लखनऊ में तीन 'देवियों' ने संभाला मां का दरबार, यूं बचा रहीं 10 पीढ़ियों की विरासत
नारी सशक्तिकरण लखनऊ के मेंहदीगंज में स्थापित मां शीतला देवी मंदिर की कमान बेटियों ने संभाली बीमार पिता का बनी सहारा। 10 पीढ़ियों से एक ही परिवार के मुख्य पुजारी होने की चली आ रही विरासत को बेटियों ने रखा कायम।

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। लक्ष्मणनगरी में श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के दौरान लव द्वारा मेंहदीगंज में स्थापित मां शीतला देवी मंदिर की कमान बेटियों ने संभाल ली है। 10 पीढ़ियों से एक ही परिवार के मुख्य पुजारी होने की चली आ रही विरासत को बचाने के लिए वह पूरी तरह से तैयार हैं। बीमार पिता श्याम मनोहर तिवारी का सहारा बनी इन बेटियों ने सनातन काल से चली आ रही मंदिर की कार्यशैली को जीवन का हिस्सा बना लिया है।
मुख्य पुजारी श्याम मनोहर तिवारी ने बताया कि 10 पीढ़ियों से एक ही परिवार से मंदिर के मुख्य पुजारी होते हैं। मेरी तीन बेटियां हैं और जो बेटे से कम नहीं है। समाज को नई दिशा देने और बराबरी की नई दास्तां लिखने के लिए बेटियों को आगे किया है। बड़ी बेटी सोनी मंदिर के सभी कर्मकांड को सनातन परंपरा के अनुसार करती है तो छोटी बेटी मोनी और सबसे छोटी प्रिया बड़ी बहन का अनुसरण करती हैं।
परास्नातक के साथ कंप्यूटर में है महारत: मुख्य पुजारी की तीनों बेटियां परास्नातक के साथ ही कंप्यूटर में महारत हासिल किए हुए हैं। बड़ी बेटी सोनी का कहना कि हम लोग पिता जी को कभी बेटा न होने का एहसास नहीं होने देते। बेटे से कहीं ज्यादा काम करके उनको खुशी देना चाहती हूं।
परंपरा को बचाना मजबूरी नहीं जरूरी है: सोनी बताती हैं कि सुबह भोर में स्नानकर कर मंदिर के पट खोलना और ज्योति जलाकर सनातन परंपरा के अनुसार मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चारण करना दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। मां से पूजा और पिता से सनातनकालीन परंपरा को सीख रही हूं। सनातन परंपरा को बचाना मजबूरी नहीं है बल्कि वर्तमान समाज की मांग के अनुरूप है। मुझे अपने माता-पिता पर गर्व है कि मां शीतला देवी के आंचल में उन्होंने मुझे जन्म दिया। जीवन में ज्ञान और शीतलता का एहसास कराने वाली मां ने हम लोगों को रास्ता दिखाया है। अपनी विरासत को बचा सकूं, यही जिंदगी का मकसद है।
लगता है आठों का मेला: लखनऊ के मुख्य ऐतिहासिक मेलों में यहां लगने वाला आठों का मेला खास है। होली के आठवें दिन लगने वाले मेले में मां को बासी भोजन चढ़ाया जाता है। इसके बाद से गर्मी का मौसम शुरू होता है और श्रद्धालुओं को बासी भोजन पर विराम लगाने का संदेश भी दिया जाता है। मेंहदी गंज के कटरा खुदायार खां और टिकैतगंज के बीच स्थापित मंदिर के गुंबद पर लगी पताकाएं दूर से ही मंदिर होने की अनुभूति कराती हैं। इतिहासकार पद्मश्री डा.योगेश प्रवीन ने बतायाकि श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के दौरान लव ने मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर परिसर में घोड़ा पकड़े हुए प्राचीन मूर्तियां भी लगी हैं। मंदिर के पास गोमती नदी का रास्ता भी था। यह भी कहा जाता है कि कनकोहर की बाग में एक बार बनजारो का डेरा पड़ा। एक दिन मां शीतला देवी की प्रतिमा उनके हाथ लगी और बनजारों के सरदार ने पेड़ के पास प्रतिमा रख दी। अपनी विरासत को संभालने के लिए आगे आईं बेटियों ने समाज में नई सोच को हवा दी है। मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्या गिरि का कहना है कि नारी सशक्तीकरण का इससे अच्छा उदाहरण नहीं मिल सकता। ऐसी बेटियों को वह सम्मानित करके उनका उत्साह भी बढ़ाएंगी।
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