Lalji Tandon: बेदाग रही बाबूजी की छवि, अटलजी ने घोषित किया था अपना उत्तराधिकारी
Lalji Tandon मध्यप्रदेश में जनता के लिए खोल दिए राजभवन के दरवाजे। लोकतंत्र के चारों स्तंभ से शुरू किया खुला संवाद। राजभवन को बनाया जैविक खेती व पशुपालन की प्रयोगशाला।
लखनऊ, जेएनएन। मध्यप्रदेश का राज्यपाल बनने के बाद लाल जी टंडन ने कुछ ही दिनोंं में राजभवन को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। उनके लंबे सियासी अनुभव, स्वभाव की सरलता और कामकाज की पारदर्शिता ने सभी को प्रभावित किया। यही वजह रही कि मप्र में सियासी संग्राम के बाद कमलनाथ सरकार का पतन भी हुआ लेकिन राज्यपाल के रूप में टंडन की भूमिका बेदाग और निर्विवाद बनी रही। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ से उनके दशकों पुराने रिश्ते हैं, लेकिन सरकार गिरने के बाद भी दोनों के संबंधों में कोई अंतर नहीं आया। कमलनाथ सहित अन्य नेताओं ने उनकी कार्यशैली की कई अवसर पर तारीफ भी की। प्रदेश में हुए सत्ता पलट और सियासी उथल-पुथल के दौरान इस संवेदनशील मामले में भी उन्होंने पूरी पारदर्शिता रखी। संविधान और विधि विशेषज्ञों की राय के साथ अपने लंबे अनुभव के आधार पर न्याय संगत फैसले लिए। राज्यपाल की कुर्सी संभालते ही टंडन ने कमल नाथ सरकार के साथ रिश्तों को गरिमामय ऊंचाइयां देते हुए नई ऊर्जा का अहसास करा दिया। इतना ही नहीं तकरार के मुद्दों को भी पूरी गंभीरता से 'डील' कर उनका न सिर्फ सुखांत किया और नया मैसेज भी दे दिया। यह कहने से भी नहीं चूके कि 'मैं कोई रबर स्टैंप नहीं, वीटो पॉवर भी मेरे पास है।
मायावती से बंधवाते थे राखी
लालजी टंडन बसपा प्रमुख मायावती को अपनी बहन मानते थे। इसी कारण वह पिछले कई साल से उनसे राखी बंधवाते थे। एक बार इसको लेकर काफी चर्चा हुई थी और विपक्ष ने तंज कसा था तो स्वयं उन्होंने मायावती को अपनी बहन बताया था। मायावती भी उन्हें अपना भाई मानती रही हैं। पार्टी भले दोनों की अलग-अलग रही लेकिन दोनों के रिश्ते में कभी खटास नहीं आई।
खुद अटलजी ने घोषित किया था अपना उत्तराधिकारी
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने लखनऊ संसदीय सीट से चुनाव लडऩे से मना कर दिया था और सक्रिय राजनीति से लगभग संन्यास ले लिया था तो लालजी टंडन को उनके उत्तराधिकारी के रूप में घोषित कर पार्टी ने उन्हें लखनऊ से उतारा था।
फैसलों पर नहीं उठी उंगली
उनके कामकाज पर उम्र का असर कभी नजर नहीं आया, जब सियासी संग्राम जोरों पर था तब राजभवन में रतजगा की स्थिति बनी रही। भोर होने तक सचिवालय में विधि विशेषज्ञों और अधिकारियों से राय मशविरा कर उन्होंने फैसले लिए। देश में ऐसे सत्ता परिवर्तन कई राज्यों में हुए लेकिन अमूमन राज्यपाल की भूमिका को लेकर खूब सवाल उठे और आरोप भी लगे लेकिन टंडन की कार्यशैली इसका अपवाद रही। उनके निर्णयों पर कोई उंगली नहीं उठा सका। सही मायने में उन्होंने अपनी संविधान संरक्षक की भूमिका को सर्वोपरि रखा। नियम-परंपराओं पर जोर नवदुनिया से हुई विशेष बातचीत में भी राज्यपाल टंडन ने इस बात पर जोर दिया था कि नियमों और परंपराओं का पालन होना चाहिए। प्रदेश में सियासी उथल-पुथल जब चरम पर थी, संख्या बल को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के अपने-अपने दावे-प्रतिदावे थे ऐसे नाजुक समय में भी उन्होंने सरकार के आमंत्रण पर विधानसभा जाकर अभिभाषण पढ़ा। इस दौरान भी वह पक्ष-विपक्ष को संविधान और नियम-परंपराओं के पालन की नसीहत देना भी नहीं भूले।
राजभवन: नवाचार की प्रयोगशाला
राज्यपाल टंडन ने परंपरा से हट कर कई क्रांतिकारी बदलाव किए सामाजिक सरोकारों के साथ राजभवन के दरवाजे जनता-जनार्दन को खोलने की पहल को आगे बढ़ाया। जैविक खेती, पशुपालन नस्ल सुधार और डेयरी को लेकर खूब नवाचार किए। किसानों को नई तकनीक सीखने राजभवन आने का न्यौता तक दे दिया। राजभवन में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के लोगों को बुलाकर खुला संवाद किया। मीडिया के मित्रों से भी उन्होंने खुलकर बेलाग बातचीत की नई परंपरा शुरू कर सबको चौंका दिया। उनके अनुभव और प्रशासनिक दक्षता का ही कमाल था जब गृह मंत्री अमित शाह के नाम पर फर्जी फोन कॉल आया तो उन्होंने तुरंत ही उसे ताड़ लिया और जांच के बाद आरोपियों को सींखचों के पीछे भिजवाया। हनीट्रैप और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर दिखाई बेबाकी 'नवदुनिया" के साथ अपने पहले साक्षात्कार में भी राज्यपाल टंडन ने छह दशकों की राजनीतिक यात्रा और ढेरों संस्मरणों को साझा करते हुए शीघ्र प्रकाशित होने वाली पुस्तक के अनेक अध्यायों की झलक भी दिखलाई। यह भी बताया कि 'नेहरू ने बता दिया था कि कांग्रेस के बाद देश पर कौन राज करेगा।" मप्र को सुर्खियों में लाने वाले हनीट्रैप और तबादलों में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर भी उनकी बेबाकी ने अवाम को प्रभावित किया।
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