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    घुटने के दर्द को कहें बाय-बाय, मरी कोशिकाएं होंगी जिंदा

    By Ashish MishraEdited By:
    Updated: Wed, 28 Oct 2015 01:41 PM (IST)

    कोशिकाओं के मरने की वजह से अगर आपके घुटने जवाब दे चुके हों तो चिंता मत करिए। अब उसका बिना चीड़-फाड़ के इलाज हो सकेगा। वह भी कम खर्च में। बीएचयू और आइआइटी के वैज्ञानिकों ने बायो पॉलीमर की सहायता से नई कोशिकाएं तैयार की हैं, जिन्हें पाउडर बनाकर इंजेक्शन

    वाराणसी (मुकेश चंद्र श्रीवास्तव) । कोशिकाओं के मरने की वजह से अगर आपके घुटने जवाब दे चुके हों तो चिंता मत करिए। अब उसका बिना चीड़-फाड़ के इलाज हो सकेगा। वह भी कम खर्च में। बीएचयू और आइआइटी के वैज्ञानिकों ने बायो पॉलीमर की सहायता से नई कोशिकाएं तैयार की हैं, जिन्हें पाउडर बनाकर इंजेक्शन को घुटनों में लगाया जाएगा, ताकि मरी हुई कोशिकाओं को भी जिंदा किया जा सके।

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    प्रत्यारोपण में घुटना खराब होने की भी आशंका रहती है। घुटने में काटिलेज नाम की झिल्ली होती है, जो घर्षण के स्ट्रेस को सपोर्ट करती है। इसके अलावा कांड्रो साइट नाम की सूक्ष्म कोशिकाएं भी होती हैं, जो उम्र के साथ घटने लगती हैं। इसी के कारण घुटने में सूजन आने लगती है और हड्डियों में घर्षण बढ़ जाती है। चलने-फिरने में दर्द होने लगता है। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय, आइएमएस के आर्थोपेडिक विभाग के प्रो.अमित रस्तोगी, आइआइटी-बीएचयू के डा. प्रदीप श्रीवास्तव ने शोध किया। इसके तहत कांड्रो साइट को शरीर के किसी दूसरे हिस्सों से निकाला गया। शोध के बाद इस सूक्ष्म कोशिकाओं की संख्या बढ़ाई गई और उसकी गुणवत्ता की भी जांच की गई। इसको सपोर्ट देने के लिए बायो पालीमर सेफ्लाट की सहायता से इसकी बढ़ोतरी की गई। अब प्रयास है कि इन कोशिकाओं के पाउडर के रूप में तैयार किया जाए, ताकि इंजेक्शन के माध्यम से मरीजों के घुटनों में डाला जाए।

    वैज्ञानिकों का दावा है कि इंजेक्शन के माध्यम से कोशिकाओं को जिंदा करने में 75-80 प्रतिशत तक सफलता मिल गई है। इस तकनीक की खोज के लिए डा.प्रदीप श्रीवास्तव को भारत सरकार के पेटेंट आफिस की ओर से सम्मान भी मिल चुका है। यह शोध बायोमैटेरियल एंड मैटेरियल रिसर्च जर्नल सहित कई प्रमुख शोध पत्रों में प्रकाशित भी हो चुका है। डा. प्रदीप श्रीवास्तव ने बताया कि शुरुआती दौर में टीम ने खरगोश पर यह शोध किया, जो सफल रहा है। अब शरीर के अन्य हिस्सों से निकाली गई कोशिकाओं को पाउडर के रूप में तैयार करने का कार्य जोरों पर है। उम्मीद है एकाध वर्ष में यह तकनीक मरीजों के लिए उपलब्ध हो जाएगी।