Move to Jagran APP

आइईटी लखनऊ के विज्ञानी का शोध, अब दिल की धड़कन से भी हो सकेगी मानव की पहचान

बायोमीट्रिक तरीके से व्यक्तिकी पहचान संबंधी डाटा को और अधिक सुरक्षित बनाने के लिए लंबे समय से यह शोध जारी था। प्रो. सिंह के मुताबिक शोध में व्यक्ति के इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी) के जरिये व्यक्ति की हार्टबीट यानी दिल की धड़कन के पलपीकेशन समेत अन्य मानकों को दर्ज किया गया।

By Vikas MishraEdited By: Published: Sun, 10 Apr 2022 08:23 PM (IST)Updated: Mon, 11 Apr 2022 12:49 PM (IST)
आइईटी लखनऊ के विज्ञानी का शोध, अब दिल की धड़कन से भी हो सकेगी मानव की पहचान
खास बात यह है कि दिल की धड़कन तेज या कम होने से इस पैटर्न पर कोई असर नहीं पड़ता।

लखनऊ, [पुलक त्रिपाठी]। फिंगर प्रिंट, रेटिना और चेहरे से पहचान करने के तरीकों के बीच अब विज्ञानियों ने एक अलग और बेहद सुरक्षित तरीका खोजा है। अब दिल की धड़कन से मानव की पहचान हो सकेगी। विज्ञानी और शोधकर्ता इसे स्वाभाविक रूप से सुरक्षित और अभेद मान रहे हैं। उनका तर्क है कि डिजिटल माध्यम के दुरुपयोग से आंखों के रेटिना, चेहरे और फिंगर प्रिंट के डाटा के साथ छेड़छाड़ कर गड़बड़ी के मामले सामने आए हैं, मगर इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी) के माध्यम से रिकार्ड की गई व्यक्ति की दिल की धड़कनों से छेड़छाड़ संभव नहीं है।

loksabha election banner

यह उपलब्धि डा. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) से संबद्ध संस्थान इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी (आइईटी) के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर वाइएन सिंह को डेढ़ दशक के शोध के बाद हासिल हुई है। शोध में आइआइटी कानपुर एवं आइआइटी (बीएचयू) की भी अहम भूमिका है। शोध अमेरिकी जर्नल में प्रकाशित हुआ है। बायोमीट्रिक तरीके से व्यक्तिकी पहचान संबंधी डाटा को और अधिक सुरक्षित बनाने के लिए लंबे समय से यह शोध जारी था। प्रो. सिंह के मुताबिक शोध में व्यक्ति के इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी) के जरिये व्यक्ति की हार्टबीट यानी दिल की धड़कन के पलपीकेशन समेत अन्य मानकों को दर्ज किया गया।

कंप्यूटर से इसका विश्लेषण करने के बाद आटिर्फिशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग तकनीक से उस व्यक्ति का यूनीक हस्ताक्षर (हार्ट बीट पैटर्न) तैयार किया गया। पैटर्न तैयार करने में टाइम एंड फ्रिक्वेंसी डोमेन प्रक्रिया का भी प्रयोग किया गया। इस तकनीक को अति महत्वपूर्ण व संवेदनशील सैन्य और वैज्ञानिक संस्थानों की सुरक्षा में प्रयोग में लाया जा सकता है। खास बात यह है कि दिल की धड़कन तेज या कम होने से इस पैटर्न पर कोई असर नहीं पड़ता।

शोध में सहयोगी डा. रंजीत श्रीवास्तव ने बताया शोध से यह भी स्पष्ट हो गया है कि दुनिया के किन्हीं दो लोगों के दिल की धड़कन के पैटर्न कभी समान नहीं हो सकते हैं। इसका कारण यह है कि व्यक्तियों के बीच ईसीजी की विविधता उनके दिल की स्थिति, आकार और शारीरिक स्थिति में अंतर का परिणाम होती है।

इंटरनेट युग में कंप्यूटर आधारित व्यक्तिगत पहचान के तौर-तरीकों की सुरक्षा एक प्रमुख समस्या है। डिजिटल दुनिया में 'पहचान की चोरी' की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि डिजिटल दुनिया में लोगों को पहचान संबंधी पारंपरिक सुरक्षा प्रणालियां अभेद्य नहीं रहीं। ऐसे में यह सुरक्षा प्रणाली विश्वसनीय और सुरक्षित है क्योंकि इसमें हृदय संबंधी पैटर्न को कृत्रिम रूप से तैयार किया जाना संभव नहीं है। -प्रो. वाई एन सिंह, कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग, आइईटी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.