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    बुद्ध की धरती पर वापस आए उनके अवशेष, उत्तर प्रदेश में बढ़ेंगी सांस्कृतिक पर्यटन की संभावनाएं

    Updated: Sun, 21 Sep 2025 09:39 PM (IST)

    भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष भारत वापस आ गए हैं। ये अवशेष 1898 में सिद्धार्थनगर जिले के पिपरहवा स्तूप से खोजे गए थे और औपनिवेशिक काल में विदेश ले जाए गए थे। संस्कृति मंत्रालय और गॉदरेज इंडस्ट्रीज ग्रुप के प्रयासों से इन्हें हांगकांग में नीलामी से रुकवाकर वापस लाया गया। इनका सार्वजनिक प्रदर्शन जल्द होगा। यह वापसी उत्तर प्रदेश को वैश्विक बौद्ध धरोहर का केंद्र बनाने में महत्वपूर्ण है।

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    पिपरहवा अवशेषों की घर वापसी उत्तर प्रदेश बना बौद्ध धरोहर का केंद्र

    डिजिटल डेस्क, लखनऊ/नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश एक बार फिर वैश्विक बौद्ध धरोहर के केंद्र में आ गया है। 127 वर्षों बाद पवित्र पिपरहवा अवशेष, जो सिद्धार्थनगर जिले के पिपरहवा स्तूप से 1898 में खोजे गए थे, भारत वापस लौट आए हैं। औपनिवेशिक काल में विदेश ले जाए गए ये अवशेष मई 2025 में हांगकांग की एक अंतरराष्ट्रीय नीलामी में रखे गए थे। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और गॉदरेज इंडस्ट्रीज ग्रुप के संयुक्त प्रयास से नीलामी रुकवाई गई और 30 जुलाई 2025 को इन्हें भारत वापस लाया गया।

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    जल्द होगा सार्वजनिक प्रदर्शन

    पिपरहवा अवशेषों की वापसी सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की भूमि के उस गौरवशाली इतिहास की पुनः स्थापना है, जिसने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से पूरी दुनिया को आलोकित किया। इन अवशेषों का सार्वजनिक प्रदर्शन शीघ्र ही आयोजित किया जाएगा। यह आयोजन उत्तर प्रदेश को वैश्विक बौद्ध धरोहर का केंद्र बनाने और राज्य की सांस्कृतिक पर्यटन संभावनाओं को नई ऊंचाई देने वाला साबित होगा।

    उत्तर प्रदेश: बुद्ध की धरोहर

    सिद्धार्थनगर का पिपरहवा स्तूप, जहां भगवान बुद्ध के अवशेष खोजे गए; वाराणसी का सारनाथ, जहां उन्होंने प्रथम उपदेश दिया और कुशीनगर, जहां उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया—यह पावन त्रिकोण उत्तर प्रदेश को विश्वभर के करोड़ों बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए सबसे बड़ा और अद्वितीय तीर्थस्थल बनाता है। उत्तर प्रदेश की पावन धरती भगवान बुद्ध की तपोभूमि है। पिपरहवा अवशेषों की घर वापसी न केवल भारत की सांस्कृतिक शक्ति का प्रमाण है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक महत्ता को भी पुनः स्थापित करती है। यह प्रदेश आज भी पूरी दुनिया को शांति, करुणा और सहअस्तित्व का संदेश देता है।

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी 127 वर्षों बाद भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेषों की भारत वापसी का स्वागत किया था और इसे राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर के लिए एक गर्व का क्षण बताया था।

    अवशेषों का महत्व

    इन अवशेषों में भगवान बुद्ध की अस्थियां, क्रिस्टल की पेटिकाएं, स्वर्णाभूषण और रत्न, बलुआ पत्थर का संदूक शामिल हैं। ब्राह्मी लिपि के अभिलेख इन्हें सीधे शाक्य वंश से जोड़ते हैं। गॉदरेज इंडस्ट्रीज ग्रुप के कार्यकारी उपाध्यक्ष, पिरोजशा गॉदरेज ने कहा कि पिपरहवा अवशेषों की वापसी केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए शांति और करुणा का संदेश है।