पीजीआइ में अब नई तकनीक से पेट की बीमारी का इलाज, पहले तय होगा ट्रीटमेंट का सही तरीका
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तकनीक से इलाज करने वाला देश का पहला संस्थान बना पीजीआइ। किस मरीज में कौन सा इलाज कारगर साबित होगा मिलेगी जानकारी। इससे गंभीर मरीजों के इलाज की दिशा तय कर उनकी जान बचाई जा सकेगी।
लखनऊ, (कुमार संजय)। पेट की बीमारी अल्सरेटिव कोलाइटिस के मरीजों के लिए राहत भरी खबर है। ऐसे मरीजों के इलाज के लिए संजय गांधी पीजीआइ, लखनऊ ने नई तकनीक विकसित की है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) पर आधारित इस तकनीक से यह पता चल जाएगा कि किस मरीज में कौन सा इलाज कारगर होगा। इससे गंभीर मरीजों के इलाज की दिशा तय कर उनकी जान बचाई जा सकेगी। पीजीआइ इस तकनीक के सहारे पेट के मरीजों का इलाज करने वाला देश का पहला संस्थान होगा।
पीजीआइ के गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट प्रो. यूसी घोषाल ने 12 वर्ष के लंबे शोध के बाद अल्सरेटिव कोलाइटिस के मरीजों के इलाज के लिए एआइ मैथमेटिकल मॉडल विकसित किया है। 131 मरीजों पर इसका परीक्षण सफल रहा है। यह मॉडल अल्सरेटिव कोलाइटिस मरीजों में बताएगा कि कौन सी दवा या किस विधि से इलाज संभव होगा। प्रो. घोषाल के मुताबिक, अल्सरेटिव कोलाइटिस के गंभीर मरीज रक्तयुक्त मल और 10 से 12 बार शौच जाने की परेशानी लेकर आते हैं। इनमें कई तरह का खतरा हो सकता है। ऐसे मरीजों में इलाज की दिशा तय करना काफी जटिल काम होता है।
देखा गया है कि 10 फीसद मरीजों में प्रचलित इम्युनो सप्रेसिव ट्रीटमेंट कारगर नहीं होता है। ऐसे मरीजों को बायोलॉजिकल दवाएं देनी होती हैं। कई बार ये दवाएं भी कारगर नहीं होतीं। इस स्थिति में तुरंत सर्जरी करनी होती है। किस मरीज में कौन सा इलाज कारगर होगा, इसका पता तुरंत लग जाए तो बिना समय बर्बाद किए इलाज की दिशा तय करके मरीज को राहत पहुंचाई जा सकती है। इसीलिए एआइ बेस्ड मैथमेटिकल मॉडल तैयार किया है। इस शोध के जर्नल ऑफ गैस्ट्रो इंट्रोलाजी एंड हिपैटोलाजी ने स्वीकार किया है।
ऐसे काम करता है मॉडल
इसके तहत में एलब्युमिन का स्तर, हीमोग्लोबिन का स्तर, प्लेटलेट्स की संख्या सहित 25 पैरामीटर दर्ज किए जाते हैं। इसके बाद मॉडल बता देता है कि कौन सा ट्रीटमेंट कारगर होगा।
लिवर सिरोसिस में भी दिया था देश का पहला एआइ माडल
प्रो. घोषाल वर्ष 2003 में जब कोलकाता में थे तब लिवर सिरोसिस के इलाज के लिए उन्होंने देश का पहला एआइ बेस्ड माडल तैयार किया था। इसकी मदद से जाना सकता था कि किस मरीज में तुरंत लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है और किस रोगी में कुछ समय इंतजार किया जा सकता है।
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