Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Jagran Samvadi 2025: 'मतांतरण वास्तव में राष्ट्रांतरण है', संघ के अखिल भारत संपर्क प्रमुख रामलाल ने संवादी में कही ये बातें

    By RAJEEV DIXITEdited By: Vinay Saxena
    Updated: Thu, 06 Nov 2025 09:16 PM (IST)

    दैनिक जागरण की ओर से लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में गुरुवार से आयोजित अभिव्यक्ति के उत्सव ‘संवादी’ में प्रबुद्ध श्रोताओं के समक्ष आरएसएस की वैचारिकी की छतरी को खोला संघ के अखिल भारत संपर्क प्रमुख रामलाल ने। ‘साधना के 100 वर्ष’ विषयक सत्र में जागरण के वरिष्ठ समाचार संपादक भारतीय बसंत कुमार के चुटीले सवालों के सहजता किंतु स्पष्टता से उत्तर देकर उन्होंने स्थापना काल से ही आलोचनाओं के केंद्र में रहे संघ के इर्द गिर्द व्याप्त भ्रांतियों के कुहांसे को छांटने की भरसक कोशिश की।

    Hero Image

    राजीव दीक्षित, लखनऊ। राष्ट्र निर्माण की अनवरत यात्रा के 100 वर्ष पूरे करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का स्पष्ट मत है कि मतांतरण वास्तव में राष्ट्रांतरण है। जब मत बदलता है तो सिर्फ पूजा पद्धति नहीं बदलती अपितु राष्ट्र के प्रति निष्ठा भी बदलती है। आज भारत में जितने लोग रहते हैं, उनमें से .01 प्रतिशत ही विदेशी मूल के हैं, बाकी यहीं के हैं। सभी के पुरखे एक हैं। इसलिए सभी का डीएनए भी एक है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हिंदू संस्कृति को पुष्पित-पल्लवित करने के उद्देश्य से स्थापित आरएसएस अपनी इसी धारणा के कारण सभी देशवासियों को हिंदू मानता है। वह किसी की पूजा पद्धति का विरोध नहीं करता है। संघ का यह भी मानना है कि हम सभी एक माता की संतान है और यही सोच भारत के सभी झगड़ों को समाप्त करने का सशक्त माध्यम हो सकती है। संघ का दृढ़ मत है कि वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को जीने वाला हिंदू सांप्रदायिक हो ही नहीं सकता है।

    दैनिक जागरण की ओर से लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में गुरुवार से आयोजित अभिव्यक्ति के उत्सव ‘संवादी’ में प्रबुद्ध श्रोताओं के समक्ष आरएसएस की वैचारिकी की छतरी को खोला संघ के अखिल भारत संपर्क प्रमुख रामलाल ने। ‘साधना के 100 वर्ष’ विषयक सत्र में जागरण के वरिष्ठ समाचार संपादक भारतीय बसंत कुमार के चुटीले सवालों के सहजता किंतु स्पष्टता से उत्तर देकर उन्होंने स्थापना काल से ही आलोचनाओं के केंद्र में रहे संघ के इर्द गिर्द व्याप्त भ्रांतियों के कुहांसे को छांटने की भरसक कोशिश की। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी, भीमराव आंबेडकर और स्वामी विवेकानंद भी इस मत के थे कि मतांतरण से राष्ट्र के प्रति निष्ठा डिगती है। यही वजह है कि स्वामी विवेकानंद ने वर्ष 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में कहा था कि भारत में मतांतरण की आवश्यकता नहीं है। संघ का यह भी मत है कि भारत को बांटने के प्रयास ज्यादा हुए। संघ भारत को जोड़ने का प्रयास है। जिस दिन भारत बड़ा होगा, उस दिन दुनिया में सुख-शांति की गारंटी हो जाएगी।

     

    गांधी का सम्मान

     

    संघ की वैचारिकी में गांधी और उनकी विचारधारा के समावेशन के सवाल पर रामलाल ने बताया कि देश में आपातकाल और कोरोना काल के दौरान संघ की शाखाएं बंद नहीं हुईं लेकिन महात्मा गांधी की हत्या होने पर शोकाकुल संघ की शाखाएं 13 दिन नहीं आयोजित हुईं। यह परिचायक है कि तत्कालीन संघ प्रमुख माधवराव सदाशिव गोलवलकर के मन में महात्मा गांधी के प्रति कितना सम्मान था। गांधी ने रामराज्य की बात कही और संघ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन देता है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और रामराज में कोई अंतर नहीं है। महात्मा गांधी के प्रति संघ के स्वयंसेवकों में संपूर्ण श्रद्धा और निष्ठा है।

     

    कांग्रेस से नहीं दुराव

     

