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    UP में सामने आए 100 करोड़ रुपये से अधिक के झूठे वाहन बीमा दावे, वकील-पुलिस के खेल ने बढ़ाईं पीड़ितों की दिक्कत

    Road Safety With Jagran सड़क दुर्घटना में बीमा के फर्जी दावों के षड्यंत्र ने उत्तर प्रदेश में सही बीमा दावा करने वालों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। दावों के निस्तारण में लंबा समय लगने की एक बड़ी वजह यह भी है।

    By Alok MishraEdited By: Umesh TiwariUpdated: Tue, 22 Nov 2022 09:14 PM (IST)
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    Road Safety With Jagran: बीमा कंपनियों की शिकायत पर हाई कोर्ट ने गठित की थी एसआइटी।

    लखनऊ [आलोक मिश्र]। 'मैं पांच नवंबर, 2012 की सुबह 11 बजे विश्वविद्यालय के छात्रावास वाले गेट के सामने सड़क किनारे सवारी का इंतजार कर रहा था। तभी बरेली दिशा से तेजी व लापरवाही से आती बाइक यूपी 25 एडी 6604 के चालक ने टक्कर मार दी, जिससे याची को गंभीर चोटें आईं'। बरेली के अमर सिंह ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से यह वाद पत्र बरेली की मोटर दुर्घटना प्रतिकर अधिकरण (एमएसीटी)  कोर्ट में दाखिल किया।

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    बीमा कंपनी रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी ने संदेह होने पर हाई कोर्ट के आदेश पर गठित एसआइटी से शिकायत की। एसआइटी की जांच में सामने आया कि जिस बाइक से दुर्घटना होने का दावा किया गया है, वह याची डोरी लाल के रिश्तेदार प्रवीन सक्सेना की है। दोनों ने वकील के साथ मिलकर झूठी कहानी रची थी।

    बरेली की एमएसीटी कोर्ट मामले में वर्ष 2017 में याचिका को पैरवी में खारिज कर चुकी है। जांच में गवाह भी मुकर गया। दावा फर्जी पाए जाने पर बरेली कोतवाली में 15 अक्टूबर, 2022 को अमर सिंह व प्रवीन के विरुद्ध धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज की गई है, जिसकी विवेचना एसआइटी कर रही है।

    यह एक बानगी है। सड़क दुर्घटना में फर्जी दावों के ऐसे गहरे षड्यंत्र ने उत्तर प्रदेश में सही बीमा दावा करने वालों की मुश्किलें भी बढ़ाई हैं। दावों के निस्तारण में लंबा समय लगने की एक बड़ी वजह यह भी है। बीमा कंपनियां भी दावे की रकम का भुगतान करने से पहले लंबी छानबीन कराती हैं। उत्तर प्रदेश में फर्जी दावों के बढ़ते मामलों को देखकर ही बीमा कंपनियों ने लगभग आठ वर्ष पूर्व हाई कोर्ट की शरण ली थी।

    हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अक्टूबर, 2015 में विशेष जांच शाखा के तत्कालीन एडीजी की अध्यक्षता में एक एसआइटी गठित कर ऐसे मामलों की जांच कराने का आदेश दिया था। अब तक बीमा कंपनियां एसआइटी से ऐसे डेढ़ हजार मामलों की शिकायत कर चुकी हैं। जिनमें 326 मामलों की जांच पूरी की जा चुकी है, जिनमें 119 मामलों में बीमा दावे झूठे पाए गए और एफआइआर दर्ज कराई गई हैं।

    सच तो यह है कि इस खेल में वकील, पुलिस व बीमा दावा करने वालों व उनके अपनों की मिलीभगत होती है। ऐसे कई मामलों में वकीलों के विरुद्ध भी मुकदमे दर्ज हुए हैं और रायबरेली के एक मामले में आरोपित वकील को जेल जाना पड़ा। अन्य मामलों में वकीलों ने अरेस्ट स्टे हासिल कर लिया।

    दुर्घटना क्लेम के दावों में देरी के लिए हाई कोर्ट के अधिवक्ता अजीत द्विवेदी एमएसीटी कोर्ट की कमी को भी बड़ा कारण मानते हैं। उनका कहना है कि इन कोर्ट की संख्या और अधिकार दोनों बढ़ने चाहिए। अधिवक्ता रोहित कांत का कहना है कि ट्रिब्यूनल में कई मामलों में वाहन स्वामी बार-बार बुलाने पर भी पेश नहीं होते। इसके चलते भी सही मामलों में पीड़ित को न्याय मिलने में विलंब होता है। दुर्घटना के मामलों में पुलिस जांच की भूमिका भी लचर है। जांच से जुड़े प्रपत्र कोर्ट में काफी विलंब से प्रस्तुत किए जाते हैं।

    • फर्जी बीमा दावों में 225 आरोपित किए गए गिरफ्तार
    • 100 करोड़ रुपये से अधिक रकम के फर्जी बीमा दावे रोके गए
    • जांच में 164 प्रकरणों में दावे सही पाए गए, 8 मामलों में लगी अंतिम रिपोर्ट
    • एसआइटी की पैरवी पर 30 वकीलों का यूपी बार काउंसिसल ने रद किया पंजीकरण
    • छह पुलिसकर्मियों के विरुद्ध भी हुई विभागीय कार्यवाही

    न्यायिक सदस्य किए गए शामिल

    फर्जी बीमा दावे का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। इन मामलों में कई वकीलों की भूमिका को लेकर सवाल उठे थे, जिसे लेकर कोर्ट में याचिका भी दाखिल की गई थी। इसके बाद हाई कोर्ट के आदेश पर एसआइटी में बतौर न्यायिक सदस्य एक सेवानिवृत्त जिला जज को भी शामिल किया गया।

    क्रैश इंवेस्टीगेशन का दिलाया जा रहा प्रशिक्षण

    दुर्घटना की वैज्ञानिक जांच का स्तर लचर है। इसमें दक्षता बढ़ाने के लिए अब फरीदाबाद (हरियाणा) स्थित इंस्टीट्यूट आफ रोड ट्रैफिक एजूकेशन में पुलिसकर्मियों को क्रैश इंवेस्टीगेशन की फोरेंसिक जांच के प्रशिक्षण के लिए भेजा जा रहा है। दुर्घटना के मामलों में जिले की पुलिस लाइन स्थित मोटर परिवहन शाखा के कर्मी वाहनों का तकनीकी परीक्षण करते हैं। इनका वैज्ञानिक प्रशिक्षण बढ़ाए जाने की जरूरत है।