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    SGPGI: एआइ की मदद से अब और सुरक्षित होगी किडनी के स्टोन की सर्जरी

    By Vikash Mishra Edited By: Dharmendra Pandey
    Updated: Sat, 13 Dec 2025 11:15 PM (IST)

    SGPGI Lucknow: सर्जरी के बाद संक्रमण और सेप्सिस की आशंका का पहले से पता लगाया जा सकेगा, जिससे इलाज में समय रहते बदलाव कर सर्जरी को और सुरक्षित बनाया ज ...और पढ़ें

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    संजय गांधी पीजीआइ

    कुमार संजय, जागरण, लखनऊ: संजय गांधी पीजीआइ के यूरोलाजी विभाग ने किडनी स्टोन के इलाज के लिए परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटामी (पीसीएनएल) सर्जरी के बाद होने वाले संक्रमण, सिस्टेमिक इंफ्लेमेटरी रिस्पांस सिंड्रोम (एसआइआरएस) और सेप्सिस की सटीक पहचान के लिए देश का पहला एआइ (आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस) आधारित रिस्क कैलकुलेटर टूल तैयार किया है।

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    इस टूल को यूरोलाजी विभाग के किडनी ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ और यूरोलाजिस्ट प्रो. संजय सुरेखा के नेतृत्व में डा. आलोक दत्ता व डा. अर्पण यादव ने तैयार किया है। एसजीपीजीआइ पीसीएनएल रिस्क कैलकुलेटर के रूप में यह टूल जल्द ही एक वेब-आधारित सेवा के रूप में लांच किया जाएगा, जिसका देशभर के यूरोलाजिस्ट उपयोग कर सकेंगे। इसके जरिए सर्जरी के बाद संक्रमण और सेप्सिस की आशंका का पहले से पता लगाया जा सकेगा, जिससे इलाज में समय रहते बदलाव कर सर्जरी को और सुरक्षित बनाया जा सके। डाक्टरों का दावा है कि विशेष टूल किडनी के स्टोन के रोगियों के उपचार में मील का पत्थर साबित होगा।

    प्रो-कैल्सिटोनिन सहित ग्यारह कारकों नजर रखना जरूरी

    प्रो. संजय सुरेखा का कहना है कि स्टोन का आकार, यूरिन पीएच का अधिक क्षारीकरण और पोस्ट-आप प्रो-कैल्सिटोनिन स्तर में वृद्धि ऐसे प्रमुख संकेत हैं, जो मरीज में संक्रमण के जोखिम को कई गुना बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, प्री-आपरेटिव इंफेक्शन, यूरिन कल्चर, डब्ल्यूबीसी काउंट और सर्जरी का समय भी सेप्सिस के प्रमुख पैरामीटर माने जाते हैं। शोध में डायबिटीज को स्वतंत्र रूप से संक्रमण का कारण नहीं पाया गया, जबकि इसे अब तक संक्रमण का एक बड़ी वजह माना जाता था। शोध में यह भी पाया गया कि हर एक नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर प्रो-कैल्सिटोनिन (पीसीटी) की वृद्धि पर सेप्सिस का खतरा 21 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।

    सर्जरी के बाद बढ़ जाता है सेप्सिस का खतरा

    पीसीएनएल सर्जरी के बाद लगभग 44 प्रतिशत मरीजों को बुखार, 27 प्रतिशत को एसआइआरएस और आठ प्रतिशत को सेप्सिस का सामना करना पड़ा। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि बड़े और संक्रमित स्टोन वाले मरीजों में संक्रमण का जोखिम अधिक रहता है। खासतौर पर स्टैगहार्न स्टोन या 40 मिमी से बड़े स्टोन वाले मरीजों में यह खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

    एआइ-आधारित रिस्क कैलकुलेटर

    सर्जरी से जुड़े बुखार और सेप्सिस का पूर्वानुमान लगाने के लिए तीन माडल बनाए गए। इन माडलों का क्षेत्र अंडर कर्व क्रमशः 0.82, 0.79 और 0.85 पाया गया, जो इनकी उच्च सटीकता को दर्शाता है। इससे डाक्टर सर्जरी के तुरंत बाद मरीज के जोखिम को शीघ्र पहचान सकेंगे। इसके परिणामस्वरूप डाक्टर यह तय कर सकेंगे कि किस मरीज को आइसीयू निगरानी, एंटीबायोटिक सहित विशेष देखभाल की आवश्यकता है।

    क्या होता है पीसीएनएल

    पीसीएनएल में डाक्टर पीठ की त्वचा से एक छोटा छेद कर सीधे किडनी तक पहुंचते हैं और विशेष उपकरणों से पथरी को तोड़कर या निकालकर बाहर कर देते हैं। इसमें आमतौर पर बड़ा चीरा नहीं लगाया जाता। जब किडनी का स्टोन दो सेमी से बड़ी हो। स्टोन बहुत कठोर या जटिल हो, या दवाओं अथवा शाक वेव से न निकले, तब यह सर्जरी की जाती है।

    शोधकर्ताओं को बधाई

    निदेशक, एसजीपीजीआइ प्रो. आरके धीमान ने बताया कि निश्चित तौर पर यह शोध भविष्य में किडनी के स्टोन के रोगियों के उपचार में अहम भूमिका निभाएगा। विशेष टूल से मरीजों को स्वस्थ करने में मदद मिलेगी। इसके लिए शोधकर्ताओं को बधाई।