Navratri 2022: माता सती के अंग जहां-जहां गिरे वह कहलाए शक्तिपीठ, नवरात्र में यहां पर जुटती भक्तों की भीड़
Navratri 2022 सती ने शिव से विवाह किया। इस विवाह से पिता दक्ष खुश नहीं थे। दक्ष ने यज्ञ किया उसमें सती को छोड़कर सभी को आमंत्रित किया। सती बिना बुलाए चली गईं। दक्ष ने शिवजी का अपमान किया तो सती ने सशरीर यज्ञाग्नि में स्वयं को समर्पित कर दिया।
गोंडा, [रमन मिश्रा]। देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों के बारे में ताे हर कोई जानता है। मां के इन्हीं रूपों की आराधना की जाती है। देवी भागवत महापुराण में 108 और गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है। चूड़ामणि में 52 शक्ति पीठ बताए गए हैं। देवी पुराण के अनुसार, 51 शक्ति पीठ में से कुछ विदेश में भी स्थापित हैं। भारत में 42, बांग्लादेश में चार, श्रीलंका में एक, तिब्बत में एक, पाकिस्तान में एक व नेपाल में दो शक्तिपीठ विद्यमान है। आइए हम इन शक्तिपीठों के बारे में विस्तार से बताएंगे जिनके बारे में युवा पीढ़ी शायद ही जानती हो।
पंडित शिवकुमार शास्त्री के मुताबिक, श्रीमद् भागवत महापुराण, श्रीमद् देवी भागवत महापुराण व अन्य ग्रंथों में दक्ष प्रजापति के पुत्री के रूप में देवी दुर्गा ने सती के रूप में जन्म लिया था। इनका विवाह भगवान भोलेनाथ के साथ हुआ था। एक बार ऋषियों ने यज्ञ का आयोजन किया। उसमें राजा दक्ष आए। जिन्हें देखकर सभी देवता खड़े हो गए लेकिन, भगवान शिव नहीं खड़े हुए।
भगवान शिव महाराज दक्ष के दामाद थे। यह देखकर राजा दक्ष क्रोधित हो गए और अपने अपमान का बदला लेने की ठानी। राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया। इसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन शिवजी व देवी सती को नहीं बुलाया। नारद जी माता सती के पास पहुंचे और यज्ञ का हाल बताया। देवी सती ने भगवान शिव से यज्ञ में चलने की जिद की लेकिन, भगवान शिव ने कहा कि देवी बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए।
बावजूद इसके देवी सती अपने पिता के यज्ञ में चली गईं। पिता दक्ष से भगवान शिव को आमंत्रित न करने का कारण पूछा तो वे क्रोधित हो गए और शिव का अपमान कर दिया। इससे देवी सती ने यज्ञ के हवन कुंड में कूदकर प्राणों की आहुति दे दी। यह सुनते ही शिवजी क्रोधित हो गए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। इससे ब्रह्मांड में प्रलय मच गई।
भगवान शिव ने घूम-घूम करके तांडव शुरू कर दिया। इससे प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड खंड कर धरती पर गिराने लगे। जिन-जिन स्थानों पर माता सती के अंग गिरे उन्हें शक्तिपीठ कहा गया है। इस प्रकार 51 स्थानों में माता के शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने राजा हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। घोर तपस्या करके भगवान शिव को पुनः पति के रूप में प्राप्त किया।
यहां होती है शक्तिपीठों की आराधना : हिंगलाज शक्तिपीठ, शर्कररे (करवीर), सु्गंधा-सुनंदा, कश्मीर-महामाया, ज्वालामुखी-सिद्धिदा, जालंधर-त्रिपुरमालिनी, वैद्यनाथ-जय दुर्गा झारखंड के देवघर, महाशीरा महामाया और भैरव कपाली, मानस दक्षिणी, विमला और भैरव, मुक्तिनाथ मंदिर, बहुला चंडिका, उज्जैनी मंगल चंडिका, त्रिपुरा त्रिपुरसुंदरी, चट्टल, त्रिस्रोत, कामगिरि-कामाख्या, प्रयाग-ललिता, युगाद्या-भूतधात्री, जयंती-जयंती, सावित्री और भैरव, मणि दैविक गायत्री, श्री शैल महालक्ष्मी, कांची देव गर्भा, काल माधव देवी काली, मणि दैविक गायत्री, श्री शैल महालक्ष्मी, कांची देवगर्भा, नर्मदा (शोणाक्षी), रामगिरी शिवानी, वृंदावन उमा, शुची नारायणी, पंच सागर बाराही पंच, श्री पर्वत श्री सुंदरी, रत्नावली, कुमारीबंगाल, मिथिला-उमा (महादेवी), नलहाटी-कालिका तारापीठ, कर्णाट-जयदुर्गा, वक्रेश्वर-महिषमर्दिनी, यशोर-यशोरेश्वरी, अट्टाहास-फुल्लरा, नंदीपूर, इंद्राक्षीऐसा व मगध शक्तिपीठ हैं।
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