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अति दुर्लभ कल्पवृक्ष में आशा की नई कोपलें

वाराणसी के छावनी क्षेत्र, हमीरपुर में यमुना नदी का किनारा और बारावंकी में बदोसराय कल्पवृक्ष में निकली कोपलें लोगों में नई आशा का संचार कर रही हैं। कल्पवृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर एक दुर्लभ वृक्ष है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sun, 08 May 2016 04:38 PM (IST)Updated: Sun, 08 May 2016 04:45 PM (IST)
अति दुर्लभ कल्पवृक्ष में आशा की नई कोपलें

लखनऊ। वाराणसी के छावनी क्षेत्र, हमीरपुर में यमुना नदी का किनारा और बारावंकी में बदोसराय कल्पवृक्ष में निकली कोपलें लोगों में नई आशा का संचार कर रही हैं। कल्पवृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर एक दुर्लभ वृक्ष है। इसी तरह के विभिन्न कारणों से यह लोगों में आस्था का विषय भी है। लोग इसका सम्मान और पूजा करते हैं। उत्तर प्रदेश में दुर्लभ प्रजाति के पारिजात के चार-पांच वृक्षों में दो वन विभाग इटावा के परिसर में है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक पारिजात को जीवन प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष माना गया है। इटावा के अलावा पारिजात का पेड़ बाराबंकी स्थित रामनगर तथा ललितपुर में एसएस आवास परिसर में है। आकार में यह वृक्ष बहुत बड़ा होता है और देखने में सेमल के पेड़ जैसा लगता है। इसका तना काफी मोटा होता है। अगस्त में इस वृक्ष में सफेद फूल आते हैं जो सूखने के बाद सुनहरे रंग में बदल जाते हैं। इटावा में मौजूद दो वृक्ष सदियों पुराने बताए जाते हैं मगर इन वृक्षों में कभी फूल नहीं देखे गए। महोबा जिले के कबरई थाना क्षेत्र के सिचौरा गाँव में लगभग 2000 वर्ष से भी पुराना कल्पवृक्ष है | हमीरपुर में यमुना किनारे लगा दुर्लभ कल्पवृक्ष लगभग 1000 वर्ष पुराना है।

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कुदरत का चमत्कार

वाराणसी के छावनी क्षेत्र में चंडिका देवी मंदिर के सामने स्थित बंगले के अहाते में मौजूद अति दुर्लभ कल्पवृक्ष से मानों आशाओं की कोपलों ने नया जन्म ले लिया है। 37 फीट मोटाई वाले कल्प वृक्ष की टूटी शाखाओं के पास से नई कोपलें फूटने लगी हैं। आश्चर्य की बात तो ये है कि टूट कर गिर पड़ी डाली से, जो कि जमीन से पांच फीट ऊपर है, उससे भी आशाओं ने जन्म लेना शुरू कर दिया है। कुदरत के इस चमत्कार से वृक्ष के संरक्षण में लगे लोगों को नई ऊर्जा मिल गई है। अब देखना यह है कि वृक्ष की टूटी डाली से निकलने वाली कोपलों को किसी अन्य स्थान पर किस प्रकार संरक्षित किया जाता है। साल भर पहले सारनाथ वन विभाग व बीएचयू कृषि विज्ञान विभाग ने छावनी परिषद के सहयोग से इसके संरक्षण का बीड़ा उठाया था। तमाम कवायद भी की गईं। पेड़ में मौजूद कोटर में केमिकल डालकर उसे भरा भी गया। लेकिन छह माह पूर्व जब वृक्ष की एकमात्र बची शाखा टूट कर गिर पड़ी, तो लगा मानों सारी मेहनत पर ग्रहण लग गया हो। लेकिन कुदरत के बदले रूख ने सारी उम्मीदों को नया आकार दे दिया है।


आस्था का कल्पवृक्ष

वाराणसी के छावनी क्षेत्र में मौजूद इस पेड़ के प्रति लोगों की आस्था भी है। पेड़ में लाल रंग की चुनरी बांधी गई है। स्थानीय लोग पूजा कर मन्नतें भी मांगने के लिए यहां पहुंचते रहते हैं। हांलाकि सारनाथ वन विभाग से छावनी परिषद की प्रमिला जायसवाल ने एक वर्ष पूर्व दूसरा नन्हा कल्पवृक्ष लाकर परिषद के प्रांगण में लगाया था। आज उसकी ऊंचाई लगभग छह फीट हो गई है। वताया गया है कि देववृक्ष है जो समुद्र मंथन के फलस्वरूप प्राप्त हुआ था और जिसे देवताओं के राजा इंद्र स्वर्गलोक ले गए थे | पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर सच्चे मन से जो भी कल्पना की जाती है वह अवश्य ही साकार होती है | भारत में कुल लगभग 9-10 कल्पवृक्ष हैं लेकिन जिन स्थानों में वन विभाग और सरकारी अमले की पहुँच है वहाँ तो इनकी देखभाल और संरक्षण ठीक प्रकार से किया जा रहा है किन्तु कुछ स्थान ऐसे भी हैं जहाँ इसकी देखभाल सिर्फ गाँव और आसपास के लोगों के द्वारा ही की जाती है |


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