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मंदिरों में रावण की पूजा

लखनऊ। आतंक की प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों का समन्वय बना दशहरा अर्थात विजयदशमी पर्व रावण के पूजन

By Edited By: Published: Mon, 14 Oct 2013 01:36 AM (IST)Updated: Mon, 14 Oct 2013 01:36 AM (IST)

लखनऊ। आतंक की प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों का समन्वय बना दशहरा अर्थात विजयदशमी पर्व रावण के पूजन और उसके पुतला दहन की प्रवृत्तियां क्षेत्र के हिसाब साथ लिए है। वैसे असत्य पर सत्य की विजय और आतंक के अंत प्रतीक दशहरा ज्यादातर हिस्सों में रावण का पुतला दहन कर ही मनाया जाता है।

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कानपुर के कैलाश मंदिर परिसर स्थित दशानन मंदिर में विजयादशमी को रावण पूजा होती है। उस परम्परा का आज भी निर्वहन किया गया। 1868 में पं गुरु प्रसाद ने इस मंदिर की स्थापना की थी। चूंकि मंदिर परिसर में छिन्नमस्तिका माता का मंदिर है। रावण माता का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। इसलिए पहरेदार के रूप में दशानन मंदिर की स्थापना की गई। पुराने लखनऊ के रानी कटरा स्थित चारों धाम मंदिर में स्थापित रावण दरबार मंदिर में दशहरे के मौके 36 वर्र्षो से रावण का किरदार निभाने वाले विष्णु त्रिपाठी लंकेश ने लंकापति रावण की पूजा की और लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद वितरण किया। मथुरा में रावण के अनुयायियों ने उसकी पूजा की। रविवार शाम यमुना की तलहटी में रावण का पूजन कर आरती उतारी गई। सारस्वत वंशियों ने पुतला दहन का विरोध 2003 में शुरू किया था। लंकेश भक्त ओमवीर सारस्वत ने कहा कि रावण की भक्ति और शक्ति से सभी को सीख लेनी चाहिए।

कन्नौज शहर में रावण वध शरद पूर्णिमा को होता है। विजयादशमी को यहा लंका का प्रतीक बनाकर उसे जगह-जगह छोटे-छोटे टुकड़ियों में युवा व किशोर लूटते हैं और वहा से मिट्टी व समी पेड़ की पत्ती घर लाकर मा के आचल में सुख समृद्धि के लिए डालते हैं। जलालाबाद में शरद पूर्णिमा के बाद रावण पुतला दहन होता है।

हमीरपुर में दशहरा मेला पर हर वर्ष शहर में रावण के पुतले का दहन तो होता है लेकिन उसके पूर्व राम और लक्ष्मण उस पुतले की परिक्रमा कर उसकी पूजा करते हैं। महिलाएं दिन में अपने बच्चों के साथ रावण की पूजा करने जाती हैं। वह बच्चों के शीश रावण के चरणों में झुकाती हैं। यहा रात के बारह बजे के बाद ही रावण जलता है।

इटावा के जसवंतनगर में रावण को जलाया नहीं जाता। यहा रावण को ईंट-पत्थर व लाठी लंडों से मारते हैं। बाद में पुतले के टूकड़ों के बीन कर ले जाते हैं। इसे घर में रखना शुभ माना जाता है। यहा रामलीला भी मंच की नहीं होती। मैदानी रामलीला होती है।

फतेहपुर में हनुमान मंदिर के कपाट बंद कर रावण की पूजा की जाती है। पूजा चार सौ वर्ष से अधिक पुरानी खजुहा में रावण के चार कुंतल वजनी ताबे के सिर की दस दिन तक पूजा होती है। मंत्रोच्चारण के साथ आरती उतारी जाती है फिर कार्तिक द्वितीया को रावण जब बाहर निकाला जाता है तो फिर पूजा की जाती है। रात को राम-रावण युद्व में रावण जलाया नहीं भगवान राम के बाणों से मारा जाता है। पूजा के समय रामजानकी मंदिर के समीप बने हनुमान मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते है। खजुहा की यह अजब-गजब रामलीला उत्तर भारत की सबसे प्राचीन लगभग चार सौ वर्ष पुरानी है।

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