    उन्होंने साफगोई से यह भी बताया कि संघ के संस्थापक डा. केशवराम बलिराम हेडगेवार 1920 में नागपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान उसके प्रदेश सचिव थे क्योंकि कांग्रेस तब एक राजनीतिक दल नहीं बल्कि आजादी के आंदोलन का एक मंच था। उनका मत था कि कांग्रेस को पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करनी चाहिए। उस समय तो उनकी बात नहीं मानी गई लेकिन 1939 में जब इसे स्वीकार किया गया तो वह अत्यंत हर्षित हुए थे। 1949 में कांग्रेस की वर्किंग कमेटी ने प्रस्ताव पारित किया था कि संघ को कांग्रेस में लाना चाहिए। उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू विदेश में थे, देश लौटने पर उन्होंने प्रस्ताव को वापस करा दिया। इसी क्रम में रामलाल ने डा. हेडगेवार की अस्वस्थता के दौरान उनके और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बीच हुई संक्षिप्त किंतु संतोषजनक बातचीत का भी उल्लेख किया।


    देश, लोकतंत्र व संस्कृति की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता

     

    आरएसएस की अहर्निश यात्रा के तीन महत्वपूर्ण पड़ावों को रेखांकित करते हुए संपर्क प्रमुख ने कहा कि संघ देश, लोकतंत्र और संस्कृति की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहा है। देश की रक्षा के लिए जब आवश्यकता पड़ी, संघ के स्वयंसेवकों ने प्राणों की चिंता किए बगैर त्याग और बलिदान किया। 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन हो या 1947 में विभाजन की विभीषिका, 1962 का भारत-चीन युद्ध तथा 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में सेना का मनोबल बढ़ाने में स्वयंसेवकों की विशेष भूमिका रही। आपातकाल के दौरान तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहेब देवरस के आह्वान पर एक लाख स्वयंसेवक लोकतंत्र को बचाने के लिए जेल गए। संघ का तीसरा पड़ाव देश की संस्कृति और जीवन मूल्यों की रक्षा से जुड़ा रहा। चाहे वह गोरक्षा के संकल्प के लिए दो करोड़ हस्ताक्षर लेने का अभियान हो या राम जन्मभूमि आंदोलन में सहभागिता, संघ ने संस्कृति की रक्षा के लिए हमेशा भूमिका निभाई। आतंकियों की चुनौती को स्वीकार कर श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहराने का अदम्य साहस भी संघ के अनुषांगिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने ही दिखाया था।


    महिलाओं की सहभागिता भी

     

    महिलाओं को संघ की शाखाओं से दूर रखने के सवाल पर संपर्क प्रमुख ने बताया कि डॉ. हेडगेवार को पहलवानी का शौक था। इसलिए उन्होंने संघ की शुरुआत अखाड़े से की। अखाड़े में पुरुषों के साथ महिलाओं का संयुक्त अभ्यास व्यावहारिक दृष्टि से सम्मत नहीं था। इसलिए संघ की शाखाएं पुरुषों के लिए रहीं। हालांकि कालांतर में डा. हेडगेवार की सहमति से लक्ष्मीबाई केलकर ने महिलाओं के उत्थान और उनमें राष्ट्र के प्रति गौरव बोध व दायित्व निर्माण के लिए ही राष्ट्र सेविका समिति का गठन किया। संघ के अन्य विभागों व संगठनों में महिलाएं हैं। संघ का मानना है कि भारतीय समाज में महिला घर की मालकिन है, वह घर की देवी, लक्ष्मी और सरस्वती है।


    दरवाजे सबके लिए खुले

     

    विभिन्न राज्यों में आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने के सवाल पर रामलाल ने कहा कि लोग संघ के विरोधी हो सकते हैं, संघ किसी का विरोधी नहीं है। हमारे दरवाजे सबके लिए खुले हैं। कई मुसलमान और ईसाई संघ के पूर्णकालिक सदस्य हैं। हमारा समर्थन किसी शर्त पर नहीं है। जो हमें साथ लेना चाहते हैं, वे हमसे बात करें।


    शताब्दी वर्ष में नए कार्यक्रम


    शताब्दी वर्ष में संघ ने अपने लिए कुछ कार्यक्रम निर्धारित किए हैं। संघ एक लाख हिंदू सम्मेलन आयोजित करेगा। वह 15 करोड़ परिवारों से संपर्क भी करेगा। युवाओं, महिलाओं और बच्चों के लिए कार्यक्रम आयोजित करने के अलावा जातियों-बिरादरियों के प्रमुखों के साथ बैठकर कर उनसे उनके समाज में व्याप्त कुरीतियों के उन्मूलन के बारे में बात करेगा। संघ की ओर से प्रतिपादित पंच परिवर्तनों के माध्यम से भारत को गौरवशाली बनाने का लक्ष्य है। इसके लिए प्रत्येक भारतवासी से पर्यावरण हितैषी बनने, जीवन मूल्यों के प्रति आग्रही होने, सामाजिक समरसता स्थापित करने, स्व का बोध और स्वदेशी के लिए आग्रही होने और देश के कानून का पालन करने के प्रति सचेत होने का आह्वान किया गया है।


    विस्तार के नए तरीके

     

    आधुनिक जीवनशैली की व्यस्तताओं के दृष्टिगत संघ ने नौकरीपेशा लोगों के लिए ‘ज्वाइन आरएसएस’ आनलाइन कार्यक्रम शुरू किया है। छात्रावासों में रात्रिकालीन शाखाएं भी संचालित की जा रही हैं।