संवादी : यादों में आज भी जिंदा है 'गुजरा कल
अवध की नगरी को कला, साहित्य, रंगमंच व भाषा की बदौलत एक नई दिशा देने वाले राम आडवाणी, जुगल किशोर, मुद्रा राक्षस एवं प्रोफेसर मलिकजादा मंजूर को संवादी में याद किया गया।
लखनऊ [ज्ञान बिहारी मिश्र]। 'वो गए तो कभी सबेरा न हुआ, कमबख्त रात ही होती रही हर रात के बाद। यह चंद लाइनें साहित्य जगत के उन पुरोधाओं की कमी को शायद बयां न कर सकें, लेकिन उनके जाने गम जरूर जाहिर कर रही हैं। अवध की नगरी को कला, साहित्य, रंगमंच व भाषा की बदौलत एक नई दिशा देने वाले राम आडवाणी, जुगल किशोर, मुद्रा राक्षस एवं प्रोफेसर मलिकजादा मंजूर को संवादी में याद किया गया।
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वरिष्ठ रंगमंच कर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ ने जुगल किशोर, इतिहासकार योगेश प्रवीण ने राम आडवाणी, वरिष्ठ साहित्यकार अखिलेश ने मुद्रा राक्षस एवं वरिष्ठ उर्दू शायर अनवर जलालपुरी ने प्रोफेसर मलिकजादा मंजूर से जुड़े स्मरण साझा किए। सूर्यमोहन ने कहा कि वर्तमान परिवेश में जुगलकिशोर जैसे कलाकार का महत्व समझने की दरकार है। उस वक्त जब देश में यह बहस छिड़ी हो कि किस देश के कलाकार काम कर सकते हैं और किस देश के नहीं। हम जुगलकिशोर को याद कर रहे हैं। वह कलाकारों के आंदोलन का हिस्सा बने, उन्होंने सांप्रदायिकता के खिलाफ आवाज बुलंद की।
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जुगलकिशोर साथी कलाकारों के साथ-साथ हर उस शख्स के लिए बेनजीर थे, जो उन्हें जानता था। अनुशासन मानो कूट-कूट कर भरा हो। सूर्यमोहन ने अपने साथ बिताए पलों को साझा करते हुए कहा कि जुगल किशोर चरित्र को जीते थे और उसमें खो जाते थे। उनको थिएटर को मकसद देने का श्रेय जाता है। मुद्रा राक्षस के जीवन पर प्रकाश डालते हुए अखिलेश ने कहा कि धारा के विपरीत चलना उनकी महानता थी। वह कर्मकांड के तहत अपना अंतिम संस्कार कराने के खिलाफ थे। उनकी अंतिम यात्रा में उमड़ी ऐतिहासिक भीड़ ने लोकप्रियता का बखान किया, यह उनके कलम की ताकत थी।
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हर वर्ग के लोगों के अलावा नीचे तबके के लोगों के प्रति उनका व्यवहार अविस्मरणीय है। निर्भीकता से बेखौफ होकर लिखना और वैसे ही बेबाक बोलना उनकी अद्भुत शक्ति का परिचय देता है। अखिलेश ने कहा कि साधारण मनुष्य के रूप में जिंदगी बसर कर प्रतिरोध के रास्ते पर चलने का साहस बिरले ही कर पाते हैं। मुद्रा राक्षस ने लखनऊ को अवधी कर्म भूमि के रूप में स्थापित किया। अनवर जलालपुरी ने प्रोफेसर मलिकजादा मंजूर के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मुशायरों के संचालन की नींव डालने का काम मलिकजादा मंजूर ने किया।
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उर्दू के निजामत को कला का दर्जा देने का श्रेय उन्हीं को जाता है। संचालन के कई तरीके होते हैं, लेकिन जो अंदाज मलिकजादा ने पेश किया वह ऐतिहासिक था। उर्दू भाषा की वकालत हो या फिर दिलों में मोहब्बत पैदा करने का प्रयास। मलिकजादा के सभी प्रयास सार्थक हुए। छात्रों से दोस्तों व भाई की तरह व्यवहार कर उन्हें सकारात्मक दिशा में ले जाने की ललक ने मलिकजादा को लोगों के दिलों में सदा के लिए कैद कर दिया।
इतिहासकार योगेश प्रवीण ने राम आडवाणी को याद करते हुए उनकी खासियत को बयां किया। उन्होंने कहा कि राम आडवाणी ने अपने कर्म से यह साबित किया कि लखनऊ का चरित्र किसी जाति, संप्रदाय, गुट अथवा शख्सियत की जागीर नहीं है। राम आडवाणी को उनकी सादगी, पेशे व इमानदारी ने अवध की नगरी का बना दिया। दूसरे देश से निर्वासित होकर हजरतगंज में किताब की दुकान खोलकर जीवन को नई दिशा में अग्रसर करने वाले राम आडवाणी अपनी काबिलियत के बल पर लखनऊ के शख्सियत के रूप में काबिज हैं। योगेश प्रवीण ने राम आडवाणी के साथ बिताए पलों को याद करते हुए कहा कि इतनी लंबी उम्र उन्होंने बेफिक्री में गुजार दी। नवाबों की नगरी में आने वाले लोग उनकी दुकान पर न जाएं, ऐसा होता नहीं था। उनकी जिंदादिली व बात करने के अंदाज से न जाने कितने लोग उनके मुफीद हो गए। सादगी भरे अंदाज से राम आडवाणी ने शहर को लेखक व शायर के रूप में कई सौगात दी है।