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रामजन्मभूमि परिसर में मिले प्राचीन मंदिर के अवशेष, विक्रमादित्य युग के स्तंभ भी मिलने के संकेत

जन्मभूमि परिसर का इन दिनों हो रहा है समतलीकरण। विक्रमादित्य युग के स्तंभ भी मिलने के संकेत।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 20 May 2020 10:05 PM (IST)Updated: Thu, 21 May 2020 07:01 AM (IST)
रामजन्मभूमि परिसर में मिले प्राचीन मंदिर के अवशेष, विक्रमादित्य युग के स्तंभ भी मिलने के संकेत
रामजन्मभूमि परिसर में मिले प्राचीन मंदिर के अवशेष, विक्रमादित्य युग के स्तंभ भी मिलने के संकेत

अयोध्या, जेएनएन।  रामजन्मभूमि परिसर में चल रहे समतलीकरण के दौरान बड़ी संख्या में प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले हैं। इनमें कलश, एक दर्जन से ज्यादा मूर्ति युक्त पाषाण स्तंभ, देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियां, नक्काशीदार शिवल‍िंंग प्राचीन कुआं व चौखट आदि शामिल हैं। दरअसल, समतलीकरण का कार्य 11 मई से रामलला के मूल गर्भगृह के आसपास चल रहा है। गत वर्ष नौ नवंबर को सुप्रीम फैसला आने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया था कि जिस गर्भगृह में रामलला विराजमान थे, वहां विक्रमादित्य युगीन मंदिर था। हालांकि बुधवार को समतलीकरण के दौरान जिस मंदिर के अवशेष मिले हैं, उसके बारे में अभी यह नहीं कहा जा सकता कि यह उसी मंदिर के हैं या बाद में बने किसी मंदिर के हैं।

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रामजन्मभूमि परिसर में विक्रमादित्य युग के मंदिर के साथ कई अन्य मंदिरों के अवशेष दफन होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। इस परिसर में राम मंदिर के अलावा कई अन्य देवी-देवताओं के प्राचीन-पौराणिक मंदिर सहित उन आधा दर्जन मंदिरों के अवशेष भी समाहित हैं, जिन्हें 27 वर्ष पूर्व सही-सलामत अधिग्रहीत कर 67.77 एकड़ के परिसर में शामिल किया गया था। हालांकि बुधवार को मिले अवशेष में सात ब्लैक टच स्टोन का समीकरण कसौटी के स्तंभ से जोड़कर देखा जा रहा है। मान्यता है कि विक्रमादित्य ने दो हजार वर्ष पूर्व जिस मंदिर का निर्माण कराया था, वह कसौटी के ऐसे ही स्तंभों पर टिका था।

मंदिर निर्माण के लिए गठित श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से पुरावशेष मिलने की जानकारी तो विस्तार से दी गई है, मगर प्राप्त पुरावशेष के बारे में कुछ कहने से इन्कार किया गया है। समझा जाता है कि विशेषज्ञों के निरीक्षण के बाद पुरावशेषों के बारे में अंतिम रूप से कोई राय व्यक्त की जा सकेगी। साकेत महाविद्यालय में प्राचीन इतिहास विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कविता स‍िंंह कहती हैं, यह पहले से ही तय है कि रामजन्मभूमि परिसर में स्वर्णिम अतीत की भरी-पूरी पटकथा समाहित है और वह धीरे-धीरे सामने आएगी। 


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