत खास है। इसी तरह पुराने शहर के हसन पुरिया, बुनियादबाग, कश्मीरी मोहल्ला, मौला नगरी, रूस्तमनगर, काजमैन, नूरबाड़ी, मैदान एलएचखां, तोप दरवाजा, शर्गा पार्क, टापे वाली गली, हुसैनाबाद, वजीरगंज, गोलागंज, सरफराजगंज, रईस मंजिल, शरीफ मंजिल, जनाब वाली गली, शीशमहल, अंगूरीबाग, मुसाहबगंज, दरगाह रोड, मुफ्तीगंज और नैपियर रोड में लोग लाल-पीले रंग के लिबास पहने जश्न मनाते नजर आए।
अय्याम-ए-अजा के आखिरी दिन चला मजलिस-मातम का दौर, नहीं निकला जुलूस: कर्बला के 72 शहीदों की याद में सवा दो महीने से चला आ रहा गम का दौर शुक्रवार की देर रात बीत गया। गमजदा अजादारों ने पूरी रात मजलस-मातम कर पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब की बेटी हजरत फातमा जहरा (स.अ.) को उनके लाल का पुरसा दिया। छलकते आंसुओं के साथ अजादारों ने इमाम को विदा किया। अय्याम-ए-अजा के आखिर दिन कर्बला के शहीदों के गम में मजलिस-मातम का सिलसिला एक बार फिर तेज हो गया। कर्बला दयानतुद्दौला हो रौजा-ए-काजमैन या फिर अन्य इमामबाड़े व रौजे। सभी जगह फर्श-ए-अजा बिछाकर कोरोना के प्रोटोकाल के साथ अजादारों ने पुरसा पेश किया । सआदतगंज स्थित कर्बला दियानतुद्दौला बहादुर में चंद लोगों की मौजूदगी में शारीरिक दूरी के साथ मौलाना कल्बे जवाद ने मजलिस पढ़ी। रौजा-ए-काजमैन में मौलाना मीसम जैदी ने मजलिस को खिताब किया। वहीं शिया समुदाय ने अपने घरों में अलविदाई मजलिस कर नम आंखों के साथ इमाम को विदा किया। वहीं अय्याम-ए-अजा के अंतिम दिन पुराने शहर में निकलने वाला चुप ताजिये के जुलूस कोरोना संक्रमण के चलते नहीं निकाला गया।