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    सेंट्रल जेल में बंद अजीत बने इग्नू टॉपर, मिला गोल्ड मेडल

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Sun, 09 Aug 2015 12:16 PM (IST)

    वाराणसी की सेंट्रल जेल में बंद एक कैदी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र को गौरवांवित किया है। गैर इरादतन हत्या के मामले में दस वर्ष कैद ...और पढ़ें

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    लखनऊ। वाराणसी सेंट्रल जेल में बंद अजीत कुमार सरोज ने जेल में रहकर पढ़ाई की और इग्नू की परीक्षा के टॉपर बन गए। कल हुए दीक्षांत समारोह में उन्हें गोल्ड मेडल पहनाकर सम्मानित किया गया। इसी के साथ ही उन्होंने देश भर ख्याति पा ली।

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    पड़ोसी की हत्या में हुई थी जेल

    अपने पड़ोसी की हत्या के आरोप में दस साल कैद की सजा काट रहे अजीत कुमार सरोज ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में डीटीएस (डिप्लोमा इन टूरिज्म स्टडीज) में एडमिशन लिया तो शायद ही उसे यकीन रहा होगा कि ज्ञान का उजियारा उसे एक दिन जरूर रोशन करेगा। इग्नू की परीक्षा देने के बाद जब परिणाम आया तो अजीत कुमार सरोज ने सबका दिल जीत लिया, क्योंकि वह सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं समूचे देश में ही इस कोर्स में अव्वल आया था।

    दीक्षांत समारोह में किया गया सम्मानित

    काशी हिंदू विवि के केएन उडप्पा सभागार में आयोजित इग्नू के 28वें दीक्षांत समारोह में डॉ.राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद के कुलपति प्रो. जीसी जायसवाल ने अजित को गोल्ड मेडल देकर सम्मानित किया। इस कोर्स से पहले अजीत ने बीएचयू स्थित इग्नू केंद्र से ही डिजास्टर मैनेजमेंट, एनजीओ प्रबंधन, मानवाधिकार और फूड एंड न्यूट्रिशन में डिप्लोमा कोर्स किया था। इन सभी विषयों में उसने 65 फीसद से अधिक अंक हासिल किए हैं।

    दस साल की हुई है सजा

    अजीत को वर्ष 2012 में जमीनी विवाद को लेकर अपने पड़ोसी की गैर इरादतन हत्या के आरोप में दस वर्ष की सजा कोर्ट से सुनाई गई है। तब से अजीत सेंट्रल जेल वाराणसी में कैद की सजा काट रहा है। अजीत की इस सफलता पर इग्नू के वाराणसी केंद्र निदेशक एएन त्रिपाठी ने सराहना की तो वाराणसी सेंट्रल जेल के वरिष्ठ अधीक्षक संजीव त्रिपाठी, जेलर बीएन मिश्रा ने अजीत को इस उपलब्धि के लिए बधाई भी दी। अजीत की उपलब्धि पर अन्य कैदियों में भी शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है।

    लक्ष्य ने दिलाई सफलता

    डिप्लोमा इन टूरिज्म स्टडीज में प्रथम रैंक लाने वाले अजीत ने बताया कि उसने इस परीक्षा को एक लक्ष्य मानकर तैयारी की। इसके लिए वह दिल में पूरी लगन के साथ जब भी जेल में समय मिलता था तो पढ़ाई शुरू कर देता था। जेल में ऐसे भी कैदी है जो अंदर रहकर भी अपराध को अपना हथियार मानते हैं, लेकिन अजीत इससे परे शिक्षा को ही अपना सबकुछ मान लिया। वह जेल से ही बीकॉम भी कर रहा है। पिता राम बचन सरोज एवं मां सुशीला देवी भी अपने बेटे की इस उपलब्धि पर काफी उत्साहित थे।