विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस : संगीत से संवरती है साज-ए-जिंदगी
मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में कारगर है म्यूजिक थेरेपी। सुरों में छिपी है तमाम रोगों से लडऩे की ताकत। मेडिकल साइंस में म्यूजिक टोटल ब्रेन वर्क आउट है।
लखनऊ, (दुर्गा शर्मा)। जन्म के समय सोहर और अंत समय में रामधुन सब संगीत है। सुरों में ही आदि और अंत छिपा है। संगीत से साज-ए-जिंदगी संवरती है। मौसिकी से सुकून मिलता है। इससे दिमागी आनंद जुड़ा है। गाती गुनगुनाती प्रकृति भी संगीतमय है। सुर लहरियों में स्वस्थ जीवन की कुंजी है। सिर्फ मनोरंजन नहीं मानसिक स्वास्थ्य का आधार है। मेडिकल साइंस में म्यूजिक टोटल ब्रेन वर्क आउट है। वहीं सुरों के संसार में गायन, वादन और नृत्य शारीरिक के साथ मानसिक स्वास्थ्य का आधार है।
चुस्त रहेगा दिमाग
अनिद्रा : राग भैरवी और राग सोहनी सुनना अनिद्रा को दूर करता है। इसमें मधुर बांसुरी वादन की धुन शामिल है। याददाश्त : याददाश्त कम हो या कम हो रही हो तो राग शिवरंजनी सुनने से लाभ मिलता है। वीणा वादन और बांसुरी सुनने से फायदा मिलता है। मनोरोग और अवसाद : राग बिहाग व राग मधुवंती सुनना अच्छा होता है। घुंघरू और तबला मन खुश करता है। सकारात्मक सोच : संगीत का अपना ही मनोवैज्ञानिक असर होता है। आशावादी गीत सकारात्मकता का संचार करते हैं। साथ ही रचनात्मकता भी बढ़ती है।
राग से दूर होते तमाम रोग
रक्तचाप : उच्च रक्तचाप में धीमी गति और निम्न रक्तचाप में तीव्र गति का गीत-संगीत फायदा देता है। वीणा वादन सुनना लाभप्रद होता है। खून की कमी या शारीरिक कमजोरी : राग पीलू से संबंधित गीत सुनने चाहिए। मृदंग और ढोलक से उत्साह बढ़ता है। सांस संबंधी रोग जैसे अस्थमा : भक्ति पर केंद्रित गीत-संगीत सुनने से लाभ मिलता है। राग मालकौंस व राग ललित इस रोग में सुने जा सकते हैं। प्राकृतिक स्वर लहरियां जैसे झरने और लहरों की ध्वनि अच्छी होती हैं।
स्पेशल चाइल्ड और दिव्यांगों में जगता आत्मविश्वास
संगीत चिकित्सा स्पेशल चाइल्ड की एकाग्रता बढ़ाने में सहायक होती है। यह चीजों को याद रखने में सक्षम बनाती है। स्पेशल चाइल्ड सामान्य बच्चों की तुलना में चीजों को अलग तरीके से समझते हैं। भौतिक, व्यवसायिक और संगीत चिकित्सा इनके लिए लाभदायक होती है। मधुर संगीत बच्चों को भावनात्मक रूप से शांत करने में मदद करता है। भावना व्यक्त करने में सहायक होता है। यह दिव्यांग बच्चों को भी मुख्य धारा में लौटाने में सहायक है। खासकर नृत्य में हाथ-आंख-पैरों संग मांसपेशियों का समन्वय आत्मविश्वास जगाता है।
इसका रखें ख्याल
संगीत चिकित्सा में रोगी के मिजाज को समझना भी बहुत जरूरी है। रोगी को अगर उसकी पसंद के हिसाब से संगीत नहीं सुनाया गया तो तनाव का स्तर बढ़ जाता है। इस दिशा में शास्त्रीय गायन-वादन और नृत्य के लाभ ज्यादा होते हैं।
स्पेशल चाइल्ड का 'खास' इलाज
38 वर्षों से संगीत शिक्षण में कार्यरत आभा सक्सेना ने शहर में एक स्पेशल चाइल्ड के स्कूल में संगीत शिक्षिका के तौर पर काम किया। संगीत के जरिए बच्चों के मानसिक विकास और माहौल परिवर्तन के बेहतर परिणाम मिले। आभा सक्सेना ने बताया कि एक बच्चे ऐसे थे जिनका जन्म से ही मानसिक विकास बाधित था। एक बच्ची तो बोल भी नहीं पाती थी। दो महीने वहां नृत्य (डांडिया) और गाने का प्रशिक्षण कराया। दो महीने के उपरांत वह बच्ची गीत गाने लगी थी। साथ ही अन्य बच्चों ने शारीरिक अंगों के बीच का समन्वय सीख लिया था।
हेड इंजरी के मरीजों की जल्द रिकवरी
केजीएमयू के न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट के प्रो. क्षितिज श्रीवास्तव ने बताया कि हेड इंजरी के मरीजों में भी संगीत चिकित्सा बेहतर परिणाम देती है। ईयरफोन या हेडफोन के जरिए सुनाए मधुर संगीत से जल्द रिकवरी होती है। यह दो तरीके से कारगर है। पहला ऐसे मरीज जो दुर्घटनावश बेहोश हैं। दूसरे वे जो तनाव या अवसाद ग्रस्त हैं। हेड इंजरी या ट्यूमर के मरीजों में लाइट म्यूजिक ब्रेन को एक्टिवेट करता है। वहीं उत्सुकता, अवसाद और तनाव के रोगियों में संगीत मस्तिष्क में शांत करने वाले सेंटर को सक्रिय करता है। मधुर संगीत चिड़चिड़ापन दूर करके दिमाग को शांत करने में सहायक है।
सुरों से मिलता सात्विक आनंद
प्रख्यात तबला वादक पंडित रविनाथ मिश्रा का कहना है कि वाद्य यंत्रों से निकले मधुर सुर सात्विक आनंद देते हैं। वाद्य यंत्र और तमाम राग व ताल को सीखना और सिखाना तार्किक क्षमता में इजाफा करता है। संगीत संतोष देता है। संतुष्टि और आनंद संगीत में निहित मूल स्वभाव है। रस प्रधान बोलों से दिमागी सुकून मिलता है। बेतालापन जीवन में कष्टकारी होता है। लिहाजा जो भी करें लयबद्ध रहें।
कथक से बढ़ती एकाग्रता
कथक गुरु पंडित अनुज मिश्रा ने कहा कि शास्त्रीय नृत्यों का आध्यात्मिक जुड़ाव है। खासकर कथक। बिना ईश्वर वंदना के इसकी शुरुआत नहीं है। यह अनुशासन और संस्कारों का संचार करता है। तबले, सारंगी आदि के साथ घुंघरुओं की कदमताल और ताल की पकड़ दिमागी और शारीरिक रूप से चुस्त दुरुस्त रखता है। एक बार एक बच्चा कथक प्रशिक्षण के लिए आया था। उसके अभिभावकों की शिकायत थी कि वह पढ़ाई में मन नहीं लगाता। साथ ही गुस्सा भी तेज रहता है। उस बच्चे को कथक से जोड़ा। धीरे-धीरे उसमें अनुशासन के साथ ही व्यवहार कुशलता भी आने लगी। एकाग्रता भी बढ़ी।
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