Pandit Chhannulal Mishra: पंडित छन्नूलाल मिश्र ने लखनऊ महोत्सव के मंच को कहा था 'संगीत का मंदिर'
Classical Music Legend Pandit Chhannulal Mishraशास्त्रीय गायक पद्मभूषण पं.छन्नूलाल मिश्र का गुरुवार को मीरजापुर में निधन हो गया। उन्होंने उस वर्ष लखनऊ महोत्सव की पहली सांस्कृतिक संध्या को सुशोभित किया था। रात करीब आठ बजे जब पं.छन्नूलाल मिश्र श्रोताओं के सम्मुख हुए तो उनमें कलाकार के साथ एक गुरु की भी छवि भी थी।

महेन्द्र पाण्डेय, जागरण, लखनऊ : वर्ष 2013 में 22 नवंबर की रात गहरा रही थी। ठंड भी थी, फिर भी लोग पंडित छन्नूलाल मिश्र को सुनने के लिए लखनऊ महोत्सव में डटे हुए थे।
पं. मिश्र जहां बैठे थे, उन्होंने उसे मंच नहीं माना। कहा, 'मंच नाटक के लिए होता है और स्टेज भाषण के लिए। स्वर ही ईश्वर है। जहां भक्त सुर-लय में गाते हैं, वहीं भगवान होते हैं। इसलिए यह मंच नहीं संगीत का मंदिर है।'
शास्त्रीय गायक पद्मभूषण पं.छन्नूलाल मिश्र का गुरुवार को मीरजापुर में निधन हो गया। उन्होंने उस वर्ष लखनऊ महोत्सव की पहली सांस्कृतिक संध्या को सुशोभित किया था। रात करीब आठ बजे जब पं.छन्नूलाल मिश्र श्रोताओं के सम्मुख हुए तो उनमें कलाकार के साथ एक गुरु की भी छवि भी थी।
उन्होंने उस दौर के संगीत को अप्रिय और अपभ्रंश बताने के साथ शास्त्रीय संगीत को समझाया। कहा था, 'पहले शास्त्रीय संगीत समझना जरूरी है। अन्यथा हम आ.. आ... करते रहें। आप न समझें तो क्या फायदा।' इसके बाद उन्होंने गायन शुरू किया तो तो लखनवियों को समझदार बताकर प्रशंसा भी की थी। 'रंक को आज दान देने दो, मूक को आज गान देने दो....' सुनाने के साथ उन्होंने राग हंसध्वनि में छोटा व बड़ा खयाल व लखनऊ की बंदिश भी सुनाई थी।
'सजन तुम काहे को नेह लगाए...' सुनाया तो सबने खूब तारीफ की थी। संगीतप्रेमी सरस्वती उपाध्याय ने बताया कि लखनऊ महोत्सव में पं.छन्नूलाल मिश्र ने संगीत के सात स्वरों को मानव सृष्टि का आधार बताया था। उन्होंने सा से साकार ब्रह्म, रे से ऋषि-मुनि, ग से गंधर्व, म से महिपाल, प से पंचतत्व, ध से धर्म और नि से निरंकार बताया था। वह इसके बाद भी लखनऊ कई बार आए और अपनी गायिकी का लोगों को दीवाना बनाया। वह लखनऊ में सांस्कृतिक समारोहों के अलावा लोक गायिका मालिनी अवस्थी सहित कई कलाकारों के यहां निजी कार्यक्रमों में भी आते रहे।
'ऐसे साधकों की कथाएं बहुत सुनीं, देखा कम है'
पद्मश्री से अलंकृत लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने कहा कि पंडित छन्नूलाल मिश्र का जाना भारतीय संगीत परंपरा के लिए बहुत बड़ी क्षति है। छन्नूलाल जी अद्भुत विलक्षण व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। वह जो गाते थे, उसे विस्तार से समझाते भी थे। सामने बैठा हुआ श्रोता भी उनसे तुरंत जुड़ जाता था।
यह उनकी बड़ी विशेषता थी। जो उनसे व्यक्तिगत मिला होगा, उसे अच्छे से पता है कि छन्नूलाल मिश्र जी का जितनी सहज गायन था, वह उतनी ही सहजता से लोगों से मिलते थे। वह एक कमरे की कुटिया में रहते थे। वहीं से तैयार होते थे और वहीं से मंच पर जाते थे। उन्हें वहीं चैन मिलता था। ऐसे साधकों की हमने कथाएं बहुत सुनी हैं, लेकिन देखा बहुत कम है। वह मेरी बेटी के विवाह समारोह में भी आए थे।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।