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    अकादमी पुरस्कार प्राप्त पखावज वादक डाॅ. राज खुशीराम का निधन

    Updated: Thu, 18 Dec 2025 04:07 PM (IST)

    लखनऊ में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त प्रख्यात पखावज वादक डा. राज खुशीराम का 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया। सांस लेने में तकलीफ के ...और पढ़ें

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    जागरण संवाददाता, लखनऊ। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त प्रख्यात पखावज वादक डा.राज खुशीराम का निधन हो गया। वह करीब 72 वर्ष के थे। उन्हें मंगलवार को सांस लेने में परेशानी हुई तो किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में दिखाया गया।

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    उसके बाद गोमतीनगर घर आ गए, परंतु सांस की तकलीफ दूर नहीं हुई। बुधवार शाम करीब सात बजे उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार कर 18 दिसम्बर को पूर्वाह्न 11 बजे बैकुंठ धाम भैंसाकुंड में किया जाएगा।

    डाॅ. राज खुशीराम अयोध्या घराने के विख्यात पखावज वादक स्वामी पागल दास के शिष्य और लखनऊ घराने के कथक गुरु पं. लच्छू महाराज की पटशिष्या कथक नृत्यांगना कपिला राज के पति थे। वह भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय में पखावज के अतिथि शिक्षक थे।

    भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उनका योगदान स्मरणीय है। उन्हें अंतरष्ट्रीय ध्रुपद मेला, वाराणसी के 50वें वर्ष (गोल्डन जुबली) के अवसर पर काशीनरेश महाराज अनंत नारायण सिंह ने लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया था। इसके पूर्व वर्ष 2019 में जयपुर, राजस्थान में भी उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त हुआ था।

    वरिष्ठ रंगकर्मी डा. अनिल रस्तोगी ने कहा कि डा. राज अत्यंत मिलनसार और सज्जन व्यक्ति थे। उनके निधन से स्तब्ध हूं। रंगकर्मी गोपाल सिन्हा ने कहा कि उनका हमेशा मुस्कराता चेहरा याद रहेगा। वह जितने उत्कृष्ट पखावज वादक थे, उतने ही सहज व सरल व्यक्तित्व के धनी थे।

    डा. राज खुशीराम हमारी अकादमी से जुड़े रहे। आकाशवाणी से टाप ग्रेड कलाकार थे। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की अवार्ड कमेटी में भी थे।वह बड़े मजाकिया और मिलनसार व्यक्ति थे। हमने उनकी कई रिकार्डिंग भी कराई थी। पखावज की दो परंपराएं थीं। एक- भगवानदास की परंपरा और दूसरी कुदऊ सिंह की परंपरा। वह भगवानदास की परंपरा के पखावज वादक थे। उन्हें उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी सम्मान भी प्रदान किया गया था। वह हमेशा जेब में इत्र रखते थे। जब भी किसी से मिलते थे तो हाथ में इत्र लगाते थे। पखावज की परंपरा को संजोने में उनका योगदान सदा याद रहेगा।

    -तरुण राज, पूर्व निदेशक, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी