UP Politics: मुलायम की मैनपुरी अखिलेश के लिए चुनौती, नेताजी की विरासत संभालने के लिए परिवार में चार दावेदार
यूपी की राजनीति में दबदबा रखने वाले समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अब मैनपुर सीट अखिलेश के लिए चुनौती साबित होगी। नेताजी की इस विरासत को संभालने के लिए परिवार में धर्मेंद्र यादव तेज प्रताप डिंपल व शिवपाल के नाम सामने आ रहे हैं।

लखनऊ, [शोभित श्रीवास्तव]। समाजवादी पार्टी के लिए पिछले नौ लोकसभा चुनाव में अभेद्य दुर्ग रही मुलायम सिंह यादव की मैनपुरी अब पार्टी अध्यक्ष अखिलेश के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। चुनौती प्रत्याशी चयन को लेकर है। मैनपुरी लोकसभा सीट के लिए परिवार के ही चार दावेदार हैं। इनमें मुलायम के भतीजे धर्मेंद्र यादव, पौत्र तेज प्रताप सिंह यादव, भाई शिवपाल सिंह यादव व बहू डिंपल यादव हैं। मुलायम के न रहने पर अखिलेश को पार्टी के साथ ही परिवार को भी साधना है।
मैनपुरी सीट पर होगा छह महीने में उप चुनाव
शिवपाल के अभी तक जो तेवर रहे हैं उसे देख अखिलेश को सावधानी से निर्णय लेना होगा। टिकट देने में जरा सी चूक से पार्टी को यहां बड़ा झटका लग सकता है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अब मैनपुरी संसदीय सीट रिक्त हो गई है। यहां छह महीने के अंदर उपचुनाव होना है। वर्ष 1996 से लगातार सात लोकसभा चुनाव व दो उपचुनाव में यहां सपा की साइकिल खूब दौड़ी। वर्ष 2004 में जब मुलायम सिंह ने मैनपुरी सीट से इस्तीफा दिया, उस समय उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव ही यहां से जीते थे। इसी तरह वर्ष 2014 में जब मुलायम ने फिर यह सीट छोड़ी तो उस समय उपचुनाव में उनके पौत्र तेज प्रताप सिंह यादव मैनपुरी से चुनाव जीतकर सांसद बने थे। इस कारण धर्मेंद्र व तेज प्रताप दोनों का दावा इस सीट पर मजबूत है।
मुलायम के सीट छोड़ने के बाद जसवंत नगर पर है शिवपाल का कब्जा
शिवपाल यादव भी पहले कह चुके हैं यदि नेताजी चुनाव नहीं लड़ेंगे तो वे चुनाव लड़ने पर विचार कर सकते हैं। हालांकि, अब मुलायम के न रहने पर स्थितियां बदली हैं। मुलायम ने जब 1996 में जसवंतनगर विधानसभा सीट छोड़ी थी तब से शिवपाल ही इस सीट से चुनाव लड़कर विधायक बनते आ रहे हैं। सैफई के इस यादव परिवार में शिवपाल ही ऐसे व्यक्ति हैं जो मुलायम की तरह सभी दलों में संबंध रखते हैं। इसका फायदा दिल्ली की राजनीति में अखिलेश व पार्टी को मिल सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए अखिलेश भी अपने चाचा से रिश्ते सुधारने के लिए उन्हें मैनपुरी से उतार सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो शिवपाल जसवंतनगर सीट से अपने बेटे आदित्य को चुनाव लड़वा सकते हैं।
अखिलेश और शिवपाल में अभी सामान्य नहीं है रिश्ते
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भी अखिलेश ने चाचा की पार्टी को साथ लिया था, हालांकि उन्हें केवल एक सीट दी थी। अखिलेश ने जब सपा विधायकों की बैठक बुलाई थी उसमें न बुलाए जाने से चाचा नाराज हो गए थे। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि सपा के साथ समझौता उनकी सबसे बड़ी भूल थी। मुलायम की अंत्येष्टि के अगले दिन शिवपाल ने मीडिया से कहा था कि अभी मैनपुरी उपचुनाव के बारे में बात करने का समय नहीं है, उन्होंने यह भी कह दिया कि जिनकों सम्मान नहीं मिल रहा है उनको हम एकत्र करेंगे। शिवपाल के यह तेवर भी अखिलेश के लिए बड़ी चुनौती हैं, क्योंकि किसी और को टिकट देने पर चाचा भी यहां से ताल ठोंक सकते हैं।
लोकसभा में शून्य पर पहुंचा मुलायम परिवार
मुलायम के निधन से दिल्ली की राजनीति में सपा कमजोर हुई है। स्थिति यह है कि इस समय सपा के लोकसभा में केवल दो मुस्लिम सदस्य शफीकुर्रहमान बर्क व एचटी हसन ही बचे हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने पांच सीटें जीती थीं। रामपुर व आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव सपा पहले ही हार चुकी है। करीब ढाई दशक बाद यह पहला मौका है जब लोकसभा में मुलायम परिवार का एक भी सदस्य नहीं बचा है। एक समय ऐसा भी था जब मुलायम परिवार के एक साथ छह सांसद होते थे। इन परिस्थितियों में अखिलेश की कोशिश दिल्ली की राजनीति में मुलायम परिवार के रुतबे को फिर से हासिल करने की होगी। इसलिए इस सीट से वे अपनी पत्नी डिंपल यादव को उतारकर मुलायम की राजनीतिक विरासत पर अपना कब्जा रख सकते हैं।
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