Updated: Mon, 08 Sep 2025 12:27 AM (IST)
लखनऊ में आंचलिक विज्ञान नगरी में 122 साल बाद दुर्लभ पूर्ण चंद्रग्रहण दिखा। एस्ट्रो नाइट कार्यक्रम में बच्चों ने दूरबीन से चाँद की लालिमा देखी और सवाल पूछे। वैज्ञानिकों ने बताया कि पृथ्वी की छाया चाँद को ढकने से वह लाल दिखता है। इस खगोलीय घटना ने बच्चों में विज्ञान के प्रति जिज्ञासा बढ़ाई और खगोलशास्त्र के रहस्यों को जानने की ललक पैदा की।
गौरी त्रिवेदी, लखनऊ। रविवार की रात आंचलिक विज्ञान नगरी में आसमान ने जादू बिखेरा। 122 साल बाद आए दुर्लभ पूर्ण चंद्रग्रहण ने बच्चों, युवाओं और खगोल प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। यहां आयोजित एस्ट्रो नाइट कार्यक्रम में सैकड़ों बच्चे टेलीस्कोप के जरिए चांद की लालिमा को देख सवालों से भर उठे। चांद ऐसा लाल क्यों हो गया?, क्या ये हर 122 साल में होता है? ऐसे सवालों ने माहौल को जिज्ञासा और उत्साह से सराबोर कर दिया।
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यह पूर्ण चंद्रग्रहण इसलिए अनोखा था क्योंकि 122 साल पहले, यानी 1903 में ऐसा ही एक दुर्लभ खगोलीय संयोग देखा गया था, जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में पूरी तरह डूब गया और असामान्य रूप से लंबे समय तक लाल रंग में नहाया। इस बार चंद्रग्रहण की अवधि और चांद की लालिमा का अनुपात खास था, क्योंकि पृथ्वी की वायुमंडलीय परतों में धूलकणों ने सूर्य की किरणों को इस तरह बिखेरा कि चांद गहरे नारंगी-लाल रंग में चमक उठा।
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यह ब्लड मून न केवल आंखों को सुकून देने वाला था, बल्कि खगोलशास्त्रियों के लिए भी अध्ययन का एक दुर्लभ अवसर था। टेलीस्कोप से चांद के करीब विज्ञान नगरी का प्रांगण रात में बच्चों की चहल-पहल से गुलजार था। परियोजना समन्वयक स्वरूप मंडल ने बच्चों को सरल शब्दों में समझाया, जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आती है, तो उसकी छाया चांद को ढक लेती है।
सूर्य की किरणें पृथ्वी के वायुमंडल से छनकर चांद तक पहुंचती हैं, जिससे वह लाल दिखता है। उनकी बात सुनकर 11 साल की अनन्या ने चमकती आंखों से पूछा, क्या चांद सचमुच खून जैसा लाल हो सकता है? स्वरूप की हंसी और जवाब ने बच्चों को और उत्साहित कर दिया।
लाइव टेलीस्कोप ने खोले ब्रह्मांड के राज विज्ञान नगरी के शिक्षकों ने हाई-पावर टेलीस्कोप से बच्चों को चंद्रग्रहण के हर चरण को करीब से दिखाया। चांद के गड्ढों से लेकर उसकी लालिमा तक, हर दृश्य बच्चों के लिए किसी साइंस-फिक्शन फिल्म से कम नहीं था।
13 साल के राघव ने कहा कि मुझे लगा मैं चांद पर पहुंच गया हूं। टेलीस्कोप से सब इतना साफ दिखा! वहीं, 9 साल की काव्या ने उत्साह से पूछा, क्या चांद पर एलियंस भी देख सकते हैं ये ग्रहण? विज्ञानियों विनय ने बच्चों के सवालों को धैर्य और रोचकता से जवाब दिया, जिससे हर बच्चे के मन में विज्ञान के प्रति जिज्ञासा जाग उठी।
साइंस सिटी से प्रोजेक्ट कोऑ र्डिनेटर स्वरूप मंडल ने बताया कि चंद्रग्रहण न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय संस्कृति में भी इसका खास स्थान है। पुराणों में इसे राहु-केतु की कहानियों से जोड़ा जाता है, लेकिन विज्ञान हमें इसके पीछे का सच बताता है, बच्चों को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि यह खगोलीय घटना हजारों सालों से मानवता को आकर्षित करती रही है।
कार्यक्रम में बच्चों के साथ-साथ अभिभावक और खगोल प्रेमी भी शामिल हुए। एक अभिभावक, संजय मिश्रा ने कहा, ऐसे आयोजन बच्चों को किताबों से बाहर की दुनिया दिखाते हैं।
मेरा बेटा आज रात को चांद के बारे में इतना कुछ सीख गया कि अब वह खगोलशास्त्री बनना चाहता है। आंचलिक विज्ञान नगरी ने इस आयोजन के जरिए खगोल विज्ञान को हर उम्र के लिए रोचक और सुलभ बना दिया।
आसमान की कहानियां बुनतीं विज्ञान नगरी
आंचलिक विज्ञान नगरी नियमित रूप से ऐसे शैक्षिक आयोजन करती है, जो समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं। इस बार का चंद्रग्रहण बच्चों के लिए न सिर्फ एक खगोलीय घटना थी, बल्कि एक ऐसा अनुभव था, जिसने उनके मन में ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने की ललक जगा दी।
जैसा कि स्वरूप मंडल ने मुस्कुराते हुए कहा, आसमान हर रात एक नई कहानी सुनाता है, और आज की रात बच्चों ने उस कहानी को जी लिया।
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