Protest of Privatisation of UPPCL: बिजली का निजीकरण बताया जा रहा आर्थिक घोटाला, विरोध में होगा राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन
Protest of Privatisation of UPPCL संघर्ष समिति ने कहा कि यह केवल नीति का मसला नहीं बल्कि एक बड़ा आर्थिक घोटाला है जिसकी जांच आवश्यक है। समिति ने यह भी मांग की कि मुख्य सचिव बतौर एनर्जी टास्क फोर्स के अध्यक्ष इस मामले पर स्वयं संज्ञान लें और कार्यवाही करें।

राज्य ब्यूरो, जागरण, लखनऊ : प्रदेश में बिजली कंपनियों के निजीकरण के प्रस्ताव को लेकर विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति का विरोध जारी है। समिति ने मुख्य सचिव एसपी गोयल को पत्र लिखकर निजीकरण की पूरी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। समिति ने मांग की है कि निजीकरण से जुड़े सभी मामलों की निष्पक्ष जांच कर प्रस्ताव को तत्काल निरस्त किया जाए।
संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने आरोप लगाया है कि पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने जानबूझकर झूठे घाटे का हवाला देकर निजीकरण का आधार बनाया है, जबकि वास्तव में बिजली कंपनियों की संपत्तियों का सही मूल्यांकन तक नहीं कराया गया। उन्होंने कहा कि जिस स्टैंडर्ड बिडिंग डाक्यूमेंट (एसबीडी) के आधार पर आरएफपी (रिक्वेस्ट फार प्रपोजल) तैयार की गई, उसे आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया। यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शिता के बुनियादी मानकों पर खरी नहीं उतरती।
समिति ने आरोप लगाया है कि घाटे में दिखाए गए आंकड़ों में सरकारी सब्सिडी और राजस्व बकाया को भी जानबूझकर शामिल किया गया है ताकि निजीकरण का तर्क मजबूत किया जा सके। इतना ही नहीं, निजीकरण के लिए नियुक्त किए गए सलाहकार ने टेंडर प्रक्रिया में फर्जी हलफनामा देकर खुद को योग्य बताया, जो नियमों के खिलाफ है।
संघर्ष समिति ने कहा कि यह केवल नीति का मसला नहीं बल्कि एक बड़ा आर्थिक घोटाला है, जिसकी जांच आवश्यक है। समिति ने यह भी मांग की कि मुख्य सचिव बतौर एनर्जी टास्क फोर्स के अध्यक्ष इस मामले पर स्वयं संज्ञान लें और कार्यवाही करें। समिति ने बताया कि सोमवार को आंदोलन के 250 दिन पूरे हो रहे हैं। ऐसे में एक बार फिर प्रदेशभर में विरोध प्रदर्शन कर निजीकरण के खिलाफ आवाज बुलंद की जाएगी।
बिजली कंपनियों पर है 15,569 करोड़ का सरकारी बकाया
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा है कि बिजली कंपनियों का सरकार पर 15,569 करोड़ रुपये बकाया है। उन्होंने कहा कि बकाया राशि को चुकाकर बिजली के निजीकरण को रोका जा सकता है। क्योंकि सरकार के बकाए के अलावा उपभोक्ताओं का कुल बकाया लगभग 1 लाख 15,000 करोड़ है। बिजली कंपनियां करीब एक लाख करोड़ रुपये के घाटे में चल रही हैं। अगर बकाए की राशि की वसूली कर ली जाए तो बिजली कंपनियां फायदे में आ जाएंगी और निजीकरण की जरूरत नहीं पड़ेगी।
उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा सरकारी बकाया दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का 5,398 करोड़ और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का 3,193 करोड़ रुपये है। इसी प्रकार मध्यांचल विद्युत वितरण निगम का 3,895 करोड़ रुपये, पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम का 1,832 करोड़ रुपये, केस्को विद्युत वितरण निगम कानपुर का 1,250 करोड़ रुपये बकाया है। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने कहा सभी बिजली कंपनियों मे अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक उत्तर प्रदेश सरकार के आइएएस अफसर है और वह सरकारी विभागों के बिजली बकाया को भी नहीं दिला पा रहे हैं।
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