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    जैविक खादी बनाकर लखनऊ की ऋचा ने मल्टीनेशनल कंपनियों की उड़ाई नींद, आधी आबादी को दे रहीं आर्थिक आजादी

    By Anurag GuptaEdited By:
    Updated: Sun, 01 Nov 2020 12:11 PM (IST)

    लखनऊ के इंदिरानगर की ऋचा सक्सेना ने कुछ अलग करने का संकल्प लिया है। खादी मेंं महात्मा गांधी की विचार धारा की झलक देखने वाली ऋचा ने जैविक खादी बनाकर मल्टीनेशनल कंपनियों की नींद उड़ा दी है। इकलौती खादी अब राजधानी ही नहीं देश विदेश तक धूूम मचा रही हैं।

    लखनऊ की ऋचा ने जैविक खादी बनाकर मल्टीनेशनल कंपनियों की नींद उड़ा दी है।

    लखनऊ[ जितेंद्र उपाध्याय]। आधी आबादी को आर्थिक आजादी देकर उनके सपनाें को साकार करने वाली इंदिरानगर की ऋचा सक्सेना ने कुछ अलग करने का संकल्प लिया है। खादी मेंं महात्मा गांधी की विचार धारा की झलक देखने वाली ऋचा ने जैविक खादी बनाकर मल्टीनेशनल कंपनियों की नींद उड़ा दी है। अपनी तरह की इकलौती खादी अब राजधानी ही नहीं देश विदेश तक धूम मचा रही हैं।

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    कोरोना संक्रमण काल में जब कामगार नौकरी को लेकर परेशान हैं तो इससे इतर ऋचा ने 200 नई महिलाओं को काम देकर अपनी सोच को मूर्त रूप देने का काम किया। नारी को नारायणी का दर्जा देेने के उनके प्रयास के चलते अब महिलाए एक दिन में 500 से 700 रुपये कमा रही हैं। उन्होंने बताया कि 2018 में प्राकृतिक ऊर्जा में एमएससी करने के बाद इसी विषय में शोध शुरू किया है। नीदरलैंड विवि से पीएचडी कर रही हूं। इससे पहले 2015 में प्रोडक्शन ट्रेंड से बीटेक किया था। प्रेक्टिकल के दौरान कपड़ा बनाना सीखा और उसी काे आगे बढ़ाने में लग गई हूं। विकास के इस डिजिटल युग में कुछ अलग करना पड़ेगा तभी आपकी पहचान बनेगी। करीब 500 महिलाएं व पुरुष उनसे जुड़कर काम कर रहे हैं। खादी और ग्रामोद्योग आयोग की ओर से उनके कपड़े को मान्यता भी देने की तैयारी अंतिम चरणोें में पहुंच गई है।
    बचे कपड़े से बनाती हैं बैग
    इटौंजा में जैविक धागा कातने का प्लांट लगाया है जिसमे गांधी के चरखे से ही धागा बनाया जाएगा है। धागा बनने के बाद बाराबंकी के बड़ा गांव मेें कपड़े की बिनाई होती है। पिछले वर्ष आस्ट्रेलिया से कपड़े की मांग आई थी और उन्होंने उसे पूरा किया। कपड़े की कतरन से वह अब हैंडबैग बनाकर महिलाओं को अतिरिक्त काम दे रही हैं। कपड़े की सेल कम हुई तो अगरबत्ती बनाने का काम शुरू कर दिया है।
     
     
     

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