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    इंग्लैंड के प्रोफेसर ने गांव में खोला पुस्तकालय, बच्‍चों से लेकर बुजुर्गों तक के ल‍िए उपलब्‍ध हैं पुस्‍तकें

    By Anurag GuptaEdited By:
    Updated: Wed, 28 Jul 2021 03:40 PM (IST)

    इंग्लैंड की नाटि‍ंगम यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग में प्रोफेसर हैं अरुण कुमार। गांव में बच्चों की पढ़ाई और संस्कारों की स्थापना के लिए खोला ग्रामीण वि ...और पढ़ें

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    प्रोफेसर का कहना है कि गांव-गांव पुस्तकालयों के लिए जन आंदोलन चलना चाहिए।

    हरदोई, [पंकज मिश्रा]। अंतरराष्ट्रीय व ब्रिटिश विद्यार्थियों को आधुनिक भारत का इतिहास पढ़ाने वाले इंग्लैंड के प्रोफेसर अरुण कुमार ने गांव में सुशिक्षित समाज की स्थापना के लिए पुस्तकालय खोला है। इसमें न केवल कक्षाओं, बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं और बुजुर्गों के लिए धार्मिक पुस्तकें हैं। परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र खुद पुस्तकालय का संचालन करते हैं। प्रोफेसर का कहना है कि उनका सपना तो पूरा हो गया, लेकिन गांव-गांव पुस्तकालयों के लिए जन आंदोलन चलना चाहिए।

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    मल्लावां क्षेत्र के कल्याणपुर निवासी इंग्लैंड की नाटि‍ंघम यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग में प्रोफेसर अरुण कुमार की शुरुआती शिक्षा गांव और फिर मल्लावां कस्बे में हुई। वह कहते हैं कि जब उन्होंने पढ़ाई की थी तो गांव में कोई इंतजाम नहीं था। हमेशा से सोचते थे कि किसी गांव के विकास के लिए केवल सड़क, बिजली और तकनीक ही नहीं बल्कि उसमें बौद्धिक विकास और व्यक्तित्व की मात्रा भी प्रचुर होनी चाहिए। सोच लिया था कि बच्चों के भविष्य के लिए गांव में पुस्तकालय की स्थापना कराएंगे। कोरोना संक्रमण के चलते विद्यालय बंद हो गए और शिक्षा व्यवस्था बेपटरी हुई तो उन्होंने गांव के पुस्तैनी मकान में ग्रामीण विकास पुस्तकालय की स्थापना कराई।

    पुस्तकालय में इतिहास, साहित्य, औषधि, विज्ञान, शिक्षक भर्ती, सेना, सिविल और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ-साथ धार्मिक पुस्तकों और उपन्यास की 500 से अधिक पुस्तकें उपलब्ध हैं। इसके साथ ही लोगों की आवश्यकता और मांगों को ध्यान में रखते हुए लगातार और भी पुस्तकें मुहैया करा रहे हैं। उनका कहना है कि अब गांव में ऐसा स्थान है, जहां बच्चों से लेकर बुुजुर्ग तक पुस्तकों के साथ ही तर्क-वितर्क कर अपनी समस्याओं का हाल प्राप्त कर सकते हैं और उसके साथ ही उचित जिम्मेदार नागरिक बनने की सीख ले सकते हैं। पुस्तकालय की देखरेख दो विद्यार्थियों द्वारा होती है।

    उन्होंने खुद इस पुस्तकालय के विकास के लिए कदम उठाया है। सिविल परीक्षा की तैयारी कर रहे सुशांत सि‍ंह और शिक्षक भर्ती की तैयारी कर रहे दिव्यांग सुनील कुमार पुस्तकालय की देखरेख कर रहे हैं। वह खुद आनलाइन जुड़े रहते हैं। प्रोफेसर कुमार का कहना है कि उनके बचपन का सपना था इसलिए उन्होंने मजदूरों और कामगारों की शिक्षा और उनके साहित्यिक उपलब्धियों पर पूरी की है। उनका कहना है कि इसे एक आंदोलन का रूप देकर गांव-गांव पुस्तकालयों की स्थापना कराई जाए।