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    यूपी में दो से अधिक बच्चे वालों की सुविधाओं में होगी कटौती, सरकारी योजनाओं के लाभ से किया जा सकता है वंचित

    Population Control Law विधि आयोग ने अब जनसंख्या नियंत्रण के बड़े मुद्दे पर अपना काम शुरू किया है। इसके तहत दो से अधिक बच्चों के अभिभावकों को सरकारी सुविधाओं के लाभ से वंचित किए जाने को लेकर विभिन्न बि‍ंदुओं पर अध्ययन होगा।

    By Anurag GuptaEdited By: Updated: Sun, 20 Jun 2021 11:50 AM (IST)
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    जनसंख्या नियंत्रण के लिए बनेगा कानून, राज्य विधि आयोग ने शुरू किया अध्ययन।

    लखनऊ, [राज्य ब्यूरो]। हम दो हमारे दो। बच्चे दो ही अच्छे। ऐसी सोच रखने वालों के लिए सूबे में आने वाले दिनों में जि‍ंदगी की राह आसान होगी। जनसंख्या के लिहाज से देश की सर्वाधिक आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश में अब दो से अधिक बच्चे वाले अभिभावकों की मुश्किलें बढऩे वाली हैं। राज्य विधि आयोग ने प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून का मसौदा बनाना शुरू कर दिया है। आयोग, फिलहाल राजस्थान व मध्य प्रदेश समेत कुछ अन्य राज्यों में लागू कानूनों के साथ सामाजिक परिस्थितियों व अन्य बि‍ंदुओं पर अध्ययन कर रहा है। जल्द वह अपना प्रतिवेदन तैयार कर राज्य सरकार को सौंपेगा।

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    सूबे में बीते चार वर्षों में उप्र विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम व उप्र लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम समेत कई नए कानून लागू किए गए हैं, जबकि कई अहम कानूनों में बदलाव की रूपरेखा भी तैयार की जा चुकी है। इसी कड़ी में विधि आयोग ने अब जनसंख्या नियंत्रण के बड़े मुद्दे पर अपना काम शुरू किया है। इसके तहत दो से अधिक बच्चों के अभिभावकों को सरकारी सुविधाओं के लाभ से वंचित किए जाने को लेकर विभिन्न बि‍ंदुओं पर अध्ययन होगा। खासकर सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाली सुविधाओं में कितनी कटौती की जाए, इस पर मंथन होगा। फिलहाल राशन व अन्य सब्सिडी में कटौती के विभिन्न पहलुओं पर विचार शुरू कर दिया गया है।

    सूबे में इस कानून के दायरे में अभिभावकों को किस समय सीमा के तहत लाया जाएगा और उनके लिए सरकारी सुविधाओं के अलावा सरकारी नौकरी में क्या व्यवस्था होगी, ऐसे कई बि‍ंदु भी बेहद अहम होंगे। आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एएन मित्तल का कहना है कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर असोम, राजस्थान व मध्य प्रदेश में लागू कानूनों का अध्ययन शुरू कर किया गया है। बेरोजगारी व भुखमरी समेत अन्य पहलुओं को ध्यान में रखकर विभिन्न बि‍ंदुओं पर विचार के आधार पर प्रतिवेदन तैयार किया जाएगा।

    आयोग के इन प्रतिवेदनों को किया गया मंजूर      

    • राज्य विधि आयोग के दो प्रतिवेदन के तहत राज्य सरकार करीब 470 निष्प्रयोज्य व अनुपयोगी अधिनियमों को खत्म कर चुकी है, जबकि कई अन्य को समाप्त करने पर विचार चल रहा है।
    • आयोग की सिफारिश पर उप्र गो-वध निवारण (संशोधन) अधिनियम-2020 बना।
    • सूबे में आदर्श किराया नियंत्रण व बेदखली को लेकर अध्यादेश लागू हुआ।
    • राज्य में किन्नर समुदाय के सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक उत्थान, कृषि तथा संपत्ति में उत्तराधिकार को कर उप्र राजस्व संहिता (संशोधन) अधिनियम 2020 बनाया गया।
    • उप्र विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून बना।
    • प्रदेश में महिलाओं से चेन, पर्स, मोबाइल व अन्य आभूषण लूटने की घटनाओं पर प्रतिबंध के लिए कड़ी सजा के प्रस्ताव को मानकर राज्य सरकार ने कानून में संशोधन का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा।
    • उप्र लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली को लेकर कानून लागू।
    • उप्र शहरी भवन किरायेदारी विनियमन के लिए अध्यादेश लागू।

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    इन प्रस्तावों पर चल रहा विचार

    • असामाजिक तत्वों व संगठित समूहों द्वारा शासकीय व अशासकीय भूमि पर अवैध कब्जे रोकने का प्रस्ताव।
    • उन्मादी हि‍ंसा रोकने के लिए अलग कानून बनाने का प्रतिवेदन।
    • निर्विवाद उत्तराधिकार के लिए कानून बनाकर प्रकरणों को सरल प्रक्रिया के तहत व जल्द निस्तारण के लिए कानून बनाने की सिफारिश।
    • माता-पिता व वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण के लिए कानून।
    • पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीशों को दांडिक मामलों के विचारण की शक्ति प्रदान किए जाने का प्रस्ताव।
    • उप्र नगरीय परिसर किरायेदार विनियमन अध्यादेश के प्रतिस्थानी विधेयक का प्रस्ताव।
    • सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक ढांचा विनियमन व धार्मिक प्रयोजन के लिए सार्वजनिक स्थानों के प्रयोग को प्रतिबंधित करने का प्रतिवेदन।
    • विवाह के अनिवार्य पंजीकरण का प्रतिवेदन।
    • उप्र सार्वजनिक द्यूत (निवारण) विधेयक का प्रारूप।