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    Padma Bhushan Award 2021: सादगी पसंद लखनऊ के मरहूम मौलाना कल्बे सादिक को पद्म भूषण, परिवार में खुशी की लहर

    By Divyansh RastogiEdited By:
    Updated: Tue, 26 Jan 2021 07:42 AM (IST)

    Padma Bhushan Award 2021 ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मरहूम मौलाना डॉ.कल्बे सादिक को पद्म भूषण। डॉ. कल्बे सादिक का 24 नवंबर को 83 साल की उम्र इंतकाल हो गया था। इंसानियत इल्म एत्तेहाद और मोहब्बत के इस फरिश्ते को यह पुरस्कार मिलना बड़ी बात है।

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    Padma Bhushan Award 2021: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मरहूम मौलाना डॉ.कल्बे सादिक को पद्म भूषण।

    लखनऊ, जेएनएन। Padma Bhushan Award 2021: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मरहूम मौलाना डॉ.कल्बे सादिक को पद्म भूषण की घोषणा की गई। इसकी सूचना जैसी उनके परिवारीजनों को मिली तो उन्होंने सरकार का आभार जताया और खुशी जाहिर की। उनके बड़े बेटे हुसैन मियां के अलावा बेटे सिब्तैन नूरी, कल्बे हुसैन, कल्बे मुंतजिर ने बताया कि अभी सूचना मिली है, लेकिन कब मिलेगा इसकी जानकारी नहीं है।

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    वरिष्ठ शिया धर्मगुरु व इस्लामिक स्कॉलर मौलाना डॉ. कल्बे सादिक का 24 नवंबर को 83 साल की उम्र इंतकाल हो गया था। इंसानियत, इल्म, एत्तेहाद और मोहब्बत के इस फरिश्ते को यह पुरस्कार मिलना बड़ी बात है। ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने सम्मान मिलने पर खुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि हिंदू-मुस्लिम एकता और मुसलमानों के तमाम मसलों में भाईचारा कायम करने की ताउम्र कोशिश करने वाले डॉ. सादिक ने हमेशा अशिक्षित समाज में शिक्षा की अलख जलाने पर बल दिया।

    मौलाना कल्बे सादिक का जन्म 22 जून 1939 को हुआ था। उनके पिता मौलाना कल्बे हुसैन और भाई मौलाना कल्बे आबिद बहुत ही मशहूर धर्म गुरू और इस्लामी स्कॉलर थे। मदरसा सुल्तान उल मदारिस में प्राथमिक शिक्षा के बाद तालीम के लिए वह अलीगढ़ चले गए। जहां से अरबी में एमए करने के बाद पीएचडी की। उर्दू, फारसी, अंग्रेजी और हिंदी में भी महारत हासिल थी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष समेत तमाम अहम पदों पर थे।

    तुम मुझे जमीन दो मैं तुम्हें स्कूल दूंगा: नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारे 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' की तर्ज पर मौलाना कहते थे कि तुम मुझे जमीन दो मैं तुम्हें स्कूल दूंगा। उनके आह्वान पर कई लोगों ने उन्हें जमीन मुहैय्या कराई और मौलाना ने वादे के मुताबिक वहां स्कूल बनवाकर जाहिलियत का अंधेरा दूर किया। वह कई शैक्षणिक संस्थानों के अलावा कई चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक सदस्य रहे। 1984 में उन्होंने तौहीदुल मुस्लेमीन ट्रस्ट बनाया। जिसमें गरीब बच्चों की पढ़ाई में मदद और मेधावी छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति दी जाती है।

    सादगी इतनी की विरोधी भी मुरीद: 2015 में एमबी क्लब में कैंसर पीडि़त बच्चों की सहायतार्थ एक कार्यक्रम था। वह मुख्य अतिथि थे। सफेद-कुर्ता पायजामा पहने मौलाना को देखते ही गार्ड ने उन्हें वहां लगा बोर्ड दिखा दिया। जिस पर लिखा था कि बिना पैंट-शर्ट पहने प्रवेश वर्जित है। गार्ड का इशारा समझ कर वापस लौट आए। फोन कर पूछा गया तो बोले मामले को तूल न दें। गार्ड ने अपना काम किया। उसकी कोई गलती नहीं। बाद में आयोजक और क्लब की ओर से माफी मांगी गई पर मौलाना ने इसे बहुत ही सहज भाव से लिया। वह बेटियों को तालीम दिलाने के लिए प्रयास करते रहे। पूरे प्रदेश में तमाम गल्र्स स्कूल उनके सहयोग व मार्ग दर्शन में खुले।

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    बेबाकी से कहते थे अपनी बात: हमेशा हक की बात करने वालों में उनका शुमार किया जाता रहा है। अयोध्या विवाद में फैसला आने के काफी पहले ही उन्होंने कह दिया था कि मुसलमानों को जमीन पर हक छोड़ कर मंदिर बनाने की पहल करनी चाहिए। इससे हिंदू और मुसलमानों के बीच का फासला कम होगा और मोहब्बत बढ़ेगी।

    ईद के चांद की पहले ही कर देते थे भविष्यवाणी: बताते हैं कि ईद का चांद कब होगा? गणना के आधार पर यह वह बहुत पहले ही बता दिया करते थे। उनकी इस गणना का कई लोग पहले विरोध करते थे पर जब गणना सही साबित होती तो विरोधियों की बोलती बंद हो जाती। पिछले काफी वर्षों लोग उनकी दी हुई तारीख पर ही ईद मनाते चले आ रहे हैं।