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    Terror of Street Dogs :लखनऊ में हर दिन 130 से ज्यादा लोगों को घायल कर रहे आवारा कुत्ते

    Updated: Sun, 06 Jul 2025 12:41 PM (IST)

    Terror of Street Dogs बलरामपुर लोकबंधु और सिविल अस्पताल में जून माह में 4030 लोगों को आवारा कुत्तों ने अपना शिकार बनाया। एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाने वालों में करीब 30 प्रतिशत बच्चे होते हैं। ये आंकड़ा सिर्फ तीन सरकारी अस्पताल के हैं। इसके अलावा पीड़ित अन्य चिकित्सा संस्थानों में भी वैक्सीनेशन के लिए जाते हैं।

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    हर दिन 130 से ज्यादा लोगों को घायल कर रहे आवारा कुत्ते

    विकास मिश्र, लखनऊ : भीषण गर्मी के साथ उमस का असर आम लोगों के साथ पशुओं पर भी होता है। इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव कुत्तों पर पड़ता है। इसी कारण लखनऊ में भी इन दिनों आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ गया है। यहां रोजाना 130 से ज्यादा लोगों को कुत्ते काट रहे हैं।

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    राजधानी में पार्क हो या मुहल्ला आम लोगों का चलना दूभर हो गया है। यहां के बलरामपुर, लोकबंधु और सिविल अस्पताल में जून माह में 4030 लोगों को आवारा कुत्तों ने अपना शिकार बनाया। एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाने वालों में करीब 30 प्रतिशत बच्चे होते हैं। ये आंकड़ा सिर्फ तीन सरकारी अस्पताल के हैं। इसके अलावा पीड़ित अन्य चिकित्सा संस्थानों में भी वैक्सीनेशन के लिए जाते हैं। लोहिया संस्थान के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक और जनरल मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष प्रो. विक्रम सिंह के मुताबिक, कुत्ते की लार में मौजूद रेबीज वायरस से हाइड्रोफोबिया हो सकता है। यह एक लाइलाज बीमारी है और इसकी वजह से पीड़ित की मौत हो सकती है। ऐसे में सतर्क रहें।

    एक जून से चार जुलाई तक तीनों सरकारी अस्पतालों में चार हजार से अधिक लोगों ने रेबीज का पहला डोज लगवाया। बलरामपुर अस्पताल में सबसे अधिक 2530 पीड़ित इंजेक्शन लगवाने पहुंचे। चिकित्सा अधीक्षक डा. हिमांशु चतुर्वेदी ने बताया कि बलरामपुर में प्रतिदिन करीब 85 लोग रेबीज का इंजेक्शन लगवाने पहुंच रहे। लोकबंधु व सिविल अस्पताल में लगभग 50 से अधिक पीड़ितों ने वैक्सीनेशन कराए।

    इंजेक्शन लगवाने में ज्यादातर पुराने लखनऊ चौक, चौपटिया, नक्खास, मौलवीगंज, सआदतगंज, ऐशबाग, कैसरबाग, रकाबगंज, ठाकुरगंज, सदर, डालीगंज और निशातगंज क्षेत्र के लोग होते हैं। सरकारी अस्पताल में ये इंजेक्शन बिल्कुल मुफ्त है, जबकि निजी अस्पतालों में इसके लिए 350 से 500 रुपये तक फीस है।

    24 घंटे के भीतर इंजेक्शन जरूरी

    प्रो. विक्रम सिंह के मुताबिक, पालतू, आवारा कुत्ते या बिल्ली के काटने पर तुरंत एंटी रेबीज का टीका लगवाएं। कुत्ते और बिल्ली के अलावा चमगादड़ से भी सतर्क रहें। जानवर के काटने के 24 घंटे के अंदर इंजेक्शन लगवाना फायदेमंद रहता है। समयसीमा पार करने पर रेबीज से बचाव के खिलाफ टीका कम असरदार साबित होता है। सबसे पहले मरीज को घोड़े की एंटीबाडीज से बनाए गए रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन की डोज दी जाती है।

    उन्होंने बताया कि रेबीज का वायरस जानवरों के लार में होता है, जो काटने के बाद इंसानों के शरीर में तेजी से फैल जाता है। वायरस सीधा संक्रमित व्यक्ति के नर्वस सिस्टम पर हमला करता है और स्पाइनल कार्ड व मस्तिष्क तक पहुंच जाता है। इस प्रक्रिया में तीन से लेकर 12 हफ्ते का समय लग सकता है और कई बार तो साल भी लग जाते हैं, जिसे इनक्यूबेशन पीरियड कहा जाता है। इनक्यूबेशन पीरियड में कोई लक्षण नहीं दिखाई देता है, लेकिन वायरस के ब्रेन तक पहुंचने के बाद जान बचाना मुश्किल होता है।

    पानी से लगता है डर

    रैबीज वायरस से संक्रमण के बाद व्यक्ति का नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है। इसकी वजह से पीड़ित या तो जल्द कोमा में चला जाता है या उसकी मौत हो जाती है। कई संक्रमित को पानी से भी डर लगता है, जिसे हाइड्रोफोबिया कहते हैं।

    बच्चों से बताएं कि छिपाएं नहीं कुत्ते का काटना

    देश में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसमें बच्चे कुत्ते काटने की बात परिवारजन से छिपा लेते हैं, जो खतरनाक हो सकता है। इसलिए अभिभावक अपने बच्चे को जागरूक करें कि यदि कुत्ता काटता है तो इसकी जानकारी दें।

    रेबीज के संक्रमण के लक्षण

    पानी से डर लगना, बुखार, इनसेफेलाइटिस, सिरदर्द, घबराहट या बेचैनी, चिंता, कार्डियक फेल्योर, भ्रम की स्थिति, खाना-पानी निगलने में कठिनाई, लार निकलना, पानी से डर लगना, अनिद्रा, लकवा मार जाना।

    किसी भी जानवर के काटने पर क्या करें

    काटे हुए स्थान को कम से कम 10-15 मिनट तक साबुन या डेटाल से साफ करें, जितना जल्दी हो सके वैक्सीन एआरवी का टीका लगवाएं।

    क्या न करें

    काटे हुए स्थान पर मिर्च न बांधे, घाव ज्यादा होने पर भी उस पर टांके न लगवाएं।

    हल्की खरोंच से भी फैल सकता है रेबीज

    प्रो. विक्रम सिंह कहते हैं, संक्रमित जानवर के काटने के अलावा रेबीज पहले से कटी स्किन और म्यूकस मेम्ब्रेन के जरिए भी फैल सकता है। रेबीज से संक्रमित होने के लिए घाव का गहरा होना जरूरी नहीं है। शरीर पर पहले से मौजूद हल्की खरोंच और आंख, नाक या मुंह के म्यूकस मेम्ब्रेन से भी शरीर में प्रवेश कर सकता है। इसके अलावा यह हवा में तैर रहे लार की बूंदों से भी फैल सकता है।

    ऐसे करें बचाव

    अपने पालतू जानवरों को रेबीज का टीका जरूर लगवाएं

    जानवर के काटने पर डाक्टर से संपर्क कर तत्काल एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाएं

    आवारा कुत्तों और जंगली जानवरों से दूर रहें

    यदि पालतू जानवर या अन्य किसी पशु के व्यवहार में बदलाव हो तो उससे दूरी बना लें

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    अस्पताल मरीज की संख्या

    बलरामपुर अस्पताल 2530

    सिविल अस्पताल 1000

    लोकबंधु अस्पताल 500