नौकरशाहों की पत्नियों को पदेन पदाधिकारी बनाने पर SC ने यूपी सरकार को लगाई फटकार, दो महीने में नियमों में संशोधन का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार को इस बात के लिए फटकार लगाई कि उसने सहकारी समितियों जैसे निकायों के संचालन में औपनिवेशिक काल की मानसिकता को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि इन निकायों में जिला मजिस्ट्रेट जैसे नौकरशाहों के जीवनसाथियों को पदेन पदाधिकारी बनाया जाता है।

नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार को इस बात के लिए फटकार लगाई कि उसने सहकारी समितियों जैसे निकायों के संचालन में औपनिवेशिक काल की मानसिकता को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि इन निकायों में जिला मजिस्ट्रेट जैसे नौकरशाहों के जीवनसाथियों को पदेन पदाधिकारी बनाया जाता है। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जोयमाल्या बागची की पीठ ने राज्य सरकार से दो महीने के अंदर प्रासंगिक प्रविधानों के संशोधन के लिए जरूरी कदम उठाने को कहा।
कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश में तमाम सहकारी समितियों के बायलाज ऐसे हैं, जिसमें अध्यक्ष जैसे पदों पर शीर्ष अधिकारियों की पत्नियों को बैठाने का नियम चला आ रहा है। बुलंदशहर की सीएम जिला महिला समिति की तरफ से जिला मजिस्ट्रेट की पत्नी को समिति का पदेन अध्यक्ष बनाए जाने को चुनौती देनेवाली याचिका पर पीठ सुनवाई कर रही थी।
समूह ने दलील दी कि संस्था का गठन निराश्रित महिलाओं की सहायता के इरादे से किया गया था। इसे अस्थायी आधार पर संचालित किया जा रहा है, जिसमें पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव है।
पीठ ने सवाल किया कि डीएम की पत्नी को बगैर लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किए सोसाइटी का पदेन अध्यक्ष क्यों बनाया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि आधुनिक शासन प्रणाली में इस तरह की व्यवस्था के लिए कोई तर्क नहीं दिया जा सकता। पीठ ने जोर देकर कहा कि सार्वजनिक निकायों का नेतृत्व निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाना चाहिए।
उप्र सरकार की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि 1860 के पंजीकरण कानून की जगह नए विधेयक तैयार किया जा रहा है और इसे अंतिम रूप देने के लिए जनवरी तक का समय मांगा। अदालत ने कहा कि जब भी राज्य विधानसभा से ये विधेयक पारित हो, इस पर जल्दी से जल्दी सहमति लेकर सूचीबद्ध किया जाए।

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