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पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को हाईकोर्ट से राहत नहीं, गैर जमानती वारंट को निरस्त करने की मांग खारिज, ये है मामला

Swami Prasad Maurya News In Hindi बेटी संघमित्रा के बिना तलाक कथित दूसरी शादी का मामला कोर्ट में है। न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की एकल पीठ ने आदेश देते हुए कहा है कि स्वामी प्रसाद के विरुद्ध प्रथम दृष्टया जो आरोप लगे हैं उनका ट्रॉयल कोर्ट में ही विचार हो सकता है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने गैर जमानती वारंट को निरस्त करने की याचिका भी डाली थी।

By Jagran News Edited By: Abhishek Saxena Updated: Sun, 21 Apr 2024 07:41 AM (IST)
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Swami Prasad Maurya : स्वामी प्रसाद मौर्य को हाई कोर्ट से राहत नहीं

लखनऊ, जागरण, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को राहत देने से इन्कार कर दिया है। मौर्य के खिलाफ कथित रूप से बेटी के बिना तलाक दूसरी शादी कराने, मारपीट व गालीगलौज के साथ जानमाल की धमकी व साजिश रचने का आरोप है।

न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की एकल पीठ ने यह आदेश पारित किया कि स्वामी प्रसाद के विरुद्ध प्रथम दृष्टया जो आरोप हैं, उन पर ट्रॉयल कोर्ट में ही विचार हो सकता है। कोर्ट ने इन टिप्पणियों के साथ परिवाद की कार्यवाही व गैर जमानती वारंट को निरस्त करने की मांग वाली स्वामी प्रसाद मौर्या की याचिका को खारिज कर दिया है।

वादी ने लगाए थे ये आरोप

पत्रावली के अनुसार सुशांत गोल्फ सिटी के रहने वाले वादी दीपक कुमार स्वर्णकार ने कोर्ट में बदायूं से भाजपा की सांसद संघमित्रा व स्वामी प्रसाद मौर्या समेत अन्य के खिलाफ वाद दाखिल किया है। वादी का आरोप है कि वह संघमित्रा के साथ वर्ष 2016 से लिव इन रिलेशन में रह रहे थे।

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जानलेवा हमला भी करवाया

कहा गया है कि संघमित्रा और उनके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य ने वादी को बताया कि संघमित्रा का पहले विवाह के बाद तलाक हो गया है, लिहाजा दीपक कुमार स्वर्णकार ने तीन जनवरी 2019 को संघमित्रा से उसके घर पर शादी कर ली। हालांकि बाद में जब उसे पता चला तो शादी की बात उजागर न होने पाए, इसलिए उस पर जानलेवा हमला कराया गया।

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आरोपों की सत्यता की जांच ट्रॉयल के दौरान 

उक्त परिवाद को चुनौती देते हुए, स्वामी प्रसाद की ओर से दलील दी गई कि याची के विरुद्ध कोई ठोस आरोप नहीं लगाए गए हैं और पत्रावली पर जो बयान परिवादी का उपलब्ध है, वह विश्वसनीय नहीं लगता। कहा गया कि जो घटनाएं बताई गई हैं, वे भी श्रंखलाबद्ध नहीं हैं और परिवाद बदनीयती से दाखिल किया गया है। हालांकि न्यायालय ने इन दलीलों को अस्वीकार करते हुए कहा कि आरोपों की सत्यता की जांच ट्रॉयल के दौरान ही हो सकती है। 

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