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    पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने संगीत को आमजन के लिए बनाया सरल और सुलभ, विकसित की अपनी स्वरलिपि पद्धति

    By Rafiya NazEdited By:
    Updated: Tue, 10 Aug 2021 12:50 PM (IST)

    संगीत को आमजन के लिए सरल और सुलभ बनाने का श्रेय पंडित विष्णु नारायण भातखंडे को जाता है। संगीत की संस्थागत शिक्षा में क्रांति लाने वाले पं. भातखंडे का जन्म 10 अगस्त 1860 को मुंबई में हुआ था। संगीत में अत्याधिक रुचि होने के कारण सितार व गायन भी सीखा।

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    पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने संगीत को आमजन के लिए बनाया सरल और सुलभ।

    लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। आज कोई भी संगीत सीख सकता है, क्योंकि इसे लिपिबद्ध किया गया है। संगीत को आमजन के लिए सरल और सुलभ बनाने का श्रेय पंडित विष्णु नारायण भातखंडे को जाता है। संगीत की संस्थागत शिक्षा में क्रांति लाने वाले पं. भातखंडे का जन्म 10 अगस्त 1860 को मुंबई में हुआ था।

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    पं. विष्णु नारायण भातखंडे ने वकालत की पढ़ाई की, लेकिन संगीत में अत्याधिक रुचि होने के कारण सितार व गायन भी सीखा। पं. भातखंडे पारसी गायनोत्तेजक मंडली से जुड़े, जिसमें लगभग सभी बड़े महाराष्ट्रियन कलाकार शामिल थे, यहां उन्होंने धु्रपद व ख्याल भी सीखे। उस समय गायन सीखने-सिखाने के लिए विभिन्न घराने स्थापित थे। घराने में जन्म लेने वाले वंशज या घराने के विद्यार्थी को ही संगीत की शिक्षा प्राप्त हो सकती थी। पं. भातखंडे ने जन साधारण में संगीत शिक्षा सुलभ कराने के लिए संगीत सम्मेलन कर संगीतज्ञों से मशविरा किया, जिसके फलस्वरूप 1926 में राय उमानाथ बली के सहयोग से लखनऊ में तत्कालीन गर्वनर के नाम से मैरिस म्यूजिक कालेज (वर्तमान में भातखंडे संगीत संस्थान अभिमत विवि) की स्थापना की गई। संस्थागत शिक्षा प्रणाली में सगीत विषय शामिल होने से संगीत के प्रति रुचि जागृत हुई।

    भातखंडे संगीत संस्थान अभिमत विवि के गायन विभाग की अध्यक्ष प्रो. सृष्टि माथुर ने बताया कि पहले संगीत शिक्षा मौखिक परंपरा द्वारा दी जाती थी, पं. भातखंडे ने विभिन्न बंदिशों और रागों को लिखने और सीखने के लिए अपनी स्वरलिपि पद्धति विकसित की, जो सरल थी। पं. भातखंडे ने संगीत शिक्षण विधि को सरल बनाने के लिए थाट पद्धति विकसित की, जिसमें रागों का 10 थाटों के अंतर्गत वर्गीकरण किया गया। थाट और स्वरलिपि पद्धति के कारण भारतीय राग संगीत सर्वसुलभ हो गया। इसकी वजह से ही संगीतज्ञों में एक नियमबद्ध प्रणाली से गाने-बजाने की योग्यता पैदा हुई। विभिन्न घरानों के संगीतज्ञों से पं. भातखंडे ने असंख्य बंदिशें प्राप्त कीं और उन्हें क्रमिक पुस्तक मालिका (छह भागों) में लिखा। इस तरह जो बंदिशें सिर्फ घरानों तक सीमित थीं, वे अब सुलभ हो गईं। साथ ही, स्वरलिपि पद्धति विकसित हो जाने के कारण उनको याद रखना भी आसान हो गया। भातखंडे संगीत संस्थान अभिमत विश्वविद्यालय में पंडित भातखंडे की पद्धति से ही शिक्षण प्रदान करते हैं, जो सबके लिए सरल और सुलभ है।