Move to Jagran APP

अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय योजना में छह पशुओं की होगी एक डेयरी

डेयरी योजनाओं का नाम ही नहीं स्वरूप भी बदलेगा। अब कामधेनु जैसी बड़ी इकाइयों की जगह छोटी इकाइयां लगेंगी। नाम होगा पंडित दीनदयाल उपाध्याय डेयरी परियोजना।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 30 Aug 2018 07:23 PM (IST)Updated: Thu, 30 Aug 2018 07:23 PM (IST)
अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय योजना में छह पशुओं की होगी एक डेयरी
अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय योजना में छह पशुओं की होगी एक डेयरी

लखनऊ (जेएनएन)। डेयरी योजनाओं का नाम ही नहीं स्वरूप भी बदलेगा। अब कामधेनु जैसी बड़ी इकाइयों की जगह छोटी इकाइयां लगेंगी। नाम होगा पंडित दीनदयाल उपाध्याय डेयरी परियोजना। सरकार का मकसद छोटी-छोटी इकाईयों से दूध उत्पादन बढ़ाने के साथ स्थानीय स्तर पर रोजगार के मौके उपलब्ध कराना है। इसके तहत छह-छह दुधारू पशुओं की की डेयरी स्थापित की जाएगी। पहले चरण में प्रदेश के सभी 822 ब्लाकों में छह-छह इकाईयां स्थापित होंगी। इस तरह स्थापित होने वाली 4932 इकाईयों से हर रोज लगभग तीन लाख लीटर अतिरिक्त दूध का उत्पादन होंगा। इनसे पैदा होने वाले उन्नत प्रजाति के दुधारू पशुओं के करीब 12000 बच्चे बेहतर प्रजाति के होंगे।

loksabha election banner

चार लाख होगी एक इकाई की लागत 

एक इकाई की लागत करीब चार लाख रुपये आएगी। पशुपालक को मार्जिन मनी के रुप में 15 फीसद 60000 रुपये जमा करने होंगे। बाकी 340000 बैंक का लोन होगा। छह-छह माह के अंतराल पर पशुपालक को तीन-तीन दुधारु पशु गाय या भैंस खरीदनी होगी। लाभार्थी को इकाई पूर्ण करने के बाद अनुदान का एक लाख रुपया संबंधित बैंक को उपलब्ध करा दिया जाएगा। तीन साल तक इकाई के संचालन और किश्तों के जमा करने पर यह राशि लाभार्थी के पक्ष में समायोजित कर दी जाएगी।

पारदर्शिता के लिए लॉटरी से चयन

इसके लिए हर पशुचिकित्सालय पर आवेदन उपलब्ध होंगे। लाभार्थी की उम्र 18 से 40 वर्ष होनी चाहिए। उसे अनिवार्य रूप से कक्षा आठ पास होना चाहिए। मूलभूत संरचना के लिए खुद की आधी एकड़ जमीन होनी चाहिए। कामधेनु या किसी अन्य ऐसी योजना में से लाभान्वित पशुपालक इसका पात्र नहीं होगा। पारदर्शिता के लिए चयन लॉटरी के जरिये होगा। इनमें से 20 फीसद दुग्ध संघों से चलना होगा।

कामधेनु योजना से अंतर

मालूम हो कि सपा सरकार ने सबसे पहले 100 पशुओं की इकाई के लिए कामधेनु योजना शुरू की थी। योजना के स्वरूप के अनुसार मार्जिन मनी सहित बाकी औपचारिकताएं भी थीं। इसका लाभ सिर्फ कुछ बड़े पशुपालक ही ले सकते थे। बाद में इसे मिनी और माइक्रो कामधेनु का नाम देकर क्रमश: 50 और 25 की संख्या तक की इकाई लाई गयी। विशेषज्ञों के अनुसार यह योजना दूध उत्पादन के लिए तो ठीक थी, पर आम पशुपालक के पहुंच के दूर थी। छोटी इकाईयों से यह विसंगति दूर होगी। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.