हिमालयी पौधा पिरूली: बड़ी आंत के कैंसर के इलाज में नई उम्मीद
हिमालयी पौधे ‘पिरूली’ में बड़ी आंत के कैंसर के इलाज की संभावना मिली है। वैज्ञानिकों ने पाया कि इसमें मौजूद रसायन कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर सकते हैं। पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग होने वाले इस पौधे पर शोध से कैंसर रोगियों के लिए नई उम्मीदें जागी हैं और भविष्य में प्रभावी दवाएं बनाने की संभावना है।

सहायक प्रोफेसर, बाटनी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय डा नेहा साहू और औषधीय पौधा पिरूली
जागरण संवाददाता, लखनऊ : बड़ी आंत के कैंसर के इलाज के क्षेत्र में नई दिशा मिल सकती है। लखनऊ विश्वविद्यालय की सहायक प्राध्यापक डा. नेहा साहू की शोध टीम में शामिल विज्ञानियों ने एक महत्वपूर्ण शोध में उत्तराखंड में पाई जाने वाली औषधीय झाड़ी सारकोकोका सैलिग्ना (स्थानीय नाम पिरूली) से ऐसे दो प्राकृतिक यौगिक खोजे हैं, जो बड़ी आंत के कैंसर कोशिकाओं को विशेष रूप से नष्ट करते हैं, जबकि सामान्य कोशिकाएं सुरक्षित रहती हैं।
यह शोध लखनऊ विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग, सीएसआइआर-सीडीआरआइ, सेवीथा मेडिकल कालेज एंड हास्पिटल (चेन्नई) और एसजीटी यूनिवर्सिटी (गुरुग्राम) के विज्ञानियों के संयुक्त प्रयास से किया गया। यह शोध अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल एसीएस ओमेगा में प्रकाशित हुआ है, जिसका इंपैक्ट फैक्टर 4.3 है।
डा. नेहा साहू ने बताया कि अब तक इस पौधे पर शोध मुख्यतः पाकिस्तान और चीन में हुआ था। भारत में पहली बार इतने व्यापक स्तर पर इस पौधे की कैंसर-रोधी क्षमता को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया गया है। यह अध्ययन इस बात का संकेत देता है कि हिमालयी क्षेत्र की औषधीय वनस्पतियां गंभीर बीमारियों के उपचार में अत्यंत प्रभावी हो सकती हैं।
प्राकृतिक यौगिकों से कैंसर उपचार की संभावना
शोध टीम ने पौधे के अर्क से बायोएक्टिविटी-गाइडेड फ्रैक्शनशन तकनीक (पौधे के अर्क को विभाजित कर यह देखना कि कौन-सा हिस्सा सबसे प्रभावी है) से दो स्टेरायडल ऐल्कलाइड्स : सार्कोरिन सी और सालोनिन सी को अलग किया। इन यौगिकों ने एचटी-29 नामक कोलन कैंसर कोशिकाओं पर अत्यधिक प्रभावी और चयनात्मक साइटोटाक्सिसिटी (केवल कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने की क्षमता) दिखाई, जबकि सामान्य कोशिकाएं सुरक्षित रहीं।
इन दोनों यौगिकों का असर एफडीए-स्वीकृत कैंसर दवा सिसप्लैटिन से भी अधिक पाया गया। कंप्यूटर आधारित अध्ययन से पता चला कि ये यौगिक कैंसर में सक्रिय प्रोटीन को लक्षित करते हैं, जो कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि में भूमिका निभाते हैं। इस अध्ययन में सीडीआरआइ (लखनऊ) के सेवानिवृत्त वरिष्ठ विज्ञानी एवं वनस्पति विज्ञानी डा. केआर आर्या, डा. अमित दुबे और डा. नितेश सिंह का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।
शोध दल शामिल रहे ये विज्ञानी
डा. नेहा साहू, सेवीथा इंस्टीट्यूट, चेन्नई से डा. अमित दुबे, एसजीटी यूनिवर्सिटी, गुरुग्राम से डा. नितेश सिंह, सीएसआइआर-सीडीआरआइ, लखनऊ के विज्ञानी डा. केआर आर्या, डा. दीपक दत्ता, डा. टी. नरेंद्र, डा. बृजेश कुमार, डा. प्रज्ञा यादव, डा. प्रियांक चतुर्वेदी, संजीव मीना, डा. विजया शुक्ला, और सेंट्रल यूनिवर्सिटी आफ साउथ बिहार, गया के डा. बिकाश कुमार रजक।
ये होंगे लाभ
भारत में बड़ी आंत का कैंसर सबसे सामान्य पांच कैंसरों में से एक है। इसकी वर्तमान उपचार पद्धतियां प्रायः गंभीर दुष्प्रभाव और औषधि प्रतिरोध जैसी समस्याएं उत्पन्न करती हैं। ऐसे में पौधों से प्राप्त प्राकृतिक यौगिकों की खोज, जो केवल कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते हैं, अधिक सुरक्षित, सुलभ और पर्यावरण-अनुकूल उपचार की दिशा में अहम कदम साबित हो सकती है।

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