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महाकवि नीरज स्मृति शेष : यादें छोड़ गया गीतों का राजकुमार

गीतों में गांभीर्य के साथ उसके बोलों को कर्णप्रिय बना देना नीरज के ही बूते की बात थी। उनके गीतों में दर्शन छिपा है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 19 Jul 2018 08:17 PM (IST)Updated: Fri, 20 Jul 2018 12:11 AM (IST)
महाकवि नीरज स्मृति शेष :  यादें छोड़ गया गीतों का राजकुमार
महाकवि नीरज स्मृति शेष : यादें छोड़ गया गीतों का राजकुमार

शोखियों में घोला जाये फूलों का शबाब।

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उसमें फिर मिलाई जाए थोड़ी सी शराब।

होगा यूं नशा जो तैयार वो प्यार है।

लखनऊ (राजू मिश्र)। गीतों में गांभीर्य के साथ उसके बोलों को कर्णप्रिय बना देना नीरज के ही बूते की बात थी। उनके गीतों में दर्शन छिपा है। ए भाई, जरा देख के चलो...। पहली ही फिल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे, कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे...और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा, खासे लोकप्रिय हुए। परिणाम हुआ कि वे बंबई में रहकर फिल्मों के लिए गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा लेकिन, गीतों के राजकुमार को बंबई की फिल्मी दुनिया लंबे समय तक रास नहीं आई।

श्रोता नीरज को सुनते नहीं अघाते

मंचीय कवि को आज जो पारिश्रमिक मिलता है, बेशक उसकी परंपरा हरिवंश राय बच्चन ने शुरू की लेकिन, मंचीय कविता को जो ऊंचाइयां गोपाल दास नीरज ने प्रदान की, वह कालांतर में मील का पत्थर बनीं। प्रेमरस में रचे, पगे उनके गीत रेडियो में दिन भर बजते और श्रोता भी उन्हें सुनते नहीं अघाते। इटावा में जन्मे गोपाल दास सक्सेना को शोहरत की बुलंदियां छूने को यूं ही नहीं मिलीं। बचपन में उनके सिर से पितृछाया उठ गई। फिर शुरू हुई उनकी संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा। पढ़ाई कानपुर में हुई। कानपुर प्रवास पर उन्होंने शब्द सीमा से परे जाकर लंबी कविता लिखी, जिसमे कानपुर के विविध स्वरूपों का चित्रण है। नीरज की तर्कशक्ति विलक्षण थी। एक बार नवरात्र में प्रात: उनसे मिलना हुआ। औपचारिक बातचीत के बीच वह ही 'दिव्य रसायन' का सेवन कर रहे थे। यह कहने पर कि नवरात्र का उपवास चल रहा है, नीरज लगभग बिफर उठे। कहने लगे- 'जानते हो उपवास का मतलब। फिर खुद ही समझाने लगे। उप का एक अर्थ करीब है और वास का मतलब है रहना। मतलब उपवास का सीधा सा अर्थ है अपने करीब बैठना। दिव्य रसायन खुद को खुद के करीब लाने का सबसे सशक्त माध्यम है। ऐसे थे नीरज। 

दद्दा और नीरज एक कथा प्रसंग

नीरज ने एक किस्सा कभी सुनाया था। उन दिनों नीरज का नाम कवि सम्मेलन के सौ फीसद कामयाब होने की गारंटी माना जाता था। उन्हें इटावा के ग्राम्यांचल में काव्यपाठ के लिए जाना था पर, जाने से पहले उन्होंने आयोजकों के सामने शर्त रख दी कि कवि सम्मेलन समाप्त होते ही उन्हें इटावा रेलवे स्टेशन तक पहुंचवा दिया जाए। आयोजक मान गए। कवि सम्मेलन खत्म होते ही नीरज को एक जीप मुहैया करवा दी गई। ड्राइवर को इस ताकीद के साथ कि कवि जी को ट्रेन में बैठाकर ही लौटना। दैवयोग से जीप जब जंगल से गुजर रही थी तभी डीजल खत्म हो गया। चारों तरफ नीम सन्नाटा। घुप अंधेरा ऐसा कि आदमी को आदमी भी न चीन्ह सके। जानवरों की आवाजें सन्नाटे को और भी आक्रांत बना रही थीं। तभी दो नकाबपोश प्रकट हुए। हाथ में उनके लालटेन थी लेकिन कंधे पर बंदूक टंगी थी। आते ही उन्होंने ड्राइवर को अर्दब में ले लिया और सवालों की बौछार कर दी। कौन हो? साथ में कौन हैं? इतनी रात कहां से आ रहे हो? ड्राइवर ने जब यह बताया कि ये कवि जी  हैं।कवि सम्मेलन से लौट रहे हैं तो दोनों समवेत स्वर में चिल्ला उठे, दद्दा के पास चलना पड़ेगा। इत्ती रात में कवि जंगल में थोड़ी घूमते  हैं। वार्तालाप सुनते नीरज की घिग्घी बंध गई थी। करते क्या न करते नीरज और ड्राइवर महोदय को लेकर दोनों महाशय दद्दा के पास चल पड़े। मुकाम पर दद्दा एक चारपाई पर लेटे हुए थे। बंदूकधारियों ने  दद्दा को बताया कि ये कवि जी हैं। डीजल खत्म हो जाने के कारण इनकी जीप बीच जंगल खड़ी हो गई है। दद्दा बोले- हम कैसे मानें कि तुम कवि जी हो? अच्छा ऐसा करो कि हमको भजन सुनाओ। नीरज ने टेर दी और भजन सुनाया। दद्दा को भजन भा गया। दद्दा ने फिर तो नीरज से कई भजन सुने। आखिर में जेब में हाथ डाला और सौ रुपये का नोट देते हुए कहा बहुत अच्छा गा लेते हो। तुम्हारे गले में साक्षात सरस्वती विराजमान हैं।नीरज चलने को उद्यत हुए तो दद्दा ने अपने चेलों से कहा ड्राइवर को कुछ खुराक दे दो। बंदूकधारी चेले ने उन्हें डीजल का  टीन देते हुए कहा- जब कवि जी को लेकर चल रहे थे तो कम से कम डीजल टंकी भी चेक कर लेनी चाहिए थी। नीरज जी ने दद्दा का परिचय पूछना चाहा तो बंदूकधारी बोले-चुपचाप निकल लो। दद्दा नाम ही काफी है। बाद में पता चला दद्दा थे बागी सरदार माधौ सिंह। 

कितने पुरस्कार कितनी किताबें

नीरज ने जवानी से लेकर अंतिम क्षण तक शोहरत का परचम लहराया। पद्मश्री, पद्मभूषण सम्मान सरीखे गरिमापूर्ण अलंकरण उनके खाते में दर्ज हैं। नीरज ने डेढ़ दर्जन से अधिक किताबें भी लिखीं। नीरज का तिरोधान शब्दों के ऐसे जादूगर का अवसान है जो श्रोताओं को प्रेमरस में भिगोने के साथ ही धर्म-अध्यात्म जगत में गोते लगवाने की कला में भी निष्णात था। नीरज की कविता है-

जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना,

अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।


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